पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७७

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> । भाया-(ऊँची सास लेकर) हाय अच्छा और क्या-क्या मालूम हुआ? लीला-हाल क्या कहूँ ? राजा वीरेन्द्रसिह की बीस हजार फौज आ गई है जिसकी सरदारी नाहरसिह कर रहा है। दीवान साहब ने एक सर्दार को पत्र देकर नाहरसिह के पास भेजा था मालूम नहीं इस पत्र में क्या लिखा था मगर नाहरसिह ने उसका यह जवाव जुयानी कहला भेजा कि हम केवल मायारानी को गिरफ्तार करने के लिए आए है। इसके बाद पता चला कि दीवान साहब ने आपकी खोज में कई जासूस रवाना किए है। माया-तो इससे निश्चित होता है कि कम्बख्त दीवान भी मेरा दुश्मन हो गया । लीला-क्या इस बात में अब भी शक है? माया-(लम्बी सास लेकर ) अच्छा और क्या मालूम हुआ? लीला-एक बात सबसे ज्यादा ताज्जुब की मालूम हुई। माया-वह क्या ? लीला-रात के समय भेष बदलकर मैं राजा वीरेन्द्रसिह के लश्कर में गई थी। घूमते फिरते ऐसी जगह पहुची जहा से नाहरसिह का खेमा सामन दिखाई दे रहा था और उस खेमे के दर्वाजे पर मशाल हाथ में लिय हुए पहरा देने वाले सिपाहियों की चाल साफ साफ दिखाई दे रही थी। मैंने देखा कि खेमे के अन्दर से दा नकायपोश निकले और जहा मैं खडी थी उसी तरफ आन लगे। मै किनारे हट गई। जब वह मरे पास से होकर निकले तो उनकी चाल और उनके कदम से मुझे निश्चय हो गया कि वे दोनों नकाबपोश वहीं है जो हमारे बाग में आये थे और जिन्होंने धनपत को पकड़ा था। माया-हों। लीला-जी हाँ! माया-अफसोस इसका पत्ता कुछ भी न लगा कि वे दोनों आखिर है कौन मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये खास चाग के तिलिस्मी भेदों को जानते है और इस समय तेरी जुबानी सुनने से यह जाना जाता है कि व दोनों राजा वीरेन्दसिह के पक्षपाती भी है। लीला-इसका निश्चय नही हो सकता कि वे दोनों नकाबपोश राजा वीरेन्द्रसिह के पक्षपाती है शायद वे नाहरसिह से मदद लेने गये हों। माया-ठीक है यह भी हो सकता है। लेकिन बात तो यह है कि मै सिवाय गोपालसिह के और किसी से नहीं डरती न मुझे रिआया के बिगडने का डर है न सिपाहियों और फौज के बागी होने का खौफ न दीवान मुत्सदियों के बिगड़ने का अदेशा और न कमलिनी और लाडिली की बेवफाई का रज-क्योंकि में इन सभी को अपनी करामात से नीचा दिखा सकती हूँ, हाँ यदि गोपालसिह के बारे में कम्बख्त भूतनाथ ने मुझे धाखा दिया है जैसा कि तू कह चुकी है तो वेशक खौफ की बात है। अगर वह जीता है तो मुझे बुरी तरह हलाल करेगा । वह इस बात से कदापि नहीं डरेगा कि मेरा भेद खुलनेस उसकी बदनामी होगी क्योंकि मैंने उसके साथ बहुत बुरा सलूक किया है। जिस समय कम्बख्त कमलिनी और बीरेन्दसिह के ऐयारों ने गोपालसिह को कैद से छुडाया था यदि गोपालसिह चाहता तो उसी समय मुझे जहन्नुम में मिला सकता था मगर उसका ऐसा न करना मेरा कलेजा और मी दहला रहा है शायद मौत से भी बढ़ कर कोई सजा उसने मेरे लिये सोचली है हाय अफसोस !मैने तिलिस्मी भेद जानने के लिये उसे क्यों इतने दिनों तक कैद में रख छोड़ा उसी समय उसे मार डाला होता तो यह बुरा दिन क्यों देखना पडता ? हाय अब तो मौत से भी काई भारी सजा मुझे मिलने वाली है। (राती है) लीला-अय रोने का समय नहीं है किसी तरह जान बचाने की फिक्र करनी चाहिए। माया-(हिचकी लकर) क्या करू ? कहाँ जाऊ ? किससे मदद मांगूऐसी अवस्था में कौन मेरी सहायता करेगा हाय आज तक मैंने किसी के साथ किसी तरह की नेकी नहीं की किसी को अपना दोस्त न बनाया और किसी पर अहसान का बोझन डाला फिर किसी को क्या गरज पडी है जो ऐसी अवस्था में मेरी मदद करे वीरेन्द्रसिह के लड़कों के साथ दुश्मनी करना मेरे लिए और भी जहर हो गया। लीला-खेर जो हो गया सा हो गया इस समय इन सव याता का साचं विचार करना और भी बुरा है। मैं इस मुसीवत में हर तरह तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूं और अब भी तुम्हारे पास एसी एसी चीजें है कि उनसे कठिन से कठिन काम निकल सकता है रुपये पैसे की तरफ स कुछ तकलीफ हा ही नहीं सकती क्योंकि सेरों जवाहिरात पास में मौजूद है फिर इतनी चिन्ता क्यों कर रही हो? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९