पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९

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LE यहा कितनी इकटठी होगी और उसका सेनापति कौन है?" वीरसेन ने कहा 'फौज दस हजार से ज्याद नहीं है और उसका सेनापति यही ताबदार आपके सामने हाजिर है।' स्नचीर-इससे ज्यादे फौज की जरूरत ही क्या है ? पीरसन-आपका कहा ठीक है मगर वह बडा ही कट्टर है, और इतन से ज्यादे लड़ाको का बन्दायस्त कर सकता है। रनवीर--अफसोस तुम्हारी हिम्मत बहुत छोटी मालूम होती है। वीरसेन-मेरी हिम्मत जा कुछ है और होगीयह तो मौके पर आपको मालूम ही होगा मगर आप खुद इसे साच सकते है कि वेसार की फौज कहा तक काम कर सकती है और मेरा सर किस ढग का है हो आज आपकी ताबदारी से अलवते हम लोगों का हौसला दूना हो रहा है और बहुत सा गुस्सा भी मिजाज को तेज कर रहा है। पाँच दिन तक धीर धीरे बराबर फौज इकट्ठी होती रही और रनवीरसिह अपने मन माफिक उसका इन्तजाम करते रहे। छठे दिन उनकी फौज पूरे तौर पर तैयार हो गई और तय रनवीरसिह न वीरसेन से कहा 'अव वालसिह के पास दूत भेजना चाहिये। चीरसेन-मेरी समझ में तो एकाएक उसके ऊपर चढाई कर देना ही ठीक होगा। रनवीर-सो क्यों ? वीरसेन-क्योंकि हमारी नीयत का हाल अभी तक उसे कुछ भी मालूम नहीं और वह बिल्कुल भैठा है ऐसे समय में उसको जीतना कोई मुश्किल न होगा। रनवीर-नहीं नहीं, ऐसा कभी न साचना चाहिये हम लोग धोखे की लडाई नहीं लडते । वीरसेन चालसिह और उसकी फौज बडी ही कट्टर है महारानी के पिता को उसने तीन दफे लडाई में जीता और आज तक हमारी महारानी का हौसला कभी न पड़ा कि उसका मुकाबला करें और इसी सबब से उन्होंने कैसी कैसी तकलीफे उठाई सो भी आपको मालूम ही हो चुका है। रनवीर-जो हो मगर मै तो उससे कह बद के लडूंगा । वीरसेन में समझता है कि ऐसा करने के लिये महारानी भी आपको मना करेंगी? रनवीर-मैं इसमें उनकी राय न लूगी। इसी तरह की बात वीरसेन से देर तक होती रही यहाँ तक कि सूर्य अस्त हो गया। उसी समय किसी आदमी ने खेमे के अन्दर आकर रनवीरसिह के हाथ में एक चिट्ठी दी। चिट्ठी पढते ही रनबीरसिह की अजब हालत हो गई। इतने दिनों तक हर तरह की मुसीवत और रज उठाने का ख्याल तक उनके जी स जाता रहा और गम की जगह खुशी ने अपना दखल जमा लिया मगर यह खुशी भी अजव ढग की थी। दुनिया में कई तरह की खुशी होती है और हर तरह की खुशी का रग ढग और भाव जुदा ही होता है। यह खुशी जो आज रनवीरसिह को हुई है निराले ही ढग की है. जिसके साथ कुछ तरवुद का लेश भी लगा हुआ है। विट्ठी पढने के थोड़ी देर बाद रनवीरसिह की आँखें सुर्ख हो गई, वदन कॉपने और रोमांच होने लगा, सॉस तेजी के साथ चलने लगी बेचैनी के साथ इधर उधर देखने लगे। मगर थोड़ी ही देर में रगत फिर बदली वहाँ से उठ खड़े हुए और वीरसेन से इतना कहते कहते खेमे के बाहर हुए-- अब मैं कल तुमसे मिलूंगा किसी जरूरी काम के लिए जाता हूँ ! वीरसेन खूब जानते थे कि रनवीरसिह को किस बात की खुशी है या किस बात पर क्रोध हुआ है वह किसका आदमी है जिसने इन्हें पत्र दिया और अब ये कहाँ जा रहे हैं इस लिये घोडा तैयार करके हाजिर करने क लिये हुक्म देकर वे खुद भी रनवीरसिंह के साथ साथ खेमे के बाहर आ गये। घोड़ा हाजिर किया गया रनवीरसिह सवार हुए. वह चिट्ठी लाने वाला भी अपने घोड़े पर सवार हुआ जिसे वह खेमे के बाहर एक छोटे से घेड के साथ बाँध गया था। जगल ही जगल दानों पश्चिम की तरफ रवाना हुए। ग्यारहवां बयान सूर्य अस्त हो चुका था पर वह चन्द्रमा जो सूर्य अस्त होने के पहिले ही से आसमान पर दिखाई दे रहा था। अब खूब तेजी के साथ माहताबी रोशनी फैला कर रनवीरसिह को रास्ता दिखाने और चलने में मदद करने लगा और ये भी खुशी से फूले हुए उस सवार के साथ जाने लगे। कभी कभी कहते थे कि कदम बढ़ाये चलो जिसके जवाब में वह खत लान वाला सवार कहता था कि राह ठीक नहीं है और जैसे जैसे हम लोग आग बढ़ेंगे रास्ता और भी खरान मिलता जायगा. कुसुम कुमारी gu