पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८२

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सुरग के अन्दर आकर दर्वाजा बन्द कर दिया था और अब मुझसे वह दर्वाजा किसी तरह नहीं खुल रहा है। ईश्वर ने बडी कृपा की जा इस समय आपको यहा भेज दिया थलिए पीछे हटिए पहिले मुझे दर्वाजा खोलने की तकीय पता दीजिए ता और कुछ बातचीत होगी । दारोगा-(हस कर ) अब सो में आ ही चुका हूँ, तुम क्यों घबड़ाती हो ? पहिले यह तो बताओ कि वे दोनों ऐयार कहा है जिनके पीछे पीछे तुम यहाँ आई थी? इस समय मायारानी की विचित्र अवस्था थी। वह मुंह से बातें तो कर रही थीं मगर दिल में यही सोच रही थी किसी तरह राजा गोपालसिह का भेद छिपाना चाहिए जिसमें बावाजी (दारांगा) को यह न मालूम हो कि मैंने वर्षों से गोपालसिह को कैद कर रक्खा था मगर इसके बचाव की कोई सूरत ध्यान में नहीं आती थी। वह अपने उछलते हुए कलेजे को दवाने की कोशिश कर रही थीं मगर वह किसी तरह दम नहीं लेता था। उसके चेहरे पर भी खौफ और तरदुद की निशानी पाई जाती थी जो उस समय और भी ज्यादे हो गई जब यावाजी ने यह कहा- 'वेदोनो ऐयार कहा है जिनके पीछे पीछे तुम यहाँ आई थीं? आखिर लावार होकर मायारानी ने बातें बना कर अपना काम निकालना चाहा और अपन को अच्छी तरह समाल कर बात चीत करने लगी। माया (पीछे की तरफ इशारा करक) वे दोनों ऐयार उधर पडे हुए है। मैंने अपनी हिकमत से उन्हें वेहोश करके छोड़ दिया है। केवल दोनों ही नहीं बल्कि कमलिनी और लाडिली मी मय एक ऐयार के मेरे फन्दे में आ पड़ी है जिनसे यकायक इसी सुरग में मुलाकात हो गई थी। यावा (चौक कर ) कमलिनी और लाडिली ! माया-जी हाँ शायद आपने अभी तक सुना नहीं कि लाडिली भी कमलिनी से मिल गई। यावा-ओफ यह खबर मुझे क्योंकर मिल सकती थी क्योंकि मैं ऐसे तहखाने में कैद था जहाँ हवा का भी जाना मुश्किल से हो सकता था। खैर चलो में जरा उन ऐयारों की सूरत तो देखू। अब बाबाजी उस तरफ बदे जहाँ राजा गोपालसिह कमलिनी लाडिली और दोनों ऐयार बेहोश पडे थे? बाबाजीक पीछे पीछे मायारानी और नागर भी स्याह पत्थरों को बचाती हुई उसी तरफ बढी। वहाँ की जमीन में यनिस्मत सफेद पत्थरों के स्याह पत्थर की पटरियाँ (सिल्ली) बहुत कम चौड़ी थी। यद्यपि बाबाजी से मायारानी डरती दयती और साथ ही इसके उनकी इज्जत और कदर भी करती थी परन्तु इस समय उसकी अवस्था में फर्क पड़ गया था। वह घड़कतं हुए कलेजे के साथ चुपचाप बाबाजी के पीछे जा रही थी मगर अपना दाहिना हाथ तिलिस्मी खजर के कब्जे पर जो अब उसकी कमर में था इस तरह रखे हुए थी जैसे उसे म्यान से निकाल कर काम में लाने के लिए तैयार है। शायद इसका सयय यह हो कि वह वावाजी पर वार करने का इरादा रखती थी क्योंकि उसे निश्चय था कि राजा गोपालसिह को देखते ही बायाजी बिगड़खड़े होंगे और एक गुप्त भेद का जिसकी उन्हें खबर तक न थी पता लग जाने के कारण उसकी लानत और मलामत करेंगे। साथ ही इसके बाबाजी की चाल भी बेफिक्री कीन थी वह भी कनखियों से आगे पीछे अगल बगल देखते जात थे और हर तरह से चौकन्ने मालूम पड़ते थे। जब बाबाजी उन लोगों के पास आ पहुंचे तो मोमबत्ती की रोशनी में एक एक को अच्छी तरह देखने लगे। जब उनकी निगाह राजा गोपालसिह पर पड़ी तो वे चौके और मायारानी की तरफ देख कर बोले है यह क्या मामला है में अपनी आँखों के सामने किसे बेहोश पड़ा देख रहा हू ।। माया (लड़खडाई आवाज स ) इसी के बारे में मैंने कहा था कि एक ऐयार भी आ फसा है । दावा-आफ यता राजा गोपालसिंह है जिन्हें मरे काई वर्ष हो गए नहीं नहीं मरा हुआ आदमी कभी लौट कर नहीं आता। (कुछ रुक कर) यद्यपि दु ख या रज के सवव से इनकी सूरत में फर्क पड़ गया है परन्तु मेरे पहिचानने में फर्क नही है। पेशक यह हमार मालिक राजा गोपालसिह ही हैं जिनकी नेकिमान लोगों का अपना तावेदार बना लिया था जिनकी बुद्धिमानी ओर मिलनसारी प्रसिद्ध थी और जिसके सबब से इनकी तावेदारी में रहना लोग अपनी इज्जत समझते थे 'आफ तुमन इनफ बारे में हम लोगों का धोखा दिया यद्यपि तुम्हारी चुरी चाल चलन को मै खूब जानता था और जान बूझ कर कई कारणों से तरह दिए जाता था मगर मुझे यह यघर न थी कि उस चालचलन की हद यहाँ तक पहुच चुकी है ( गोपालसिंह की नब्ज देख कर ) शुक्र है शुक्र है कि में अपने मालिक का जीता पाता है। भाया-वाबाजी आप जल्दी न कीजिए और बिना समझे चूझे अपनी बातों से मुझे दुख न दीजिए। जो में कहती ह उसे मानिय ओर विश्वास कीजिए कि यह वीरेन्दसिह का ऐयार है और राजा की सूरत बन कर कई दिनों से रिआया को भडका रहा है। इसकी खबर मुझको बहुत पहिले लग चुकी थी और मैने मुनादी भी करा दी थी कि एक ऐयार राजा की . देवकीनन्दन खत्री समग्र ४७२