पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ori जव चौखट के पास पहुंचे तो उस मूरत को जहाँ तक जोर से बन पडा दर्वाज के अन्दर फेंक दिया और फुर्ती सं तिलिस्मी खजर हाथ में ले रोशनी करके सीढी की राह काठरी के बाहर निकल आय अर्थात् फिर उसी बाग में चले आये और मन्दिर से कुछ दूर हट कर खड हो गये। थोडी देर ता भार को एसा मालूम हुआ कि जमीन काप रही है और उसके अन्दर बहुत सी गाडियों दौड रही है। आखिर धीरे धीर कम होकर ये दोनों बातें जाती रहीं। इसके बाद कुमार फिर मन्दिर के अन्दर हो गए और सीडियो की राह उस तहखाने में उत्तर गए जहाँ पहिल गए थे। इस समय वहाँ तिलिस्मी खजर की रोशनी की कोई आवश्यकता न थी क्योंकि इस समय कई छोटे छाट सूराओं में से राशनी बखूबी आ रही थी जिसका पहिल नाम निशान भी न था। कुगर चारा तरफ दराने लगे मगर पहिल की बनिस्बत कोई नई बात दिखाई न दी। आखिर पूरब तरफ की दीवार के पास गए और उस दर्वाजे के अन्दर झॉक के देरमा जिस लात मार कर खाला था था जिसके अन्दर मूरत को जोर से फेंका था। इस समय इस कोठरी के अन्दर भी चाँदनी थी और यहाँ की हर एक चीज दखाई दे रही थी। यह कोठरी बहुत लम्बी चाड़ीन थी मगर दीवारों में छोटे छोट कई खुले दर्धाज दिखाई दे रहे थे जिससे मालूम होता था कि यहाँ से कई तरफ जान के लिए सुरग या रास्ता है। कुमारन उस भूरत को गौर से देखा जिसे उस काठरी के अन्दर फेंका था। उस मूरत की अवस्था ठीक वैसी हो रही थी जैसी कि चून की कली की उस समय हाती है जब थाडा सा पानी उस पर छाडा जाता है अर्थात टूट फूट के वह बिल्कुल हीवर्वाद हो चुकी थी। उसके पेट में एक चमकती हुई चीज दिखाई दे रही थी जो पहिले तो उसके पट के अन्दर रही होगी मगर अब पेट फाट जान के कारण बाहर हा रही थी। कुमार ने यह चमकती हुई चीज उटा ली और तहखाक बाहर निकल मन्दिर कमण्डप में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिये। थोडी ही दर वाद धगधमाहट की आवाज से मालूम हुआ कि मन्दिर के अन्दर तहखान वाली सीढ़ियों पर कोई चढ रहा है। कुमार उसी तरफ देखने लगे। यकायक कुँअर आन्नदसिह आते दिखाई पड़े। बडे कुमार खुशी के मारे उठ खड हुए और आखों में प्रमाभु की दा तीन पदें दिखाई देने लगी। आनन्दसिह दौड कर अपने बड नाई के पैरों पर गिर पड़े। इन्द्रजीतसिह ने झट से उठा कर गले लगा लिया। जब दोना माई खुशी खुशी उस जगह बैठ गए तय इन्द्रजीतसिह न पूछा, 'कहो तुम किस आफत में फंस गए थे और क्योकर छूटे ? कुअर आनन्दसिह ने अपने फस जाने ओर तकलीफ उठाने का हाल अपने बड़े भाई के सामने कहना शुरु किया । लिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में कुँअर आनन्दसिह जिस तरह अपने बड़े भाई से विदा होकर खूटियों वाले तिलिस्मी मकान का अन्दर गए थे और चादी वाल सन्दूक में हाथ डालने के कारण फंस गये थे उसका इस जगह दोहराना पाटका का समय नष्ट करना हे हों वह हाल कहने पद फिर जा कुछ हुआ ओर कुमार ने अपने बड भाई से बयान किया उसका लिखना आवश्यक है। छोटे कुमार ने कहा- जब मेरा हाथ सन्दुक में फंस गया तो मैन छुड़ाने के लिए बहुत कुछ उद्योग किया मगर कुछ न हुआ और घण्टों नफ फंसा रहा इसके बाद एक आदमी चेहरे पर नकाब डाल हुए मेरे पास आया और वाला घबडाइए मत थोडी देर और सब कीजिए मैं आपको छुड़ाने का बन्दाबस्त करता हूँ। इस बीच में वह जमीन हिलने लगी जहों मैं था बल्कि तमाम मकान तरह तरह के शब्दों से गूज उठा एसा मालूम होताथा मानो जमीन के नीचे सेकड़ों गाड़िया दौड रही है। वह आदमी जो मेरे पास आया था यह कहता हुआ ऊपर की तरफ चला गया कि मालूम होता हे कुमार और कमलिनी ने इस मकान के दर्याजे पर बखेडा मचाया है मगर यह काम अच्छा नहीं किया । थोडी दर वाद वह नकाबपोश नीचे उतरा और बराबर नीचे चला गया मे समझता हूं कि दर्वाजा खोल कर आपसे मिलन गया हागा अगर वास्तव में आप ही दरवाजे पर होंगे। इन्द्रजीतसिह-हा दरवाजे पर उस समय मै ही था और मेरे साथ कमलिनी और लाडिली भी थीं अच्छा तब क्या हुआ ? आनन्दसिह-तो क्या आपने कोई कारवाई की थी? इन्द्रजीतसिह-की थी उसका हाल पीछे कहूगा पहिले तुम अपना हाल कह जाओ। आनन्दसिह ने पिर कहना शुक्त किया- उस आदमी का नीध गए हुए चौथाई घड़ी भी न हुई होगी कि जमीन यकायक जोर से हिली और मुझे लिए ए सन्दूर्फ जमीन के अन्दर घुस गया उसी समय भेग हाथ छूट गया और सन्दूक से अला हाकर इधर उधर टटालने लगा क्योंकि वहाँ बिल्कुल ही अन्धकार था यह भीनमालूम होता था कि किधर दीदार है और किधर जाने का रास्ता है। ऊपर की तरफ जहाँ सन्दुक घसजाने से गड़हाहा गया था देखने से भी कुछ मालूमन होता था लाचार मैने एक तरफ का रास्ता लिया और वरावर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १० ४८३