पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७२

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Cri लीला-जी हाँ बल्कि मैं तो यही समझती हु कि राजा गोपालसिह मारे नहीं गये बल्कि जीते है! माया-अगर ऐसा है तो बड़ी ही गजय हो जायगा मगर इसका कोई सबूत भी नहीं ? लीला-आज तो नहीं मगर कल तक मैं इसका सबूत आपको दे सकूगी। माया-अफसोस अफसोस में इस समय किले में जा कर अपने दीवान से राय लेने वाली थी मगर अब तो कुछ और ही सोचना पड़ा। लीला-(उस डिब्बे की तरफ इशारा करके जो अभी तिलिस्मी तहखाने में से मायारानी लाई थी) पहिले यह मताइये कि इस डिब्बे को आप किस नीयत से लाई है ? यह हाथीदात का तमचा कैसा है और ये गोलिया क्या काम दे सकती है? माया-ये गोलियाँ इसी तमचे में रख कर चलाई जायगी। इसके चलाने में किसी तरह की आवाज नहीं होती और गली भी आधी,कोस तक जा सकती है। जब यह गोली के बदन पर लगेगी या जमीन पर गिरेगी तो एक आवाज देकर प.. मायगी और इसके अन्दर से बहुत सा जहरीला धुंआ निकलेगा वह धुंआ जिस जिस के नाक मे जायगा। वह आदमी फौरन ही बेहोश हो जायगा। अगर हजार आदमियों की भीड़ आ रही हो तो उन सभों को बेहोश करने के लिए कवल दस पाच गोलिया काफी है। लीला-वशक यह बहुत अच्छी चीजे है और ऐसे समय में आपको बड़ा काम दे सकती है मगर मैं समझती हू कि उस डिब्बे म पाच सौ से ज्यादे गोलियों न होंगी इसके बाद कदाचित् वह ताम्रपत्र "कुछ काम दे सके जो उस डिब्बे में है और जिस आपने हम लोगों के सामने पढ़ा था। माया-वाह तुम बहुत समझदार हो । चेशक ऐसा ही है। इस ताम्रपत्र में उन गोलियों के बनाने की तरकीब लिखी है। इस निलिस्म में ऐसी हजारों चीजें है मगर लाचार हु कि तिलिस्म का पूरा हाल मुझे मालूम नहीं है बल्कि चौथे दर्जे के पिय मे तो मैं कुछ भी नहीं जानती। फिर भी जो कुछ मै जानती हू या जहाँ तक तितिस्म में मै जा सकती है वहा ऐसी और भी कितनी ही चीजे है जो समय पर मेरे काम आ सकती है। लीला-अब यही समय है कि उन चीजों को लेकर आप यहाँ से चल दीजिए क्योंकि इस बाग तथा आपके राज्य पर अब आफत आया ही चाहती है। मैने सुना है कि राजा वीरेन्द्रसिह की बेशुमार फौज जमानिया की तरफ आ रही है बल्कि कहना चाहिए कि आज कल में पहुचा ही चाहती है। माया-हा यह खबर मैने भी सुनी है। यदि गोपालसिह का और धनपत का मामला न बिगड़ा होता तो मै मुकाबिला करन के लिए तैयार हो जाती परन्तु इस समय तो मुझे अपनी रियाआ में से किसी का भी भरोसा नहीं है। लीला-भरास के साथ ही साथ आप समझ रखिए कि आप अपने किसी नौकर पर हुकूमत की लाल आख भी अब नहीं दिखा सकती। मगर इन बातों में वृथा देर हो रही है। इस विषय को बहुत जल्द तय कर लेना चाहिए कि अब क्या करना और कहा जाना मुनासिब होगा। माया-हा ठीक है मगर इसके भी पहिले मैं तुमसे यह पूछनी हू कि तुम इस मुसीबत में मेरा साथ देने के लिए कर नक तैयार रहोगी? लीला-जब तक मेरी जिन्दगी है या जब तक आप मुझ पर भरोसा करेंगे। माया-यह जवाय तो साफ नहीं है बल्कि टेढा है। लीला-इस पर आप अच्छी तरह गौर कीजिएगा मगर यहा से निकल चलने के बाद । माया-अच्छा यह तो बताओ कि मेरी और लौडियों का क्या हाल है? लीला-आपकी लाडियों में कवल चार पाँच ऐसी है जिन पर मै भरोसा कर सकती हू, बाकी लौडियों के विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकती और न उनके दिल का हाल ही जाना जा सकता है। माया-(ऊँची सास लेकर ) हाय, यहाँ तक नौयत पहुच गई। यह सब मेरे पापों का फल है। अच्छा जो होगा देखा । जायगा। इस अनूठे तमचे और गोलियों को मैं सम्हालती हूँ और थोड़ी देर के लिए पुन तिलिस्मी तहखाने में जाकर देखती हूं कि मेरे काम की ऐसी कौन सी चीज है जिसे सफर में अपने साथ ले जा सकू। जो कुछ हाथ लगे सो ले आती हूँ और बहुत जल्द तुमको और उन लौडियों को साथ लेकर निकल भागती हू जिन पर तुम भरोसा रखती हो। कोई हर्ज नहीं इस गई गुजरी हालत में भी में एक दफे लाखों दुश्मनों को जहन्नुम में पहुचाने की हिम्मत रखती हूँ !।

  • ताम्रपत्र-ताँबे की तख्ती जिस पर कुछ लिखा या खुदा हुआ हो।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ४५८