पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९०

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Gri , कुमार ने पड़ों से कई फल ताड़ के खाए और यने का पानी पीकर भख,प्यास की शान्ति की और इसके बाद घम घूम कर देखने लगे। उन्हें वॉअर आनन्दसिह के विषय में चिन्ता थी और चाहते थे कि किसी तरह शीघ उनसे मुलाकात चारो तरफ घूम फिर कर दखन बाद कुमार उरा मन्दिर में पहुंचे जा याग के बीधावाधम था। यह मन्दिर यहुन छोटा था और उसके आगे का सभामइप भी चार पान आदमियों से ज्यादं के बैठने के लायक नामन्दिर में प्रतिमा या शिवलिग की जगह एक छाटा या स्तरा था और इसके ऊपर एक भेजिए की भूरत पंडाई हुई यो भार उस अधी तरह दधमाल कर बाहर निकल आए और सभामउप में बैठ कर सून से लिपी हुई फितरा पढन लगे। उन्हें जन किताय का मतलब साफ साफ समझ में आता था। जय तफ बखूयो अचरा नहीं हुआ और निगा नाम दिया नाता ये उस किताब को पदत रहे इसके बाद किसाय सम्हाल कर उसी जगह लद गए और साचन लगे कि भाव पंगा करना चाहिये। उस याग म कुँअग्इद्रजीतसिंहको दो दिन बीत गए। इस योच में कई ऐसा काम नबर सी जिसस अपन माई कुँअर आदसिंह को खोज निकालते याबाग स बाहरणकल जाते या तितिरम नोडो में ही हाथ ल it होइदा दिन के अन्दर देख्न से लिखी हुई तिलिस्मी किताब को अच्छी तरह पद और सग गये लिंक उर ॐ मनल्य को इस तरह दिल में बैठा लिया कि अब उस किताब की उन्हें काइजरुरत न रही। ऐसा होने से तिलिस्म का पूरा पुरा हाल र मालूम हो गया और वे अपन को तिलिस्म तोड़न लायक समझाने लग खाने पीने के लिए उस चाग में वो और पा) की कुछ कमीन थी। तीसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद कुछ कार्रवाई करने के लिए भार फिर उत मड़िये की मूरत क गरा गए जा मन्दिर में चबूतरे को ऊपर बैठाइ हुई थी। वहीं कुमार को पनी कुछ ताका खच करनी पड़ी उन्होंने दोनो यजा कर भेडिये का बाई तरफ इस तरह घुमाया जैन कोइ पेच धुमाया जाता है। ती उचलकर घुमने बाद मा भड़िया घबूतर से अलग हो गया और जमीन के अन्दर से घरधराट की आवाज आने लगी। कुमार उस मेद्रिय का एक किनारे रस, कर बाहर निकल आए और राह देखने लगे कि अब क्या होता है। घण्ट भरसक वापर वह जावाज आती रही और फिर चोरे धीर कम होकर बन्द हा गई। कुमार फिर उस मन्दिर के अन्दर गए और देर किसहयूतरा जिस पर माया बैठा हुमा था जमीन के अन्दर धंस गया है और नीच उतरने के लिए सीदिरों दिखाई दे रही है। कुमार धडक नीचे उतर गए। वहीं पूरा अन्धकार था इसलिए तिन्निस्मीयजर से चादनीफरक पारा तरफ दराने लगे। यह एक कोठरा सजिनकी चौड़ाई बीस हाथ और लग्याई पत्चीस हाथ से ज्यादे न होगी। चारो तरफ की दीवारों में छाटे जेटे कई दाजे थे तो इस समय बन्द थाकोठरी के चारों कानो में पत्थर की चार मूरत थीं। ये चारों मूरते एक ही रमदम की और एसपीठाठ से खड़ा था सूरत शक्ल में कुछ भी फर्क न था या था नीता केवल इतना ही कि एक मूरन कायमखजर और बाकी तीन भूरतो के हाथ में कुछ भी न था कुमार पहिले उसी मूरत के पास गए जिसके हाथ में राजर था पहिल उसकी उंगलियों की तरफ ध्यान दिया। बाएं हाथ की उंगली में अँगूठी थी जिसे निकाल कर पहिन लेंगे क बाद खजर ले लिया और कमर मे लगा कर धीरे से बोल इस तिलिसा में एसे तिलिस्मी खजर के बिना वास्तव में काम नहीं चल सकता अब आन्दसिह मिल जाय तो यह खजर उसे दे दिया जाय। गडक समझ ही गये होगे कि मूरत के हाथ से जो खजर कुमार ने लिया वह उसी प्रकार का तिलिस्मो बजार था जैसा कि पहिले से एक कमलिनी की बदौलत कुमार के पास था। इस समय कुअर इन्द्रजीतसिंह जो कुछ कार्रवाइ कर रहे है वह बिना जाने वझे नहीं कर रहे हैं बल्कि सून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब के मतलबका समक्ष अपनी विम्लनुद्धि से जाँच और ठीक करम करते है तथा आने के लिए भो पाठकों को ऐसा ही समझना चाहिए। उवि कुमार उदरवाजां की तरफ गौर से दखने लग जाचारां तरफ की दीवारों में दिखाई दे रहे थाउन दरवाजों में केवल चार दरवाजे भार तरफ असली थे और बाकी के दरवाजे नकली थे अर्थात् भार दरवाजों को.छोड़कर बाकी रणजों क कपल निशान दीवारों में से मगर ये निशान भी एस थे कि जिन्हें देखन से आदमो पूरा पुरा धोखा खा जाय। कुमार पुरवतरफ की दीवार की तरफ गये और उस तरफ जादाजा था उसे जोर से लात मारकर खोल डाला। इसके बाद बाए तरफ के कोने में जो भूरत थी उसे बगल में दाव चटाना चाहा मगर यह उठन सकी क्योंकि उनके दाहो हाथ में वह चमकता हुआ तिलिस्मी खजर था। आखिर कुमार ने खजर कमर में रख लिया । यधपि ऐसा करने से वहाँ पूर्ण रूप से अन्धकार हो गया मगर कुमार ने इसका कुछ विचार न करके अधेरे ही में दोनों हाथ रस मूल्त की कमर में फसागर जो किया और उसे जमीन से उखाड़ कर धीरे धीरे उस दाजे के पास लाए जिसे लात मार करखाला था। वेयकीनन्दन खत्री समग्र