पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७६

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R राजा गोपालसिंह के विषय मे भूतनाथ ने जिस तरह मायारानी को धाखा दिया था उसका हाल हम ऊपर के बयानों मं लिख आये है। इस समय वही हाल राजा गोपालसिह ने अपने तौर पर कमलिनी से बयान किया। ताज्जुब नहीं कि भूतनाथ के विषय में हमारे पाटकों को धोखा हुआ हो और वे समझ बैठे हों कि भूतनाथ वास्तव में मायारानी से मिल गया मगर नहीं उन्हें अब मालूम हुआ होगा कि भूतनाथ ने मायाराणी से मिल कर कपल अपना काम साधा और मयारानी को हर तरह से नीचा दिखाया। आठवां बयान $ अहा ईश्वर की महिमा भी कसी विचित्र है। बुरे कर्मों का युरा फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। जो मायारानी अपने सामन किसी को कुछ समझती ही न थी वही आज किसी के सामने जाने या किसी को मुंह दिखानेका साहस नहीं कर सकती। जो मायारानी कभी किसी से डरती हीन थीधही आज एक पते के खडखडाने से भी डर कर बदहवास हो जाती है। जो मायारानी दिन रात हसी खुशी में बिताया करती थी वह आज रो से कर अपनी आयें सुजा रही है। सध्या के समय भयानफ जगल में उदास और दुखो मायारानी कयल पॉच लोडियों के साथ सिर झुकाए अपन किये हुए बुरे को को याद कर करके पछता रही है। रात की अचाई के कारण जैसे अधेरा हाता जाता है तैसे तैसे उसकी धपराहट भी घडती जाती है। इस समय मायारानी और उसकी लौड़िया मर्दाने भेष में है। लौड़ियों के पास नीमचा तथा तीर कमान मौजूद है परन्तु मायारानी केवल तिलिस्मी तमचा कमर में छिपाये हुए है। यह घबड़ा धबडा कर बार-बार पूरय की तरफ देख रही है जिरासे मालूम हाता है कि इस समय उधर से कोई उसके पास आन वाला है। थोड़ी ही दर याद अच्छी तरह अधेरा हो गया और इसी बीच में पूरब तरफ से किसी आने की आहट मालूम हुई मह लीला थी जो मर्दानं भेष में पीतल की जालदार लालटेन लिए हुए कहीं दूर से चली आ रही थी। जब वह पास आई मायारानी ने घबराहट के साथ पूछ। कहा क्या हाल है? लीला-हाल बहुत ही खराब है अब तुम्ह जमानिया की गद्दी कदापि नहीं मिल सकती माया-यह तो में पहिले ही से समझे धैठी हू। तू दीवान साहब के पास गई थी? लीला-हा गई थी उस समय उन सिपाहियों में से कई सिपाही वहां मौजूद थे जो आपके तिलिस्मी बागर्भ रहते हैं और जिन्होंने दोनो नकाबपोशों का साथ दिया था। उस समय वे सिपाही दीवान साहब से दोनों नकाबपोशों का हाल वयान कर रह थे मगर मुझे देखते ही चुप हो गये। माया-तब क्या हुआ ? लीला-दीवार साहब ने मुझे एक तरफ बैठने का इशारा किया और पूछा कि तू यहा क्यों आई है ? इसके जवाब में मैंने कहा कि मायारानी हम लोगों को छोड़ कर न मालूम कहा चली गई। जय चारों तरफ टूढने पर भी पता न लगा तो इत्तिला के लिए आपके पास आई ह । यह सुन कर दीवान साहब ने कहा कि अच्छा उहर में इन सिपाहियों से बातें कर लू तब तुझसे कर्स। माया-अच्छा तब तूने उन सिपाहियों से बातें सुनी ? लीला-जी नहीं सिपाहियों ने मरे सामने बात करने से इनकार किया और कहा कि हम लोगों को लीला पर विश्वास नहीं है आखिर दीवान साहब ने मुझे बाहर जाने का हुक्म दिया। उस समय मुझे अन्दाज से मालूम हुआ कि मामला बेढब हो गया और ताज्जुब नहीं कि मैं गिरफ्तार कर ली जाऊँ इसलिए पहरे बालों से बात बना कर मैने अपना पीछा छुड़ाया और भाग कर मैदान का रास्ता लिया। माया-सक्षेप में कह कि उन दोनों नकाबपाशों का कुछ भेद मालूम हुआ कि नहीं। लीला-दोनोंनकाबपोशोंको असल भेद कुछ भी मालूम न हुआ हा उस आदमी का पता लग गया जिसने वाग से निकल भागने का विचार करती समय गुप्त रीति से कहा था येशक-येशक तुम मरते-मरते भी हजारों घर चौपट करोगी माया--हॉ कैसे पता लगा? वह कौन था? लीला-वह भूलनाथ था। जब मैं दीवान साहब के यहा से भाग कर शहर के बाहर हो रही थी तब यकायक उससे मुलाकात हुई उसने स्वय मुझसे कहा कि फलानी यात का कहने वाला मैं हूँ तू मायारानी से कह दीजियो कि अव तरे दिन खोटे आए है अपने किये का फल भोगने के लिए तैयार हो रहे हो यदि मुझे कुछ देने की सामर्थ्य हो तो मैं तेरा साथ दे सकता हूँ। देवकीनन्दन खत्री समग्र