पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०

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इसलिये धीरे ही धीरे चलना मुनासिब होगा । लाचार रनबीरसिह उसी के मन माफिक चलते थे, फिर भी अगर ये उस स्थान को जानते होते जहा जाने की हद्द से ज्यादे खुशी थी तो उस सवार की बात कभी न मानते और पत्थरों की ठोकर खाकर गिरने सिर फूटने या मरने तक का भी खौफ न करके जहा तक हो सकता तेजी के साथ चल कर अपने को वहाँ पहुचाते जहाँ के लिये रवाना हुए थे। राह की खराबी के बारे में उस सवार का कहना झूठ न था। जैसे जैसे आगे बढ़ते थे, रास्ता ऊँचा नीचा और पथरीला मिलता जाता था और यह भी मालूम होता था कि धीरे धीरे पहाड के ऊपर चढते जा रहे हैं, मगर यह चढ़ाई सीधी न थी, बहुत घूम फिर कर जाना पड़ रहा था। आधी रात तक तो इन लोगों को चन्द्रमा की मनमानी रोशनी मिली जिसके समय से चलने में बहुत तकलीफ न हुई. मगर अव चन्द्रमा भी अपने घर के दर्दाजे पर जा पहुचा और जगल बहुत घना मिलने लगा। जिसके सबब स चलने में बहुत तकलीफ होने लगी यहाँ तककि घोडे से उतरकर पैदल चलने की नौवत पहुची। थोडी देर तक बडी तकलीफ के साथ अधेरे में चलने पद साथी सवार अटक गया। रनवीरसिह नेरुकने का सवय पूछा जिसके जवाब में उसने कहा 'हमलोग अपने ठिक' के बहुत पास आ चुके हैं मगर अब अधेरे के सवव रास्ता बिल्कुल नहीं मालूम होता और यह जगल एसा भयानक और रास्ता ऐसा खराब है कि अगर जरा भी भूल कर इधर उधर टसके तो कोसों भटकना पड़ेगा। रनवीर-फिर क्या करना चाहिये? सवार-देखिये मै अभी पता लगाता हू। यह कह उस सवार ने अपनी कमर में से एक छोटी सी बिगुल निकाल कर बजाई और इधर उधर घूम घूम कर देखने लगा। थोड़ी ही देर बाद एक रोशनी दिखलाई पड़ी जिस देखते ही इसने फिर बिगुल फूंकी 1 अब वह रोशनी इन्हीं की तरफ आने लगी। धीरे धीरे यह मालूम हुआ कि एक आदमी हाथ में मशाल लिये चला आ रहा है। जब वह इनके पास आया तो रोशनी में इन दोनों की सूरत देख बोला, 'आइये, हमलोग वड़ी देर से राह देख रहे हैं। यहाँ से फिर घोड़े पर सवार हो मशाल की रोशनी में रवाने हुए। थोड़ी दूर जाकर एक खुले मैदान में पहुंचे। रनबीरसिह खडे हो चारो तरफ देखने लगे मगर अँधेरे में कुछ मालूम नहुआ(हाँइतना जान पड़ा कि जंगल के बीच में यह एक छोटा सा मैदान है जिसमें दस पाच वड बडे दरख्तों के सिवाय छोटे छोटे जगली पेड बहुत कम है। थोडी दूर और बढ़ कर पत्तों से बनी एक झोपडी नजर पड़ी जिसके चारो तरफ पतों ही की टट्टियों से घेरा किया हुआ था। टट्टी के बाहर चारो तरफ सैकडों ही आदमी मैदान में पड़े थे तथा छोटी छोटी और भी कुटियों पत्तों की वनी इधर उधर नजर आ रही थी। रनबीरसिह के पहुंचते ही सब के सब उठ खडे हुए और कई आदमियों ने उनके सामने आकर अदव के साथ सलाम किया। एक ने सवार से कहा 'उधर चलिये. वहीं सोने बैठने का सब सामान दुरुस्त है। सवार के साथ रनधीरसिह दूसरी तरफ गये जहाँ साफ जमीन पर फर्श लगा हुआ था ! घोड़ से उतर कर फर्श पर जा चैटे, खिदमत के लिये कई खितमतगार हाजिर हुए कोई पानी ले आया कोई पखा झलने और कोई पैर दबाने लगा।

  • इतने ही में एक लौडी आई और हाथ जोड रनवीरसिह से बोली, आपके आने की खबर सार को मिल चुकी है।

अब रात बहुत थोडी बाकी है इसी जगह दो घन्ट आराम कीजिये सुबह को मिलना मुनासिब होगा। यह कह जवाय की राह न देख लौडी वहाँ से चली गई। रनवीरसिह को भला नींद क्यों आने लगी थी तरह तरह के खयाल दिमाग में पैदा होने लगे सभी तरद्द कभी रज कभी क्रोध और कभी खुशी इसी हालत में सोचते विचारते रात बीत गई सवेरा होते ही एक लाँडी पहुंची और हाथ जोडकर बोली, "अगर तकलीफ न हो तो मेरे साथ चलिये! रनबीरसिह तो यह चाहते ही थे. तुरन्त उठ खडे हुए और लौण्डी के साथ साथ उसी पत्तों वाले घेरे में गये जिसके अन्दर पत्तों ही की कुटी बनी हुई थी। इस समय ऐसे जगल में पत्तों की इस कुटी को ही अच्छी से अच्छी इमारत समझना चाहिये जिसमें खास कर रनवीरसिह के लिये, क्योंकि इसी झोपड़ी में आज उन्हें एक ऐसी चीज मिलने वाली है जिससे बढ़ के दुनिया में वह कुछ भी नहीं समझते या ऐसा कहना ठीक होगा कि जिस चीज पर उनकी जिन्दगी का फैसला है। इसके मिलने ही से वह दुनिया में रहना पसन्द करते है, नहीं तो मौत ही उनके हिसाब से बेहतर है। और वह चीज क्या है ? महारानी कुसुमकुमारी "जैसे ही रनवीरसिह उस घर के अन्दर जाकर झोपडी क पास पहुचे कि भीतर से महारानी कुसुमकुमारी उनकी तरफ आती दिखाई पड़ी। कुसुम कुमारी १०५८