पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७१

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दि छठवां बयान लौला की जुबानी दानों नकाबपाशा सिपाहियां और धनपत का हाल तुन कर मायारानो बहुत ही उदास और परेशन हो गइ। वह आशाजा तिलिस्मी दयाजा बन्द करने और बहाशी का अद्भुत धूरा छिड़कने पर उत्ते कधी थी बिल्कुल जाती रहा तिलिस्म में जाकर निलिनी दर्वाज का बन्द करना तिलिस्मी दवा पीना और लीला का पिलाना यहाशो को युकनी फूलों के गमला में डालना तर पिल्कुल ही व्यर्थ हा गया । धनपत दानों नकाबपोशों के कब्ज में पड़ गया और सद सिपाही भी सइज ही में बाग के थाहर हा गय। इस समय उन दानों नकाबपाशों की कार्रवाइयो न उस इतना बदहवास कर दिया कि वह अपने बचाव की काई अच्छी सूरत सोच नहीं सकती थीं। आखिर वह हर तरह से दुखी हाफर फिर उसी तहखान के अन्दर गई जिसमें पहिली दफ जाकर बाग के दूसर दर्ज का दवाजा तिलिस्मी रीति से रन्द किया था। हम ऊपर लिव आये है कि वहा दीवार में दिना दवाजे की पाच आलमारियों थी और एक आलमारी में ताये के बहुत स डिव रक्टर थ! इस समय मायागनी ने उन्हीं डिया का खोल खाल कर देखना शुरू किया। ये डिन्ये छाटे और बड़े हर प्रकार के थे। क्इडिव्य साल खाल कर दखने के बाद मायारानी ने एक डिव्या खाला जिसका पटा एक हाथ से फन न होगा। उस डिच्च में एक हाथीदात का तमचा यारह अगुल का और छोटी छोटी बहुत सी गालिया रक्यी हुई थी। उन गालियों का रंग लाल था और उनक अलाव एक ताम्रपत्र भी उस डिब्बे के अन्दर था। मायारानी इस डिब्बे को लेकर वहा से रवाना हुइ और तहखाने का दवाना बन्द करती हुई अपन स्थान पर उस जगह पहुची जो उसकी लौडिया उसकी राह दख रही थी। उसने सर लौडियों क सामन हो उस डिब्बे का खाल्ल और ताम्रपत्र हाथ मे लकर पढने लगी जय पूरी तरह पढ चुकी ता लीला की तरफ देख कर बोली "तू दखती है कि मै किस यला में फस गइ हूँ?' लीला--जी हा में बखूबी दख रही है। दानो नकाबपाशों की तरफ जय ध्यान देती हू ता कलजा काप जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अब कोई नारी उपद्रव उठने वाला है क्योकि नकाबपोशों की बदौलत इस चाग के सिपाही मी वागी हो गए है। माया-बेशक एसा ही है और ताज्जुब नहीं कि व सिपाही लाग जो इस समय पर पजे स निकल गए है मरे बाकी फौजी सिपाहियों को भी भडकावें। लीला-इसमें कुछ भी सन्देह नहीं बल्कि इन सिपाहियों की बदौलत आपकी रिआया भी बागी हो जायगी और तब जान बचाना मुश्किल हो जायगा । अफसात आपन व्यर्थ ही अपन दानों मद मुझसे छिपा रक्खे नहीं तो मैं इस विषय में कुछ राय देती। भाया-(ताज्जुर से ) दानों भेद कौन से? लीला-एक तो यही धनपत वाला। माया-हा ठीक है और दूसरा कौन ? लीला-(मायारानी के कान की तरफ झुक कर धीरे से ) राजा गोपालसिह वाला जिन्हें मूतनाथ की मदद से आपने मार डाला। लीला की बात सुन कर मायारानी चौक पडी अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और लीला का हाथ पकड के किनारे ले जाकर धीरे से बोली, देख लीला तू केवल मेरी लौडियो को सार ही नहीं है बल्कि बचपन की साथी और मेरी सखी भी है। सच बता गोपालसिह बालग भेद तुझ कैसे मालून हुआ? लीला-आप जानती हो है कि मुझे कुछ यारी का भी शौक है। माया- हाँ मैयूब जानती हू फित् एयारी भी कर सकती है लकिन इस किस्म का काम मैने तुझत कभी लिया नहीं। लीला यह मेरी बदकिस्मती थी नहीं तो में अब तक ऐयारा की पदवी पा चुकी होती। माया-ठीक है पैर ता इससे मालूम हुआ कि तूने ऐयारी से गोपालसिह वाला भेद मालूम कर लिया ? लीला-जी हा ऐसा ही है मैने ऐयारोस और भी बहुत से नेद मालूम कर लिये है जिनकी खबर आपको भी नहीं और जिनको इस समय कहना मै जवित नहीं समझती मगर शीघ ही उस विषय में मैं आपसे बातचीत करुगी। इस समय तो मुझे कवल इतना ही कहना है कि किसी तरह अपनी जान बचाने की फिक्र कीजिए क्योंकि मुझे भूतनाथ की दोस्ती पर माया-क्या तू समझती है कि भूतनाथ न मुझे धाखा दिया ? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९ ४५७