पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९२

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ही चले जाने का विचार किया परन्तु सीधा रास्ता 7 मिला कमी ठाकर खाता कभी दीवार में अड़ता कभी दीवार या धूम कर चलना पड़ता जब दुखी हा जाता तो पीछ की तरफ लोटा चाहता था मगर लोट न सकता था क्योंकि लौटत समय तबीयत और भी घबड़ाती और गर्मी मालूम होती थी वाचार आगे की तरफ बढना पड़ता। इस बात का खूब समझता था कि मैं आगे ही की तरफ बढता हुआ बहुत दूर नहीं जा रहा है बल्कि चमकर या रहा है मगर क्या कर लाचार था अक्ल कुछ काम न करती थी। इस बात का पता लगाना बिल्कुल " असम्भव था कि दिन है कि रात सुयह है या शाम बल्कि वही दिन है या दूसरा दिन मगर जहा तक मैं सोच सकता है कि इस खराबी म आट-दस पहर बीत गय हाग। कभी ता मै जीवन से गिराश हो जाला कभी यह सोच कर कुछ ढाढस हाती कि आप मरे छुसार का जरुर कुछ उद्योग करग। इसी बीच में मुड़ा कई खुले हुए दर्वानों का अन्दर पैर रखने और फिर उसा या दूसर दर्वाज की राह स याहर निफलन की भी नौबत आई मगर छुटकारे की कोई सूरत नजर आई। अन्त में एक कोठरी के अन्दर पाचकर बदहवास हो जमीन पर गिर पड़ा क्योंकि भूरा-प्यास के मारे दम निकला जाता था। इस अवस्था में भी कई पहर बीत गय आखिर इस समय स घरे भर पहिले मर कान में एक आवाज आई जिससे मालूम हुआ कि इस कोठरी के बगल वाली कोठरी का दर्वाजा किरन खोला है। मुझ यकायक आपका ययाल हुआ। थाड़ी ही देर बाद जमीन हिली और तरह तरह के शब्द हान लगा आचिर यकायक उजाला हा गया तव मर जारजान आई बड़ी मुश्किल स मै उटा सामन का दर्याजा खुला हुआ पाया निकल के दूसरी काठरी में पहुवा जहाँ दाज के पास ही दया कि पत्थर का एक आदमी पड़ा ह जिसका शरीर पानी पहुए धुन की फली की तर, फूला फटा हुआ है। इसके बाद में तीसरी कोठरी में गया और फिर सीढिया चढ़ कर आपके पास पहुचा । कुँअर इन्दजीतसिह न अपने छोट माई हाल पर बहुत सास किया और कहा- यहाँ मयों की आर पानी की कमी नहीं है पहिल तुम कुछ खा पी लो ता में अपना हाल तुमरो कहूगा । दोनों भाई वहाँ स उटे और शुशी खुशी मवेदार पेड के पास जाकर पके हुए और स्वादिद मेवे खाने लगे। छाट कुमार बहुत भूखे और सुस्त हो रहे थे मेवे खाने और पानी पाने से उनका जी टिका हुआ और फिर दोनों भाई उसी मन्दिर के सभामण्डप में आ बैठे तथा यातचीत करने लगा कुजर इन्दजीतसिंह ने अपना पूरा पूरा हाल अर्थात जिस तर! यहाँ आये थे और जो कुछ किया था आनन्दसिर से कह सुनाया और इसक बाद कहा सून से लिखी इस किताब को अच्छी तरह पढ़ जान से मुझे बहुत फायदा हुआ। यदि तुम भी इसे इस तरह पढ़ जाओ और याद कर लाओ कि फिर इसकी आवश्यकता न रहे तो दोनों भाइ शीघ्र ही इस तिलिस्मी का तोड के नाम और दौलत पैदा करें। साथ ही इसके इस बात को भी समझ रक्खा कि याग में आकर तुम्हारा पतालगाने की नीयत स जो कुछ भने किया उससे इतना नुकशान अवश्य हुआ कि अब बिना तिलिस्म तोडे हम लोग यहा से निकल नहीं सकत । आनन्द-कुछ सोचकर) यदि ऐसा ही है और आपको निश्चय है कि रिक्तग्रन्थ के पढ़ जाने से हम लोग अवश्य तिलिग्म तोड सकेगे तो मैं इसी समय इसका पदना आरम्भ करता ह, परन्तु इसमें बहुत से लेख ऐसे हैं जिसका मतलब समझ में नहीं आता । इन्द्र-ठीक है मार में अभी कह चुका हू कि तुम्ह याजता हुआ जब मै खटियो वाल नकान या पास पहुधा ता राजा गापालसिह ने आनन्दसिह-( बात काट कर ) जी हा मुझ वसूवी याद है आपन कहा था कि राजा गापालसिह न कोइ एसी तीव आपका बताई है कि जिससे कयल रिक्तगन्य ही नही बल्कि हर एक तिलिस्मी किताब को पद कर उसका मतलब आप बखूबी समझ सकग अस्तु मर कहन का मतलब यह ना कि जब तक आप यह मुझ न बताएग तय तक इन्द्रजीतसिह--(इस कर ) इतनी उलझन डालन की क्या जरुरत थी । तो स्वयम यह भेद तुमसे कहन का तैयार हूँ, अच्छा सुनो। कुँअर इन्दजीतसिह न तिलिस्मी किताब को पढ कर समझने का भद जो राजा गोपालसिह स सुना था आनन्दसिह को बताया। इतन ही मे मन्दिर के पीछे की तरफ चिल्लान की आवाज आई दोनों भइयों का ध्यान एकदम उस तरफ चला गया और तब यह आवाज सुनाई पड़ी अच्छा अच्छा, तू मेरा सिर काट ले। मैं भी यही चाहती हूँ कि अपनी जिन्दगी में इन्दजीतसिह और आनन्दसिह को दुखी न देखू। हाय इन्द्रजीतरिरह अफसोस इस समय तुम्हें मेरी यावर कुछ भी न होगी। इस आवाज को सुन कर इन्द्रजीतसिह बेचैन और येताच हो गये और जल्दी से आनन्दसिंह से यह कहते हुए कि मिलिनी की आवाज मालूमपड़ती है मन्दिर के पीछे की तरफ झपटे और आनन्दसिह भी उनके पीछे पीछे चले। देवकीनन्दन खत्री समग्र ४४