पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४६५

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चौथा बयान मायारानी आज यह विचार कर बहुत खुश है कि आधी रात के समय कमलिनी इस बाग में आयेगी और मै उस अवश्य गिरफ्तार करुगीमगर इस बात को जानने के लिए उसका जी बेचैन हो रहा है कि उसके सोने वाले कमरे में रात को कौन आया था। वह चारों तरफ खयाल दौडाती थी मगर कुछ समझ में न आला था और आखिर दिल में यही कहती थी कि आने वाला चाहे कोई हो मगर काम कमलिनी ही का है, आज अगर कमलिनी गिरफ्तार हो जायगी तो सब टण्टा मिट जायगा जितनी बेफिक्री राजा गोपालसिह के मारने से मिली है उतनी ही कमलिनी के भी मारने से मिलेगी क्योंकि उसके मरने के बाद मेरे साथ दुश्मनी करने का साहस फिर काई भी नहीं कर सकता। आधी रात जाने के पहिले ही मायारानी धनपत का साथ लिए हुए उस दर्वाजे के पास जा पहुँची जिधर से कमलिनी के आने की खबर सुगी थी। मायारानी के कहे मुताविक पहरा देने वाली कई औरतें भी नगी तलवार लिए उस चोर दर्वाजे क पास पहुंच कर इधर उधर पेडों और झाडियों की आड में दबक रही थीं और घनपत भी उस चोरदर्वाजे क बगल ही में एक झाडी के अन्दर घुस गई थी। मायारानी अपने को हर बला से बचाए रहने की नीयत से कुछ दूर पर छिप कर बैठ रही जब वह समय आ गया कि चोरदर्वाज की राह से कमलिनी बाग के अन्दर आये इसलिए धनपति अपने छिपे रहने वाले स्थान से उठ कर चोरदर्वाजे के पास आई और यह विचार कर बैठ गई कि बाहर से कोई आदमी दर्वाजा खोलने इशारा करे तो में झट से दरवाजा खोल दू। इस समय धनपति अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए थी और हाथ में खजर लिए मौका पड़ने पर लड़ने के लिए भी तैयार थी थोड़ी ही देर बाद बाहर से किसी ने चोरदर्वाजे पर थपकी मारी धनपति खुश हो कर उठी और झट स दर्वाजा खोल कर एक किनारे हो गई। दो आदमी बाग के अन्दर दाखिल हुए। इन दोनों ही का वदन स्याह कपडों मे ढका हुआ था और दोनों ही के चहरों पर नकाब पड़ी हुई थी जिससे रात के समय यह जानना बहुत ही कठिन था कि य औरतें है या मर्द हा एक का कद कुछ लम्या था इसलिए उस पर मर्द होने का गुमान हो सकता था। जब दोनों नकाबपोश बाग के अन्दर आ गए तोधनपति ने चोरदर्वाजा बन्द कर दिया और उन दोनों को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा किया। मालूम होता था कि वे दोनों नकाबपोश बेफिक्र है ओर उन्हें इस बात की जरा भी खबर नहीं कि यहाँ का रग बदला हुआ है। उन दानों को साथ लिए धनपति जब उस जगह पहुची जहा पहरा देने वाली लौडिया नगी सलवारें लिए हुए छिपी हुई थीं तो खड़ी हो गई और उन दोनों की तरफ देख कर बोली• आपकी आज्ञानुसार मैंने अपना काम पूरा कर दिया अब मुझो इनाम मिलना चाहिए । इसके जवाब में उस नकाबपोश ने जिसका कद बनिस्बत दूसरे के छोटा था जवाब दिया धनपत को जो मर्द होकर औरत की सूरत में मायारानी के साथ रहता है, किसी से इनाम लेने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह स्वय मालदार है मगर मैं समझता हू कि कम्बख्त मायारानी भी हम लोगों को गिरफ्तार करने की नीयत से इसी जगह आकर कहीं छिपी हागी उस जल्द युला क्योंकि खास उसी को इनाम देने के लिए हम लाग यहा आए है। धनपत गस्तव मे मर्द था मगर यह हाल किसी को मालूम न था इसलिए हम भी उसे अभी तक औरत ही लिखते चल आए मगर अब पूरी तरह से निश्चय हो गया कि वह मर्द है और हमारे पाठकों को भी यह बात मालूम हो गई इसलिए अव हम उसके लिए उन्हीं शब्दों का बर्ताव करेंगे जो मदों के लिए उचित है। उस आदमी की बात सुनकर धनपत परेशान हो गया उसे यह फिक्र पैदा हुई कि अब हमारा भेद खुल गया और इसलिए जान बचना मुश्किल है। केवल धनपत ही नहीं बल्कि मायारानी और उन कुल लौडियोंने भी उस आदमी की चातें सुन ली जो उसी के आस पास पेडों के नीचे छिपी हुई थी। मायारानी के दिल में भी तरह तरह की बातें पैदा होने लगी ( उसने पहचानने की नीयत से उस नकाबपोश की आवाज पर ध्यान दिया मगर कुछ काम न चला क्योंकि उसकी आवाज फसी हुई थी और इस समय हरक आदमी जो उसकी बात सुनता कह सकता था कि वह अपनी आवाज को विगाड कर बातें कर रहा है। धनपत यद्यपि इस फिक्र में था कि दोनों नकाबपोशो को गिरफ्तार करना चाहिए मगर इस नकाबपोश की गहरी और भेद से भरी हुई बात ने उसका कलेजा यहॉ तक दहला दिया कि उसके लिए बात का जवाब देना भी कठिन हो गया मगर वे लौडियों जो उस जगह छिपी हुई थीं चारों तरफ से आकर जरूर वहाँ जुट गई और उन्होंने दोनों नकाबपोशों को घेर लिया। धनपत सोच रहा था कि मायारानी भीइसीजगह आ पहुंचेगी लेकिन यह आशा उसकी वृथा ही हुई क्योंकि उस नकावर्षाश की आवाज का सबसे ज्यादे. असर मायारानी ही पर हुआ। वह घबडा कर वहाँ से भागी और अपने दीवानखाने में जाकर बैठ रही जहा कई लौडिया पहरा दे रही थी। आते ही उसने एक लौडी की जुबानी अपने सिपाहियों चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९ ४५१