पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४५७

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e (कामिनी की तरफ इशारा करके) इनको छुड़ाने आये है। इसमें कोई सन्दह नहीं कि आप बहुत कुछ मुझसे पूछा चाहती है और मेरे पेट में भी बहुत सी बातें कहते योग्य भरी है परन्तु यह अमूल्य समय यातों में नष्ट करने योग्य नहीं है इसलिए जो कुछ कहने सुनने की बातें है फिर हाती रहेंगी इस समय जहा तक जल्द हो सके यहा से निकल चलना ही उत्तम है। हा ठीक है कह कर किशोरी उठ बैठी उसमें चलने फिरने की ताकत न थी परन्तु इस समय की खुशी ने उसके खून में कुछ जोश पैदा कर दिया और यह इस लायक हो गई कि कामिनी के मोढ़े पर हाथ रख के तहखाने से ऊपर आ सक और वहा से वाग की चहारदीवारी के बाहर जा सके । कामिनी यद्यपि भूतनाथ को देख कर सहम गई थी मगर देवीसिह के भरोसे से उसने इस विषय में कुछ कहना उचित न जाना, दूसरे उसने यह सोच लिया कि इस कैदखाने से बढ़ कर और काई दुख की जगह न होगी अतएव यहा से तो निकल चलना ही उत्तम है। किशारी और कामिनी को लिए हुए तीनों आदमी तहखाने से बाहर निकले। इस समय भी उस मकान के चारों तरफ तथा नजरबाग में सन्नाटा ही था इसलिए ये लोग बिना रोक टोक उसी दर्वाजे की राह यहा से बाहर निकल गये जिससे राजा गोपालसिह बाग के अन्दर आये थे। थोड़ी दूर पर तीन घोड़े और एक रथ जिसके आगे दो घोडे जुते हुए थे मौजूद थारथ पर किशोरी और कामिनी को सवार कराया गया और तीनों घोड़ों पर राजा गोपालसिह देवीसिह और भूतनाथ ने सवार हाकर रथ को तेजी के साथ हाकने के लिए कहा। बात की बात में वे लोग शहर के बाहर हो गये बल्कि सुबह की सुफेदी निकलने क पहिले ही लगभग पाच कोस दूर निकल जाने के बाद एक चौमुहानी पर रुक कर विचार करने लगे कि अब रथ को फिस तरफ ले चलना या रथ की हिफाजत किसके सुपुर्द करना चाहिय । ग्यारहवां बयान ऊपर के बयान में जा कुछ लिख आये है उस बात को कई दिन बीत गये आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए दखते है। रग ढग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत प्रसन्न है और वह भूतनाथ को कद्र और इज्जत की निगाह से देखती है । इस समय मायारानी के सामने सिवाय भूतनाथ के काई दूसरा आदमी मौजूद नहीं है। माया-इसमें काई सन्देह नहीं कि तुमने मेरी जान बचा ली। भूतनाथ-गोपालसिह का धोखा दकर गिरफ्तार करने में मुझ बडी बडी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । आज दो दिन से केवल पानी क सहारे में जान बचाये है। अभी तक तो काई ऐसी बात नहीं हुई जिसमें कमलिनी या राजा वीरेन्द्रसिह के पक्ष वाले किसी को मुझ पर शक हो। राजा गोपालसिह के साथ कवल देवीसिह था जिसको मेने किसी जरूरी काम के लिए रोहतासगढ जाने की सलाह दे दी और उसके जाने वाद गोपालसिह को बातों में उलझा कर दारोगा वाले मकान में ले जाकर केद कर दिया। माया-तो उसे तुमने खतम ही क्यों न कर दिया ? भूत-केवल तुम्हारे विश्वास लिये उसे जीता रख छोडा है। माया-( हस कर ) केवल उसका सिर ही काट लाने से मुझे पूरा विश्वास हो जाता पिर जो हुआ सो हुआ अब उसके मारने में विलम्ब न करना चाहिये , भूत-ठीक है जहा तक हो अब इस काम में जल्दी करना ही उचित है क्योंकि अबकी दफे यदि वह छूट जायगा तो मरी बडी दुर्गति होगी। माया-नहीं नहीं अब वह किसी तरह नहीं बच सकता! मैं तुम्हारे साथ चलती हू और अपन हाथ से उसका सिर काट कर सदैव के लिए टटा मिटाती हू। घण्ट भर और वहर जाओ, अच्छी तरह अधेरा हो जाने पर ही यहा से चलना उचित होगा रल्कि तब तक तुम भोजन भी कर लो क्योंकि दो तीन दिन के भूखे हो,या कहो कि किशोरी और कामिनी को तुमने कहा छोड़ा। 2 भूत--किशोरी और कामिनी का में एक एसी खाह में रख आया हू जहा से सिवाय मेरे काई दूसरा उन्हें निकाल ही नहीं सकता। बहुत दिनों स मे स्वय उस खास में रहता टू और मेरे आदमी भी अभी तक वहा मौजूद है। अब केवल एक बात का युटका मर जी में लगा हुआ है। माया-यह क्या? भूत-यदि कमलिनी मुझसे पूछेगी कि किशोरी ओर कामिनी को कहा रख आये तो मै क्या जवाब दूगा। यदि यह चन्द्रकान्ता सन्तति भाग