पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४७९

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ari लोग मायारानी के पास पहुच ता चोरी का माल उसी के पास पटक कर भाग गये और सवारों न वहा पहुच और चोरी का माल मायारानी के पास देखकर उन्ही लागों को चार या चोरों का साथी समझा और उन्हें चारों तरफ से घर लिया। जवान-बहुत अच्छा हुआ शाराश तुम लागों न अपना काम खूबी से साथ पूरा किया। अच्छा इसके बाद क्या हुआ। डाकू-इसके बाद को हम लोगों को कुछ भी खबर नहीं ह क्योंकि आज्ञानुसार आपके पास हाजिर होने का समय बहुत कम यच गया था इसलिए फिर उन लोगा का पीछा न किया। जवान--काइ हर्ज नहीं हमें इतने सही मतलब था अच्छा अब तुम जाओ जमानिया के पास गगा के किनार जो झाडी है उसी में परसों रात को किसी समय हम तुम लोगों से मिलेंगे कदाचित कोई काम पर्ड { अपने साथी की तरफ देख कर ) कहिए देवीसिहजी अब इन दानों सवारों के लिए क्या आज्ञा होती है जो हम लोगों के साथ आय है? देवी-भगर ये लाग जासूसी का काम दे सकें तो इन्हें काशी भेजना चाहिए। जवान-ठीक है और इसक वाद जहाँ तक जल्द ही सके कमलिनीजी से मिलना चाहिए ताज्जुब नहीं वे कहती हों कि भूतनाथ बड़ा ही येफिक्रा है। पाठक तो समझ ही गय होंगे कि ये दोना बहादुर दवीसिह और भूतनाथ है। डाकुआं और दोनों सवारों को विदा करने के बाद दोनों ऐयार लौट और तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुए। इस जगह से जमानिया केवल चार कोस की दूरी पर था इसलिए ये दाना एयार सवेरा होन के पहिले ही उस टीले पर जा पहचे जा दारोगा वाले बंगले के पीछे की तरफ था और जहाँ से दोनों ऐयारों और कुमारों को साथ लिए हुए कमलिनी मायारानी के तिलिस्मी याग वाले देवमदिर में गई थी। हम पहिले लिख आये है कि इस टीले पर एक कोठरी थी जिसमें पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का एक शर बैठा हुआ था। वह चबूतरा और शेर देखने में पत्थर का मालूम होता था मगर वास्तव में किसी मसाले का बना हुआ था। दोनों ऐयार उस शेर के पास जकर खड हो गये और बातचीत करने लगे। भूतनाथ और देवी सिह को इस समय इस बात का गुमान भी न था कि उनके पीछे पीछे दो औरतें कुछ दूर से आ रही हैं और इस समय भी कोठरी के वाहर छिप कर खडी उन दोनों की बातें सुनने के लिए तैयार है। इन दोनों औरतों में सेएक तो मायाराणी और दूसरी नागर है। पाठकों को शायद ताज्जुब हो कि मायारानी की तो चोरी की इल्लत में काशीराज के सवारा ने गिरप्तार कर लिया था फिर वह यहाँ क्योंकर आई ? इसलिए थाडा हाल मायारानी का इस जगह लिख देना उचित जान पडता है। जब उन सवारों न चारों तरफ से मायारानी का घेर लिया तब एक दफे तो वह बहुत ही परेशान हुई मगर तुरन्त ही सम्हल चैठी और फुर्ती के साथ उसने अपने तिलिस्मी तमच स काम लिया। उसने तमचे में तिलिस्मी गोली भर कर उसी जगह जमीन पर मारी ज्हों आप बैठी हुई थी। एक आवाज हुई और गोली में से बहुत सा धूओं निकल कर धीरे धीर फैलने लगा मगर सवारों ने इस बात पर कुछ ध्यान न दिया और मायारानी तथा उसकी नौडियों को गिरफ्तार कर लिया। मायारानी के तमचा चलाने पर सवारों को क्रोध आ गया था इस लिए कई सवारों ने मायारानी की और लात स खातिरदारी भी को यहाँ तक कि वह बेताब होकर जमीन पर गिर पड़ी उसके साथ ही साथ लीला तथा और लोडियों ने भी खूब मार खाई भगर इस बीच में तिलिस्मी गाली का धूआ हल्का हाकर चारों तरफ फैल गया और सभों के आख नाक में घुस कर अपना काम कर गया। मायारानी और लीला को छोड बाकी जितने वहाँ थे सबके सब बेहोश हो गये थे न सवारों को दीन दुनिया की खबर रही और न मायारानी की लोडियों को तनोवदन की सुध रही। पाठकों का याद होगा कि देहाशी का असार न होने के लिए मायारानी ने तिलिस्मी अर्क पी लिया था और वही अर्क लीला को पिलाया था। अभी वक इस अर्क का असर बाकी था जिसने मायारानी और लीला को बेहोश होने से बचाया। मार के सदमे से आधी घडी तक तो मायारानी में उठने की सामर्थ्य न रही इसके बाद जान के खौफ से वह किसी तरह उठी और लीला को साथ लेकर वहाँ से भागी। बेचारी लाडियों को जिन्होंने ऐसे दुख के समय में भी मायारानी का साथ दिया था मायारानी ने कुछ न पूछा हो लीला का ध्यान उस तरफ जा पडा। उसने अपने ऐयारी के बटुए में से लखलखा निकाला और लौडियों को सुघा कर होश में लाने के बाद सभों को भाग चलने के लिए कहा। लौडियों को साथ लिए हुए लीला और मायारानी वहा से भागी मगर घबराहट के मारे इस बात को न सोच सकी कि कहाँ छिप कर अपनी जान बचानी चाहिए अस्तु, दसव पीधे दायोग वाले बंगले के तरफ रवाना हुई। उस समय सवेरा हने में कुछ बिलम्ब था वे धौफ के मारे छिपती छिपाती दिन भर बराबर चली गई और रात का भी कहीं ठहरने की नौबत न आइ। आधी रात से कुछ ज्यादे जा चुकी थी जब देवस दारोगा वाले वगले पर जा पहुचीं। इत्तिफाक से नागर भी रास्त ही में इन लोगों से मिली जो मायारानी से मिलने के लिए मुश्की घोडी पर सवार खास बाग की तरफ जा रही थी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग९ ४६५