पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४६८

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h मायारानी कोठरी के अन्दर गई। वहा एक दूसरी कोठरी में जाने के लिए दर्वाजा था उस दर्वाजे को खोलकर दूसरी कोठरी में गई। इहा एक छोटा सा कूआ था जिसमें उतरने के लिए जजीर लगी हुई थी। यह इस कूए के अन्दर उतर गई और एक लम्बे चौडे स्थान में पहुची जहाँ बिल्कुल ही अधकार था। मायारानी टटोलती हुई एक कोन की तरफ चली गई और वहा उसने कोई पेंच धुमाया जिसक साथ ही उस स्थान मेंबखूबी रोशनी हो गई और वहाँ की हर एक चीज साफ साफ दिखाई देने लगी। यह रोशनी शीशे के एक गोले में से निकल रही थी जो छत के साथ लटक रहा था। यह स्थान जिसे एक लम्बा चौडा दालान या चारों तरफ दीवार होने के कारण कमरा कहना चाहिए अद्भुत चीजों और तरह तरह के कल पुजों स भरा हुआ था। बीच बीच में कतार बाध कर चौबीस खमभे सगर्ममर के खड़े थे और हर दो खम्भी के ऊपर एक एक महरावदार पत्थर चढ़ा हुआ था जिसे मामूली तौर पर आप बिना दाजे का फाटक कह सकत है। इन महराची पत्थरों के बीचा बीच बड़े बडे घटे लटक रह थे और हर एक घटे के नीचे एक गडारीदार पहिया था । मायारानी ने हर एक महराब को जिस पर मोटे माटे अक्षर लिखे हुए थे गौर से देखना शुरू किया और एक महराब के नीचे पहुच कर खड़ी हो गई जिस पर यह लिखा हुआ था- दूसरे दर्जे का तिलिस्मीदवाजा। मायारानी न उस पहिये का घुमाना शुरु किया जो उस महराब में लटकत हुए घटे के नीचे था ! पहिया चार पाच दफे धूम कर रुक गया तब मायाराना वहा सहटी यह कहती हुई घूम कर सामने वाली दीवार के पास गई कि देखें अब वे कम्बख्त क्योंकर बाग के बाहर जाते है दीवार में नम्बरवार बिना पल्ले की पॉच आलमारियों थी और हर एक आलमारी में चार दर्जे बने हुए थे पहिली आलमारी में शीश का सुराहिया थी दूसरी भताये के बहुत से डिव्ये थे तीसरी कागज के मुटठों से भरी हुई थी जिन्ह दीमकों ने वयाद कर डाला था चौथी में अष्टधातु की छोटी छोटी बहुत सी मूरतें थीं और पाचनी आलमारी में कवल चार तानपत्र थे जिनमें खूबसूरत उमड़े हुए अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था। - मायारानी उस आलमारी के पास गई जिसमें शीश की सुराहिया थी और एक सुराही उठा ली। शायद उसमें किसी तरह का अर्फ या जिस थोडा सा पीने के बाद सुराही हाथ में लिय हुए यहा से हटी और दूसरी आलमारी के पास गई जिसमे ताव के डिव्य था एक डिव्या उठा लिया और वहा से रवाना हुई। जिस तरह उसका जाना हम लिख आये है उसी तरह घूमती हुइ यह अपन दीवानखान म पहुची जिसके आगे तरह तरह के खुशनुमा पत्तों वाले खूबसूरत गमले सजाये हुए थे। वहाँ पहुँच कर उसने वह डिव्या खोला ! उसके अन्दर एक प्रकार की बुकनी मरी हुई थी। उसमें से आधी चुकनी अपने हाथ से खूबसूरत गमलों में छिडकने के याद बची हुई आधी बुकनी डिब्बे में लिये हुए वह दीवानखान की छत पर चढ गइ और अपन साथ कवल एक लोड़ी को जिसका नाम लीला था और जो उसकी सब लोडियो की सरदार थी लती गई। यह सब काम जो हम ऊपर लिख आये है मायारानी ने बडी फुर्ती से उसके पहिले ही कर लिया जब तक कि उसक बागी सिपाही धनपत का लिये हुए याग के दूसरे दर्जे के बाहर जाय । जय मायारानी लीला का साथ लिय हुए दीवानखान की छत पर चढ गई तब उसने सुराही दिखा कर लीला से कहा चिल्लूर इसमें से थोड़ा सा अर्क तुझे दती हूँ उसे पी जा और उस आफत स बची रह जो थोड़ी ही देर में यहा के रहन बाला पर आन वाली है। लीला (हाथ फैला कर) मै खूब जानती हूं कि आपकी मेहरबानी जितनी मुझ पर रहती है उतनी और किसी पर नहीं। माया-(लीला की अजुली मे अर्क डाल कर ) इसे जल्दी पी जा और जो कुछ मैं कहती हू उसे गौर से सुन । लीला-वेशक मै ध्यान दकर सुनूगी क्योंकि इस समय आपकी अवस्था विल्कुल ही बदल रही है और यह जानने क लिए भरा जी बहुत चेचैन है कि अव क्या किया जायगार माया-मैं अपन भेद तुझसे छिपा नहीं रखती जा कुछ मैं कर चुकी हूं तुझ सब मालूम है केवल दो भेद मैने तुझस छिपाए थ जिनम से एक तो आज खुल ही गया और एक का हाल मै तुझसे फिर किसी समय कहूगी। इन भेदों के विषय में मरा विश्वास था कि यदि किसी का मालूम हा जायगा तो मरी जान आफत में फंस जायगी और आखिर वैसा ही हुआ।तू देख हो चुकी है कि दो कम्बख्त नकाबपाशों ने यहां पहुंच कर क्या गजब मचा रक्खा है। अब जहाँ तक मै समझती हूँ धनपत का भद छिपा रहना बहुत ही मुश्किल है और साथ ही इसके कम्पख्त सिपाहियों का भी मिजाज बिगड गया है। मान लिया जाय कि अगर मैने किसी तरह की बुराई की भी तो उनको मेरे खिलाफ होना मुनासिब न था। खैर सिपाही लाग al उजेड हुआ ही करता है मगर मुझसेबुराई करने का नतीजा कदापि अच्छा न होगा। अफसोस, उन लोगों न इस बात देवकीनन्दन खत्री समग्र ४५४