पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४८८

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नागर-मुझे भी यही निश्चय है बल्कि अभी यही बात अपने मुह से निकालने वाली थी। उसके सिवाय और कोई ऐसा नहीं हो सकता कि केवल सूरत दिखा कर लोगों को अपने वश में कर ले। सिपाहियों को और दीवान को जलर इत्त चात का निश्चय हो गया कि गोपालसिंह को तुमने कैद कर रखा था। खैर जो होना था सो हो गया अब तो राजा गोपालसिह का नाम निशान ही न रहार्जा फिर जाकर अपना मुह उन लोगों को दिखायेंगे, अब थोर ही दिनों में उन लोगों को निश्चय करा दिया जायगा कि वह राजा बीरेन्द्रसिह का कोई एयार था। नाया--हारा करना बहुत ठीक है और मेरे नजदीक अब यह काई बड़ी बात नहीं है कि बेईमान दीवार को गिरफ्तार फर लू या मार डालू, मगर एक यात का खुटका जरूर है। नागर-वह क्या? माया-कपल इतना ही कि दीवान को मारने या गिरफ्तार करने के साथ ही साथ राजा वीरेन्द्रसि की उस फौज का भी मुकाबला करना पड़ेगा जा सरहद पर आ चुकी है। नागर-इसमें तो कुछ भी नहीं है और इस बात का भी विश्वास नहीं हो सकता कि तुम्हारी फौज तुम्हारा पक्ष लकर लड़ने के लिए तैयार हो जाएगी। फौजी सिपाहियों के दिल से गोपालसिह का ध्यान दूर होना दो एक दिन का काम नहीं है। माया-(कुछ सोच कर ) तो क्या मैं अकाली राजा वीरेन्द्रसिह की फौज को नहीं हटा सकती। नागर-सो तो तुम्ही जानो। माया-बेशक मैं ऐसा कर सकती हू मगर अफसोस. मेरा प्यारा घनप धनपत का नाम लेते ही मायारानी की आखें डबडबा आई। गर ने अपने आपल से उसकी आय माछी और बहुत कुछ धीरज दिया। इसी समय दर्वाजा के बाहर से चुटकी बजाने की आवाज आई, जिसे सुन सागर समझ गई कि कोई लौडी यह! आया चाहती है। नागर न पुकार कर कहा कौन है चली आओ। वही लौडी भीतर आती हुई दिखाई पड़ी जो बर्याद भये हुए बगले के पास बाबाजी से मिली थी और जिसके हाथ वायाजी ने मायारानी के पास चीटी भेजी थी। उसको देखते ही मायारानी चैतन्य डा दैठी और बोली 'कहो दारोगा से मुलाकात हुई थी। लौडी-जी हाँ। माया-(मुरकुर कर ) वह तो बहुत ही बिगदा हाँगा । लौंडी-हाबहुत झुझलाये और उछले कूदे आपकी शान में कड़ी-कड़ी बातें कहने लग मार मै चुपचाप पडी सुनती रही अन्त में बोले अच्छा मैं एक चीटी लिख कर दताह ले जाकर अपनी मातारानी काद दीजियो। मायान्ता क्या उसने चीठी लिख कर दी। लौडी-जी हा, यह मौजूद है लीजिए। लोजी ने चीटी मायारानी के हाथ में दे दी और मायारानी न यह कह कर वोठी ले ली। 'दखना चाहिए इसमें दारोगा साहब क्या रारा लाये है इसके बाद वह चीठी नागर के हाथ में देकर बोली ला इसे तुम ही पढो । नागर चीठी खोल कर पड़ने लगी। उस समय भायारानीकी निगाह नागर के चहर पर थी। आधी चोठी पढने के बाद नागर के चेहरे पर हवाई उड़ने लगी और डर के मारे उसका हाथ कापने लगामायारानी ने घबड़ा कर पूछा क्यो क्या हाल है कुछ कहा नो? इसके जवाब में नागर ने लम्बी सारा लेकर धीठी मायारानी के सामने रख दी और बोली ओह, मेरी सामर्थ्य नहीं कि इस चीठी को आखिर तक पद सफ़् । हाय नि सन्देह वीरसिह के एयासे का मुकाबला करना पूरा पूरा पागलपन है। मायारानी ने घबड़ा कर चीठी उठा ली और स्वय पढने लगी पर यह भी उस चीठी को आधे से ज्यादान पढ सकी। पसीना छूटन लगा शरीर कापने लगा दिमाग में चक्कर आने लगे यहातक कि अपन को किसी तरह सम्हाल न सकी और बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ी। ॥ नौवा भाग समाप्त ।। देवकीनन्दन खत्री ममग्र