पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८१

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De सूरत बनकर लागों का भड़काने के लिए आया है जा कोई उसका सिर काट कर मरे पास लागा उसे एक लाय रुपये इनाम दूगी। आज इत्तिफाक ही स यह कम्बख्त मरे हाथ आ फसा है। चाया-(कुछ सोच कर शायद ऐसा ही हा मगर तुमने ता कहा था कि में भूतनाय और देवीसिह को पीछे पीछे इस सुरग में आई हू, फिर य लाग तुम्हें कैसे मिल ? क्या ये लाग पहिले ही स सुरग में मौजूद थे? माया-हा जब मैं सुरग में आ चुकी और भूतनाथ तथा दवीसिह का यहाश कर चुकी उसके बाद शायद य लाग (हाथ का इशारा करके) इस तरफ से यहां आ पहुंचे। उस समय बेहाशी वाली गरुद से निकला हुआ धूआ यहाँ भरा हुआ था जिसक सवव सब लोग भी यहाश होकर लेट गए। बाबा-बहाशी वाली बारूद से निकला हुआ बुआ क्या तुमने इन लोगों का किसी नई रीति से बेहोश किया है ? माया-जब मैं दुखी होकर अपने घर से भागी तो (तिलिस्मी तमचा और गली दिखा कर ) यह पिलिस्मी तमचा और गोली निकाल कर लती आई थी इसी के जरिए स चलाई हुई तिलिस्मी माली न अपना काम किया आप तो इसका हाल जानत ही है। यावा-टीक है ( राजा गापालसिह की तरफ देख कर ) मगर में कस कहू कि यह वीरन्दसिह का ऐयार है । अच्छा देखा में अभी इसका पता लगाए लेता हूँ। बाधाजी ने अपने झाल में स एक शीशी निकालो जिसम किसी तरह का अर्फ था। उस अर्क से अपनी उगली तर करक राजा गापालसिह के गाल में जहा एक तिल का दाग था लगाया और कुछ ठहर कर कपडे स पोंछ डाला तथा फिर गौर करन के बाद बोले- बाबा-नहीं नहीं यह चीरेन्द्रसिह के ऐयार नहीं है इन्होने अपने चेहरे को रगा नहीं है और न नकली तिल का दाग ही बनाया है। अगर ऐसा होता है तो इस दवा के लगने से छूट जाता। यह बेशक राजा गोपालसिह है और तुमने इनके बारे में नि सदेह हम लोगो को धोखा दिया। माया-एसान समझिए चीरन्द्रसिह करयार लाग अपने चेहरे पर कच्चा रंग नहीं लगाते। अभी हाल ही मतेजसिह ने मेर एयार विहारी सिह का धोखा दिया उसने उसका चहरा एसा रग दिया था कि हजार उद्योग करने पर नी विहारीसिह उस साफ न कर सका। इसका खुलासा हाल आप सुनेंग नो ताज्जुब करेंगे। वीरेन्दसिह के एयार लोगवडे घूत और चालाक है । याया-मगर नहीं मरी दवा बेकार जान वाली नहीं है हॉ एक बात हो सकती है। माया-वह क्या? वावा-शायद तुमने राजा गोपालसिह क यार में हम लोगों को धोखा न दिया हो और खुद ये ही हम लोगों को धाखा दकर कहीं चले गए हों। माया-नही यह भी नहीं हो सकता। बाधा-यशक नहीं हो सकता। अच्छा में इन्हें हाश म लाला हू, जो कुछ है इनकी बातचीत से आप ही मालूम हो जायगा। माया-नहीं नहीं ऐसा न कीजिए पहिले इन सयों को इसी तरह बहाश लजाकर अपने वगले में कैद कीजिए फिर जा होगा देखा जायगा। वाचा-मैं यह बात नहीं मान सकता । माया-(जार दकर) जो मैं कहती हू वही करना होगा । बाबा-कदापि नहीं मुझे इस विषय में बहुत कुछ शक हैं और राजा साहब कसाथ ही साथ में कमलिनी और लाडिली का भी होश में लाऊगा। इतना सुनत ही मायारानी की हालत बदल गई क्रोध के मारे उसके होंठ कॉपन लगे उसकी आँखें लाल हो गई और वह तिलिस्मी खजर म्यान से निकाल कर क्रोध भरी आवाज में बाबाजी से बोली क्या तुम्हें किसी तरह की शेखी हो गई है ? क्या तुम मेरा हुक्म काट सकते हो? क्या तुम अपने को मुझसे बदकर समझते हो? क्या तुम नहीं जानते कि मै तिलिस्म की रानी हूँ, जो चाहू सा कर सकती हूँ और तुम मेरा कुछ भी नहीं विगाड सकते? लोमै साफ साफ कहे देती हू कि बेशक यह गोपालसिद्ध है। धनपत से साथ सुख भागने और इनको सता कर तिलिस्म का भेद जानने के लिए मैने इन्हें कैद कर रक्खा था मगर कन्यख्त कमलिनी ने इन्हें कैद से छुड़ा दिया। अब मैं तुम्हारे सामने इन सभों का सिर काट कर अपना गुस्सा मिटाऊगी और तुम मरा कुछ भी नहीं कर सकते अगर ज्यादे सिर उठाओगे तो (खजर दिखाकर)इसी खजर से पहिले तुम्हारा काम तमाम करूँगा । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९ ४७३