पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८७

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ari देखने के बाद यह कहते हुए धूम पड़ कि जो हा मगर अजायबघर किसी तरह धर्याद नहीं हो सकता । बाबाजी के मल क बर्याद होने का सवय पाठक समझ ही गय होगे क्योंकि ऊपर के बयान में मायारानी और नागर की बातचीत से वह भेद साफ साफ खुल चुका है। अव बाबाजी इस विचार में पड़े कि मायारानी को ढूंढना और उससे दो दोधात करनी चाहिए। ऐसा करने में बाधाजी को विशेष तकलीफ उठानी न पडी क्योंकि थोड़ी ही दूर पर उहें उन लोड़ियों में से एक लोडी मिली जो उस समय मायारानी के साथ थी जव चाचाजी कैदियों को तहखाने में बन्द करके दीवान से मिलने के लिए जमानिया की तरफ रवाना हुए था बाबाजी । उस लोडी से केवल इतना ही पूछा मायारानी कहाँ ? लाडी-जय आप जमानिया की तरफ चले गये तो मायारानी हम लागों को माथ लेकर दिल बहलान के लिए इस जगल में टहलने लगी और धीरे धीरे वहाँ से कुछ दूर चली गई। ईश्वर ने बड़ी कृपा की कि रानी साहर के दिल में यह चात पैदा हुई नहीं तो हम लोग भी टुकड़े-टुकड हाकर उड गये हाते क्योंकि थोड़ी ही देर बाद एक भयानक आवाज सुनने में आई और जब हम लोग इस वगले के पास आए ता मिटटी और गर्द के सश्य से अधकार हो रहा था। हम लोग डर कर पीछे की तरफ हट गये और अन्त में इस वगन्ने की ऐसी अवस्था देखने में आई जो आप देख रहे है। लाचार मायारानी न यहाँ ठहरना उचित न समझा और नागर के साथ काशीजी की तरफ रवाना हो गई। यावा-और तुझे इसलिए यहाँ छोडगई कि जब मै आऊँ तो बातें बना मेरे क्रोध को बढ़ावे । लौडी-जीईईई बाबा और तुझे इसलिए यहाँ छोड़ गई कि जब मैं आऊँ तो बातें बना कर मेरे क्रोध को बढावे । दे कि जो कुछ तूने किया बहुत अच्छा किया मगर इस बात को खूब याद रखियो कि नेकी का नतीजा नेक है ओर बद को कदापि सुय की नींद सोना नसीब नहीं हाता। अच्छा ठहर में एक चीठी लिख देता हू सो लेती जा और जहाँ तक जल्द हो सके मिल कर मायारानी के हाथ में दे दे। इतना कहकर बाबाजी थैठ गए और अपने बटुए स सामान निकाल कर चीठी लिखने लगे जब चीठी लिख चुके तो उस लौड़ी के हाथ में दे दिया और आप उत्तर तरफ रवाना हो गये। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह लौडी बायाजी की चीठी लिए हुए काशीजी जाएगी और मायारानी से मिल कर चीठी उसके हाथ में देगी मगर हम आपको अपने साथ लिए हुए पहले ही काशीजी पहुचते है और देखते है कि मायारानी किस धुन में कहाँ बैठी है या क्या कर रही है। पहर रात से ज्यादे जा चुकी है। काशी में मनोरमा वाले मकान के अन्दर एक सजे हुए कमरे में मायारानी नागर के साथ बैठी हुई कुछ यात कर रही है। इस समय कमरे के सिवाय नागर और मायारानी के और कोई नहीं है। कमरे में यद्यपि बहुत से बेशकीमत शीशे करीने के साथ लगे हुए है मगर रोशनी दो दीवारगीरों में और एक सब्ज कवल वाल शमादान में जो मायारानी के सामन गद्दी के नीचे रक्खा हुआ है हो रही है। मायारानी सब्ज मखमल की गद्दी पर गाव तकिये के सहारे बैठी है। इस समय उसका खूबसूरत चेहरा जो आज के तीन चार दिन पहिले उदासी और बदहवासी के कारण येरौनक हो रहा था खुशी और फतहमन्दी की निशानियों के साथ दमक रहा है और वह किसी सवाल का इच्छानुसार जवाब पाने की आशा में मुस्कुराती हुई नागर की तरफ देख रही है। नागर-इसमें तो कोई सदेह नहीं कि बड़ी भारी बला आपके सिर से टली परतु यह ना समझना चाहिए कि अब आप को किसी आफत का सामना न करना पड़ेगा। माया इस बात को मै जानती हू कि जमानिया की गद्दी पर बैठने के लिए अब भी बहुत कुछ उद्योग करना पडगा मगर मैं यह कह रही है कि सबसे भारी बला जो थी वह टल गई। कम्बख्त कमलिनी ने भी बड़ा ही उधम मचा रक्या था अगर वह वीरेन्द्रसिह की पक्षपती न होती तो मै कभी की दोनों कुमारों का मौत की नींद सुला चुकी होती। नागर-वेशक वेशक। माया-और भूतनाथ का मारा जाना भी बहुत अच्छा हुआ, पोंकि उसे इस मकान का बहुत कुछ भेद मालूम हो चुका था और इस सब से इस मकान के रहने वाले भी फिक्र नहीं रह सकते थे। मगर देखो तो सही हरामजादे दीवान को क्या हो गया जो एक दम मुझसे फिर गया बल्कि मुझको गिरफ्तार करने का उद्योग करने लगा। नागर-जरूर यह बात भी उन्हीं नकाबपोशों की बदौलत हुई है। माया-ठीक है पहिले तो मै बेशक ताज्जुब मे थी कि न मालूम वे दोनो नकाबपोश कौन थे और कहाँ से आये ये और दीवान तथा सिपाहियों के बिगड़ने का सवच करल यही ध्यान में आता था कि धनपत का मद खुल जाने से उन लोगों ने मुझे बदकार समझ लिया मगर अब मुझे निश्चय हो गया कि उन दोनों नकाबपोशों में से एक तो जरूर गोपालसिह था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ९ ४७९