पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/४९८

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स आप लोग उस भद का मतलब निकाल लेंगे। मायारानी ने मुझे समझाने की रीति से कहा था कि - यद्यपि आपका इस बात का रज है कि मैन गोपालसिह के साथ दगा की और यह भेद आपसे छिपा रक्खा मगर आप भी ता जरा पुरानी वार्ता को याद कीजिए खास करके उस अंधेरी रात की यातजिसमें मेरी शादी और पुतले की यदलोवल हुई थी आप ही ने तो मुझे यहाँ तक पहुचाया अब अगर मेरी दुर्दशा होगी तो क्या आप बच जायेगें मान लिया जाय कि अगर गोपालसिह को बचा ले लो लक्ष्मी देवी का यच के निकल जाना आपके लिए दुखदाई न होगा? और जब इस बात की खबर गोपालसिह को लगेगी तो क्या वह आपको छोड़ देगा? पेशक जो कुछ आज तक मैने किया है सव आप ही का कसूर समझा जायेगा। मैने इसे इसीलिए कैद किया था कि लक्ष्मीदेवी वाला भेद इसे मालूम न होने पावे या इसे इस बात का पता न लग जाय कि दारोगा की करतूत ने लक्ष्मीदेवी की जगह बस इतना कह कर वह चुप हो गई और मैंने भी इस भेद को सोचते हुए यह समझ कर इन बातों का कुछ जवाब देना उचिन न जाना और चुप हो रहा कि कहीं बात की बात में मेरा अनजानपन झलक न जावे और मायारानी को यह न मालूम हो जाय कि मै वास्तव में दारोगा नहीं हूँ। गोपाल-बस बस मायारानी के मुंह से निकली हुई इतनी ही बातें सबूत के लिए काफी है और बेशक यह कम्बख्त मेरी स्त्री नहीं है। अब मुझे ब्याह के दिन की कुछ बातें धीरे धीरे याद आ रही है जो इस बात को और भी मजबूत कर रही है और इसमें भी कोई शक नहीं कि हरामखोर दारोगा ही सब फसाद की जड है। कम-मगर उस हरामजादी की बातों से जैसा कि आपने अभी कहा यह भी साबित होता है कि दारोगा की मदद से अपना काम पूरा करने के बाद वह मेरी बहिन लक्ष्मीदेवी की जान लिया चाहती थी मगर वह किसी तरह बच के निकल गई। तेज-बेशक ऐसा ही है और मेरा दिल गवाही देता है कि लक्ष्मीदेवी अभी तक जीती है यदि उसकी खोज की जाय तो यह अवश्य मिलेगी। गोपाल-मेरा भी दिल यही गवाही देता है मगर अफसोस की बात है कि उसने मुझ तक पहुँचने या इस भेद को खोलने के लिए कुछ उद्योग न किया। कम-यह आप कैसे कह सकते हैं कि उसने काई उद्योगन किया होगा? कदाचित उसका उद्योग सफल न हुआ हो? इसके अतिरिक्त मायारानी और दरोगा की चालाकी कुछ इतनी कच्ची न थी कि किसी की कलई चल सकती फिर उस बेचारी का क्या कसूर? जब मै उसकी सगी बहिन होकर धोखे में फंस गई और इतने दिनों तक उसके साथ रही तो दूसरे की क्या बात है? उसके व्याह के चार वर्ष बाद जब मैं माता पिता के मर जाने के कारण लाडिली को साथ ले आपके घर आई तो भायारानी की सूरत देखते ही मुझे शक पड़ा परन्तु इस खयाल ने उस शक को जमने न दिया कि कदाचित चार वर्ष के अन्तर ने उसकी सूरत शक्ल में इलना फर्क डाल दिया हो और यह आश्चर्य की बात है भी नहीं बहुतेरी कुँआरी लडकियों की सूरत शक्ल ब्याह होने के तीन चार वर्ष बाद ऐसी बदल जाती है कि पहिचानना कठिन होता है। तेज-प्राय ऐसा होता है यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कम--और कम्बख्त ने हम दोनो बहिनों की उतनी ही खातिर की जितनी बहिन बहिन की खातिर कर सकती है मगर यह बात तभी तक रही जब तक उसने ( गोपालसिह के तरफ इशारा करके ) इनको कैद न कर लिया था। गोपाल-मर साथ तो रस्म और रिवाज ने दगा की व्याह के पहिले मैने उसे देखा ही न था फिर पहिचानता क्योंकर? कम-शक रडी चालाकी खेली गई। हाय अब मै बहिन लक्ष्मीदेवी को कहाँ दूदू और क्योंकर पाऊँ ? तेज-जिस ढग से मायारानी ने मुझे समझाया था उससे तो मालूम होता है कि यह चालाकी करने के साथ ही दारोगा ने लक्ष्मीदेवी को केद करके किसी गुप्त स्थान में रख दिया था मगर कुछ दिनों के बाद वह किसी ढग से छूट के निकल गई। शायद इसी सवब से वह कमलिनी या लाडिली से मिल न सकी हो । गोपाल-बिना दारोगा को सताए इसका पूरा हाल न मालूम होगा। तेज-दारामा तो रोहतासगढ़ में ही कैद है। इतने ही में एक तरफ से आवाज आई दारोगा अबरोइतासगढ में कैद नहीं है निकल भागा | तेजसिह ने घूम कर देखा तो भैरोसिह पर निगाह पडी। भैरोसिंह ने बाप का चरण छूआ और राजा गोपालसिह को भी प्रणाम किया, इसके बाद आज्ञा पाकर बैठ गया। तेज-( भैरो से) क्या तुम बडी देर से खडे खड़े हम लोगों की बातें सुन रहे थे हम लोग बातों में इतना डूबे हुए थे कि तुम्हारा आना जरा भी मालूम न हुआ - - देवकीनन्दन अत्री समग्र