पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५

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5 रनवीर-(बालेसिह से) इन सब बातों में देर करने की क्या जरूरत है, आप मेर ऊपर कृपा कीजिय और चीठी लिखने का सामान मगाइये मैं अभी लिख देता है। बालसिह ने अपने एक आदमी को भेज कर कलम दावात तथा कागज मगवाया और रनवीरसिह के सामने रख कर कहा. 'लीजिये लिखिये। रनबीरसिह खत लिखने बैठे। अह. जिसके इश्क में रनवीरसिह की यह दशा हुई इतनी आफतें उठाई आज उसी को पत्र लिखने बैठे है मगर क्या लिख? क्या कह कर लिखें? कौन सी शिकायत करें? इन्हीं बात को घडी घडी सोच सोच रनवीरसिह को कम्प हा रहा था, आखें डबडबा आती थीं, लिखन याला कागज ऑसुओं में भीज जाता य. बडी मुश्किल स कई दफे कागज बदलने बाद यह लिखा--- "मेरे लिए तुमने जो कुछ सोचा मुनासिब ही था, जिसका पहिला हिम्सा ठीक भी कर चुके । मगर अफसोस उसका आखिरी हिस्सा अभी तक तेन हुआ। जसवन्त की मदद तक न की बालेसिह की खातिरदारी अभी तक जान चचाये जा रही है। तुम्हारा रनबीर बालेसिह ने यह पत्र उसी समय अपने एक दिश्वासी और चालाक आदमीक हाथ महारानी की तरफ रवाना किया। उस आदमी के जाने के बाद रनबीरसिह ने चालसिह से पूछा- 'क्यों बातेसिह, यह महारानी कौन है ? और मुझे तुमने क्यों गिरफ्तार कर रक्खा है ? देखों सच कहना झूठ मत बालना। . बालेसिह ने कहा, ऐसा ही है तो लीजिये सुन ही लीजिये, आखिर मैं कहा तक और किस किस से डरा करूगा। महारानी चाहे जो भी हों आज मेर और जसवन्त के तरह के सैकड़ों ही उनके लिये जान दे रह है, लेकिन उन्होंने सिवाय तुम्हार किसी स भी शाटी करमा मजूर न किया--जिसने जिद्द ठी उसी की दुगति कर डाली। अभी तक मर पाप उनका लिखा पत्र मौजूद है जिसमें उन्होंने साफ लिखा है कि सिवाय रनयीरासेह के नै किनी को कुछ भी नहीं समझती। अपने पत्र का ऐसा जवाब पाकर मुझ भी वडा ही गुस्सा आया आर दिल में ठान लिया कि अगर एता ही है तो फिर चाहे जो हो मैं भी रनवीरसिह से ऑर एससे मुलाकात न हान दृगा !सिवाय इसके बालसिह की बातें सुनत सुनते एकाएक रनवीरतिह को बड़ा ही क्रोध वढ आया। वह आगे कुछ और कहा चाहता था मगर उसकी यह आखिरी बात कि- मै भी रनवीरसिह मे और उससे मुलाकात न होने दूंगा सुन कर उठ खड हुए अपने गुस्से को जरा भी न रोक सके और उसक गले में हाथ डाल ही तो दिया। दोनों में खूब कुश्ती और मुक्कों की पार हाने लगी यहाँ तक कि दोनों के सिर और उदन से खून बहने लग! आखिर रनवीरसिह न घालेसिह को उठा कर जमीन पर पटक दिया और उसकी छाती पर चढ़ बैठे। अभी तक बालेसिह के आदमी जो वहाँ मौजूद थे चुपचाप सड़ तमाशा देख रहे थे। जब अपने मालिक की पीठ जमीन पर दखी और उम्मीद हा गई कि अब रनबीरसिहउसका गला के दबा मार ही डालेंगे तब एक दम रनवीरनिह के ऊपर टूट पड़े यहाँ तक कि बालेसिह मौका पाकर हाथ से निकाल गया और अपने साथियों की मदद से उसने रनबीरसिह को लिया। अब रनवीरसिह की आजादी बिल्कुल जाती रही वे पूरे कैदी हा गये। हथकडी यसी डाल कर एक कोठरी में बन्द कर दिये गये। अभी तक बातेसिह को उनकी खूबसूरती और हाथ पैरों की मुलायमियत दय कर उनके इतने ताकतवर बहादुर और जवॉमर्द हेने की उम्मीद बिल्कुल न थी, अपने सामन वह किसी को भी कुछ नहीं समझता था मगर आज रनवीरसिह न उसको शेखी भुला दी, बल्कि अपना रोव उसके दिल पर जमा दिया। नौवां बयान बालेसिह का आदमीराबारभिती चाटीस्कर महारानी की तरफ रवाना हुआ, गगर जब उस शहर में पहुंचा तब सुना कि महारानी बहुत बीमार है और इन दिनों बाग मे रहा करती है, दवा इलाज हो रहा है, रचने को काई उम्मीद नहीं बल्कि आज का दिन कटना भी मुश्किल है। वह आदमीजो चिट्ठी लेकर गया था निरा सिपाही न था चल्कि पढा लिखा होशियार और साथ ही चालाक भी था। ऐसे मौके पर महारानी के पास पहुच कर खत देना मुनासिव न जान उसने सराय में डेरा डाल दिया और सोच लिया कि जब नहारानी की तबीयत ठीक हो जायेगी तब यह खत देकर जवाब लूगा। सराय में डेरा दे और कुछ खा पी कर दह शहर में घूमो लगा यहाँ तक कि उस बाग के पास जा पहुंचा जिसमें कुसुम कुमारी १०५३