पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५४

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दि देखता हुआ कुछ सोच रहा है। इन दोनों के सिवाय कमरे में कोई तीसरा नहीं है। नागर-मैं फिर भी तुम्हें कहती है कि किशोरी का ध्यान छाड दो क्योंकि इस समय माका समझ कर भायारानी ने उसे आराम के साथ रखने का हुक्म दिया है। जवान-ठीक है मगर में उसे किसी तरह की तकलीफ तो नहीं देता फिर उसके पास मेरा जाना तुमने क्यों बन्द कर दिया? नागर-बड़े अफसोस की बात है कि तुम मायारानी की तरफ कुछ भी ध्यान नहीं देते जब भी तुम किशोरी के सामने जाते हो वह जान देने के लिये तैयार हो जाती है। तुम्हारे सबब से वह सूख कर काटा हो गई है। मुझे निश्चय है कि दो तीन दफे अगर तुम और उसके सामने आओगे तो वह जीती न बचेगी क्योंकि उसमें अब बात करने कीभी ताकत नहीं रही और उसका मरना मायारानी के हक में बहुत ही बुरा होगा। जब तक किशोरी को यह निश्चय न हागा कि तम इस मकान से निकाल दिए गये तब तक वह मुझसे साधी तरह यात भी न करेगी। ऐसी अवस्था में मायारानी की आज्ञानुसार मैं उसे कैद रखने की अवस्था में भी क्या कर खुश रख सकता हूँ? जवान-(कुछ चिट कर ) यह बात तो तुम कई दफे कह चुकी हो फिर घडी घड़ी क्यों कहती हो? नागर-खैर न सही सौ की सीधी एक ही कह देती हू कि किशोरी के बारे में तुम्हारी मुराद पूरी न होगी और जहा तक जल्द हो सके तुम्हें मायारानी के पास चले जाना पड़ेगा। जवान यदि ऐसा ही है तो लाचार होकर मुझे मायारानी के साथ दुश्मनी करनी पडेगी। मैं उसके कई ऐसे भेद जानता हूं कि जिन्हें प्रकट करने में उसकी कुशल नहीं है। नागर-अगर तुम्हारी यह नीयत है तो तुम अभी जहन्नुम में भेज दिये जाओगे। जवान-तुम मेरा कुछ भी नहीं कर सकती मै तुम्हारी जहरीली अगूठी से डरने वाला नहीं है । इतना कह कर वह नौजवान उठ कर खड़ा हुआ और कमरे के बाहर निकला ही चाहता था कि सामने का दवाजा खुला और भूतनाथ आता हुआ दिखाई दिया। नागर ने जवान की तरफइशारा करके भूतनाथ से कहा 'देखो इस नालायक को मैं यहरों से समझा रही है मगर कुछ भी नहीं सुनता और जान बूझ कर मायारानी को मुसीबत में डालना चाहता है । इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा था मै भी पिछले दर्ज की तरफ खड़ा खडा इस हरामजादे की बातें सुन रहा था हरामजादे का शब्द सुनतेही उस नौजवान को क्रोध चढ आया और वह हाथ में खजर लेकर भूतनाथ की तरफ झपटा। भूतनाथ ने चालाकी से उसकी कलाई पकड़ ली और कमरवन्द में हाथ डाल के ऐसी अलानी मारी कि वह धम्म से जमीन पर गिर पडा! नागर दौडी हुई बाहर चली गई और एक मजबूत रस्सी ले आई जोउस नौजवान के हाथ पैर वाधने के काम में आई। भूतनाथ उस नौजवान को घसीटता हुआ दूसरी कोठरी में ले गया और नागर भी भूतनाथ के पीछे पीछे चली गई। आधे घण्टे के बाद नागर और भूतनाथ फिर उसी कमरे में आये ओर दोनों प्रेमी मसनद पर बैठ कर खुशी खुशी हसी दिल्लगी की बातें करने लगा। अन्दाज से मालूम होता है कि ये दोनों उस नौजवान को कहीं कैद कर आये है। थोडी देर तक हसी दिल्लगी होती रही इसके बाद मतलव की बातें होने लगी। नागर के पूछने पर भूतनाथ ने अपना हाल कहा और सब के महिले वह चीठी नागर को दिखाई जो राजा गोपालसिह के लिए कमलिनी ने लिख दी थी इसके बाद मायारानी के पास जाने और बातचीत करने का खुलासा हाल कह के वह दूसरी चीठी भी नागर को दिखाई जो मायारानी ने नागर के नाम की लिखकर भूतनाथ के हवाले की थी। यह सब हाल सुाकर नागर बहुत खुश हुई और बोली यह काम सिवाय तुम्हारे और किसी से नहीं हो सकता था और यदि तु मायारानी की चीठी न भी लाते तो भी तुम्हारी आज्ञानुसार काम करने को मैं तैयार थी। भूतनाथ-सो तो ठीक है मुझे भी यही आशा थी परन्तु यों ही एक चीठी तुम्हारे नाम की लिखा ला। नागर-पर ताज्जुब है कि राजा गोपालसिह और देवीसिह आज के पहिले से इस शहर में आए हुए है मगर अमी तक इस मकान के अन्दर उन दोनों के आने की आहट नहीं मिली। न मालूम वे दोनों कहा और किस धुन में हैं !खैर जो होगा देखा जायगा अब यह कहिये कि आप क्या करना चाहते है ? देवकीनन्दन खत्री समग्र