पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८

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६ मानेगा. खैर दखा जायगा !यह सोच वहा से रवाना हुआ और जाती वक्त रनवीरसिह से कहता गया देखिये मेरा साथ छोड़ कर आप जरूर पछताएंगे। दसवां बयान जसवन्त के जाने के याद रनवीरसिह कुछ दर तक वही खड़कुछ सोचते रह. तव पश्चिम की तरफ चला थोडी दूर जाकर इधर उधर देखने लगे. वाई तरफ पीपल का एक पेड़ नजर आया, उसी जगह पहुच और उस पड़ को दूर गौर के साथ देख उसके नीचे बैठ गये। उस पेड़ के नीचे बैठे हुए रनबीरसिह इस तरह चारों तरफ देख रहे थे जैसे कोई किसी एस आदमी के आन की रट देखता हो जिसे वह बहुत ही ज्यादा मानता हा या जान बचान के लिए जिसका मिलना बहुत जरूरी समझता हो। खैर जो कुछ भी हो. मगर रनवीरसिह की घड़ी घड़ी खड़े होकर यारों सरफ देखते दखते यह पूरा दिन बीत गण और भूख और प्यास से उनकी तबीयत बेचैन हो गई मगर वह उस जगह से दस कदम भी इधर उधर नहटा आखिर शाम होते होते कई सवार एक निहायत उम्दा घोड़ा कसा-कमाया साली पीठ और कुछ असयाय लिय उस जगह पहुंचे। एक सवार ने जा सभों का सार मालूम होता था घोड़े से नीचे उतर कर अपने जेब से एक चींटी निकाली और . रनबीरसिह को सलाम करन कबाद उनके हाथ मेद दी। रनवीरसिह खत खोल कर पढन लग. जैसे जैसे पढ़ते जाते थे तसे तैसे उनके चेहरे पर सुशी चढ़ती हुई दिखाई देती थी और घडी घड़ी सी आती थी। जब यत तमाम हुआ तय उस सवार की तरफ देख कर बोले, इसने काइ राक नहीं कि उन्होंने ऐसा काम किया जो अच्छे अच्छे चालाकों से हाना मुश्किल है. और यह तो पताआ कि तुम्हारी फौज वहाँ कब पहुचेगी? सवार ने कहा "आधी रात के बाद से कुछ न कुछ असबाब खेमा वगैरह आना शुरू हो जायगा बल्किा सुबह होते हात कुछ फौज भी आ जायगी, याको कल और परसो का दिन में कुल सामान के ठीक हो जाने की उम्मीद है। लेकिन पूरी फौज यहा इकट्ठी न होगी वह मुकाम यहा से कुछ दूर है जहाँ अब मै आपका ले चलूंगा। रनवीर-इस वक्त तुम्हारी फौज कहाँ है? सदार-इसका जवाब मै कुछ नहीं दे सकता, क्योंकि आज कई दिनों से कई ठिकान पर फौजी आदी बैट हुए है। बालेरिह को कैद से आपके छूटने की खबर जय मुझका लग चुकी है तब मैंने अपने जासूसों को चारो तरफ रवाना किया हे और एक ठिकाने का निशान देकर जहा आज मैं आपको ले चलूगा ताकीद कर दी है कि जहाँ तक जल्द हो सके उसी जगह सभी का इकट्ठा करा इसके बाद अपने सार में भी इन सब बाना की इतिला भेज दी है। ग्नमीर-इसके पहिले जो बीती एश सवार के हाथ मुझे मिली थी यह भी तो शायद तुम्हारे सफार ही के हाथ की लिखी थी? सवार-जी हो मगर वह कई दिन पहिले की लिखी शी और उस सवार को हुक्म था कि जब आप छूटें उत्ती वस्त ग्रह चौठी आपको दे। रनवीर-तो अब उस ठिकान चलना चाहिय जहा फौज इकट्ठी होगी? सवार-जी हाँ. में आपकी सवारी का घोडा और कपडे तथा हर्वे कौरह भी लेता आया है और कुछ खाने का भी सामान लाया हू, आप भोजन कर लें तो चले। रनवीरसिह ने खुशी और जल्दी के मार भोजन करने से इनकार किया मगर उस सवार की जिद से जिसका नाम धीरसन था हाथ मुह धो कुछ खाना हो पड़ा. इसके बाद उन चीजों में से जो वह सवार इनके लिये लाया था जो कुछ जरूरी समझा लेकर तोड़े पर सवार हुए और वहाँ से रवाने हुए। उन सवारी के साथ साथ कई कास तक चले गए। आधी रात जात जात एक मैदान में पहुच जिसक चार तरफ धना जगल और धीच में बहुत से नीम के दरख्त थे, वहा सभों न घोड को बाग रोकी और उस सवार ने रनवीरत्तिह से कहा "वस यही ठिकाना है जहा सभों को इकट्ठे होने के लिए कहा गया है। इन सभी को वहा पहुंचे अभो कुछ ही देर हुई हामी कि खेमों और डेरो सलदे हुए कई ऊँट उस जगह आ पहुचे जिनक साथ बहुत से आदमी थे। रात चादनी होने के कारण रोशनी की कुछ जरूरत न थी। फर्राशों ने खमा डरा खडा करना शुरू किया और तब तक कुछ कुछ फौज भी इकटठी होने लगी। रनवीरसिह ने बीरसन से पूज, आपको कौत देवकीनन्दन खत्री समग्र १०५६