पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४४८

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- २ " दो दिन तक उस बाग में रहने और गुप्त स्थानों में घूमने का मौका मिला। ऐसी ऐसी चीजें देखने में आई कि होश दग हो गये । यद्यपि राजा वीरेन्द्रसिह के साथ विक्रमी तिलिस्म में मैं बहुत कुछ तमाशा देख चुका है परन्तु अब यही कहते बन पडता है कि इस तिलिस्म के आगे उसकी कोई हकीकत न थी कमलिनी-यह उस तिलिस्म के राजा ही ठहरे फिर इनसे ज्यादे वहा का हाल कौन जान सकता था और किसकी सामर्थ्य थी कि दो दिन तक उस वाग में आपको रख कर घुमाये ? वहा का जितना हाल ये जानते है उसका सोलहवा हिस्सा मायारानी नही जानती। ये बेचारे बड़े नेक और धर्मात्मा है पर न मालूम क्योंकर उस कम्यख्त के धोखे में पड़ गये। आनन्द -वेशक इनका किस्सा बहुत ही दिलचस्प होगा। गोपाल-मैं अपना अनूठा किस्सा आपसे कहूँगा। जिसे सुन कर आप अफसोस करेंगे। (लाडिली की तरफ देख के क्यों लाडिली तू अच्छी तरह से तो है ? लाडिली-(गद्गद स्वर से) इस समय मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं। क्या स्वप्न में भी गुमान हो सकता था कि इस जिन्दगी में पुन आपको देखूगी? यह दिन आज कमलिनी बहिन की बदौलत देखने में आया। गोपाल-वेशक-बेशक और ये पाच वर्ष मैने किस मुसीबत में काटे है सो बस मैं ही जानता हू (कमलिनी की तरफ देख कर) मगर तुझे उस तिलिस्मी बाग के अन्दर घुसने का साहस कैसे हुआ कमलिनी-रिक्तग्रन्थ मेरे हाथ लग गया इसी से मै इतना काम कर सकी। गोपाल-ठीक है तब तो तू मुझसे भी ज्यादे वहा का हाल जान गई होगी। इन्द्रजीत-(चौकर कर और कमलिनी की तरफ देख कर) क्या रिक्तग्रन्थ तुम्हारे पास है ? कमलिनी-(हस कर ) जी हा मगर इससे यह न समझ लीजिएगा कि मैंने आपके यहा चोरी की थी? तेज-नहीं-नहीं में खूब जानता हूं कि रिक्तग्रन्थ का चोर कोई दूसरा ही है आपको नानक की बदौलत वह किताब हाथ लगी कमलिनी-जा हा जिस समय तिलिस्मी बाग में नानक अपना किस्सा आपसे कह रहा था मै छिप कर सुन रही थी। इन्द्रजीत-नानक का किस्सा कैसा है? तेज -मैं आपसे कहता हू जरा सब कीजिए। इस समय उस किश्ती यर जितने आदमी थे सभी खुश थे केवल इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह को किशोरी और कामिनी का ध्यान था। तेजसिह ने अपन पागल बनने का हाल और उसी बीच में नानक का किस्सा जितना उसकी जुवानी सुना था कह सुनाया तेजसिह के पागल बनने का हाल सुन कर समों को हसी आ गई। दोनों कुमारों ने नामक का बाकी हाल कमलिनी से पूछा जिसके जवाब में कमलिनी ने कहा- यद्यपि नानक का कुछ हाल मुझे मालूम है मगर मैं इस समय कुछ भी न कहूगी क्योंकि उसका हाल उसी की जुबानी सुनने में आपको मजा मिलेगा और उसका किस्सा सुने विना इस समय कोई हर्ज भी नहीं हा इस समय थाडा सा अपना हाल मैं आपसे कहूगी। कमलिनी ने भूतनाथ का मनोरमा और नागर का तथा अपना हाल जितना हम ऊपर लिख आये है सभों के सामने कहना शुरू किया। अपना हाल कहते कहते जब कमलिनी ने मनोरमा के मकान का अद्भुत हाल कहना शुरू किया तो सभों को बडा ही ताज्जुब हुआ और किशोरी की अवस्था पर इन्द्रजीतसिह को रूलाई आ गई। उनके दिल पर बडा ही सदमा गुजरा मगर तेजसिह के लिहाज से जिन्हें वे चाचा के बराबर समझते थे अपने को सम्हाला । गापालसिह ने दिलासा देकर कहा आप लोग घबडाइए नहीं कम्बख्त मनोरमा के मकान का पूरा पूरा भेद मैं जानता हू इसलिए में बहुत जल्द किशोरी को उसकी कैद से छुडा लूगा । लाडिली-कामिनी भी उसी के मकान में भेज दी गई है। गोपाल--यह और अच्छी बात है एक पथ दो काज हो जायगा । इन्द्रजीत-(कमलिनी से ) अव यह रिक्तग्रन्थ कमलिनी-वह मेरे पास है उसी की बदौलत मैं आपको उस कैदखाने से छुडा सकी और उसी की बदौलत आपको तिलिस्म ताडने में सुगमता होगी मैं बहुत जल्द वह किताब आपके हवाल कसगी ! गोपाल-(चारों तरफ देख के कमलिनी से) ओफ बाल की बात में हम लोग बहुत दूर निकल आये !क्या तुम्हारा इरादा काशी चलने का है? कमलिनी-जी हो हम लोगों ने तो यही इरादा कर लिया है कि काशी चल कर किसी गुप्त स्थान में रहेंगे और उसी जगह से अपनी कार्रवाई करेंगे। गोपाल-मगर मेरी राय तो कुछ दूसरी है। कम-वह क्या? मुझे विश्वास है कि आप बनिस्बत मेरे बहुत अच्छी राय देंगे। गोपाल-यद्यपि मैं इस शहर जमानिया का राजा है और इस शहर को फिर कब्जे में कर सकता है परन्तु पाच वर्ष तक मेर मरने की झुद्री खबर लोगों में फैली रहने के कारण यहा की रिआया के मन में बहुत कुछ फर्क पड गया होगा। कब मिलेगा। 4 देवकीनन्दन खत्री समग्र ४२८