पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४६१

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शि दानो कुमारी का देवमन्दिर भेटिए आज तीसरा दिन है। आढन और रिछादन का काई सामानहान पर भी उन दोगों को किसी तरह की तकलीफ नहीं मालूम हाती रात उगधी से ज्यादा जा चुकी है। लिलिम्मी बाग के दूसर दर्ज से हाती और वहॉ क सुशबूदार फूला सवारी हुई मन्द बलान गली हयान नम थपकियॉ लगा कर दोना नौजवान सुन्दर और सुकुमार कुमारी का सुला दिया है। ताज्जुब नही कि दिन रात प्यार को रहने के कारण दोनों कुमार इस समय स्वप्न में भी उम्पनी अपनी माशूका से लाड़ प्यार की बात कर रहे हैं और उन्' इस बात का गुमान नी हो कि पलक उठते ही रग बदल जायगा और नम कलादा का आनन्द लने वाला साथ सर तक पहुंचने का उद्याग करेगा। यकायका घरघडाहट को आपाज ने दाना को जगा दिया। वे चाफ कर उठ पैठे और ताज्जुब भरी निगाहों से वास तरफ देखरे और सोचनलग किया आवाज पहा स आ रही है। ज्यादा ध्यान दने पर भी यह निश्चय न हो सका कि आवाज किस बाज की है हाइटनी माल गालूम हो गई कि दवमन्दिर के पूरब तरफ बाल मकान या अन्दर से आवाज आ रही है। दोनों राजकुमारों का देवनन्दिर सनीचे उतर कर उस मकान के पास जाना उचित न मालूम हुआ इसलिए ये देवमन्दिर की छत पर च गये और व: गौर से उस तरफ दखने लग। आधे घट तक पड आवाज एक रग से बराबर आती रही और इसको दाद धीरे-धीरे कम होकर वन्द हो गई। उस समय दवाजा खालकर अन्दर से आता हुआ एक आदमी उन्हें दिखाई पड़ा। वह आदमी धीर धीरे दवमन्दिर के पास आया और थाडी दर तक खडा रद कर उस फर की तरफ लौटा जो पूरव की तरफ थाले मकान के साथ और उससे थोड़ी ही दूर पर था कूए के पास पहुंच कर थोड़ी देर तक वहा भी खड़ा रहा और फिर आगे बढा यहा तक कि घूमता फिरता छोटे छोट मकानों की आजाकर 4 जाने कहाँनजरों स गायब हो गया और इसके थाडी ही देर माद उस तरफ से एक कमसिन औरत के सनकी आवाज आई। इन्द्रजीत-जिस तौर से यह आदमी इस चोथे दर्जे में आया है वह घराक ताज्जुब की बात है। आनन्द-लिस पर इस रोन को आपाज और भी ताज्जुब में डाल दिया है। मुझे आज्ञा हो तो जाकर दर कि क्या मामला है? इन्द-जाने में कोई हता नही है मगर पर तुम इसी जगह ठहरो में जाता है । आनन्द-यदि ऐसा ही है तो चलिये हम दोनों आदमी चले। इन्ट-नहीं एक आदमी का यहाँ रहना बहुत जरूरी है। पर तुम ही जाओ तो कोई हर्ज नहीं मगर तलवार लते जाओ। दोनो भाई छत के नीचे उतर आये। आनन्दसिह न खूटी से लटकती हुई अपनी तलवार ल ली और कमर क वीचोबीच वाले गाल खम्भ क पास पहुंचे। हम सुपर लिख आये है कि उस खम्भे में तरह तरह की तस्वीरें उनी हुई थीं। आनन्दसिह ने एक मूरत पर हाथ रखकर जोर से दबाया साथ ही एक छोटी सी खिडकी अन्दर जान क लिए दिखाई दी] छोटे कुमार उसी खिडकी की राह उस गोल खम्भे को अन्दर घुस गये और थोड़ी ही देर बाद उस नकली बाग में दिखाई देने लगा यम्भ के अन्दर रास्ता कैसा था और वह नकली बाग के पास क्योंकर पहुचें इसका हाल आगे चलकर दूसरी दफे किसी और के आन या जाने के समय बयान करेंगे यहाँ मुख्तसर ही में लिख कर मतलब पूरा करत है। आनन्दासह उम तरफ गये जिधर वह आदमी गया था या जिधर स किसी औरत के रोने की आवाज आई थी। धूमत फिरते एक छाट मकान के आगे पहुचे जिसका दर्वाजा खुला हुआ था। वहा औरत ता कोई दिखाई न दी मगर उस आदमी को दाज पर खड़े हुए जरूर पाया। आनन्दसिह को देखते ही वह आदमी झट मकान के अन्दर घुस गया और कुमार भी तजी के साथ उसका पीछा किए बयाफ मकान के अन्दर चले गये। वह मकान दा मजिल का था उसक अन्दर छोटी छोटी कई काटरियाँ थी और हर एक काठरी म दो दो दर्वाजे थ जिससे आदमी एक कोठरी के अन्दर जाकर कुल काठरियों की सेर कर सकता था। यद्यपि कुमार तेजी के साथ पीछा किए हुए चले गय मगर वह आदमी एक कोठरी के अन्दर जान के बाद कई कोठरियों में घूम फिर कर कहीं गायव हो गया। रात का समय था और मकान के अन्दर तथा कोठरियों में बिलकुल अधकार छाया हुआ था एसी अवस्था में कोठरिया के अन्दर घूम धून कर उस आदमी का पता लगाना बहुत ही मुशकिल था दूसरे इसका भी शक था कि वह कहीं हमारा दुश्मन न हो लाचार होकर कुमार वहाँ से वापस लौटे मगर मकान के वाहर न निकल सके क्योंकि यह दर्वाजा बन्द हो गया था जिस राह स कुमार मकान के अन्दर घुसे थे। कुमार न दर्वाजा उतारने का भी उद्योग किया मगर उसकी मजबूती के आगे कुछ बस न चला। आखिर दुखी होकर फिर मकान के अन्दर घुस और एक कादरी के दर्पाजे पर जाकर खडे हो गये। थोड़ी देर के बाद मर छत पर से फिर किसी औरत क सेन की आवाज आई गौर करने से कुमार को मालूम हुआ कि यह शक उसी औरत की आवाज है जिस सुनकर यहाँ तक आर्य चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १ ४४७