पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५००

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Go! तेज-खैर कह ता जाइए कि क्या हुआ? गोपाल-यड़ा ही मजा हुआ। मैं आपसे खुलासा कह दूँ सुनिय । एक दिन रात के समय भूतनाथ को साथ लिए हुए गुप्त राह से तिलिस्मी याग के उस दर्ज में पहुंचा जिसमें मायारानी सो रही थी। हम दोनों नकाब डाले हुए थे। उस समय इसके सिवाय और काइ काम न कर सके कि कुछ रुपये देकर एक मालिन को इस बात पर राजी करें कि कल रात के समय तू चुपके से चोर दर्वाजा खाल दीजियो क्योंकि कमलिनी इस बाग में आना चाहती है। यह काम इस मतलब से नहीं किया गया कि वास्तव में कमलिनी यहाँ जाने वाली थी बल्कि इस मतलब से था कि किस तरह से कमलिनो के जान की झूठी राबर मायारानी को मालूम हो जाय और वह कमलिनी को गिरफ्तार करने के लिए पहिले से तैयार रहे जिसके बदले में हम और भूतनाथ जाने वाल थे क्योंकि आगे जो कुछ मैं कहूगा उससे मालूम होगा कि वह मालिन तो इस भेद को छिपाया चाहती थी और हम लोग हर तरह से प्रकट करके अपन को गिरफ्तार कराया चाहते थे। इसी सबब स दूसर दिन आधी रात के समय हम दोनों फिर उस बाग में उसी राह स पहुचे जिसका हाल मेरे सिवाय और कोई भी नहीं जानता-बाग ही में नहीं बल्कि उस कमर में पहुचं जिसमें मायारानी अकेली सा रही थी। उस समय वहाँ केवल एक हांडी जल रही थी जिसे जान ही मैन वुझा दिया और इसके बाद दर्वाज मे ताला लगा दिया जो अपन सायल गया था यद्यपि दर्वाज पर पहरा पड़ रहा था मगर मै दाजे की राह नहीं गया था बल्कि एक सुगग की राह स गया था जिसका सिरा उसी काढरी म निकला था। उस काठरी की दीवार आबनूस की लकड़ी की थी और इस बात का गुमान भी नहीं हो सकता था कि दीवार में कोई दर्वाणा है। यह दर्याजा केवल एक तरत के हट जान सयुलता है और तख्ता एक कमानी के सहार पर है। खैर ताला बन्द कर दने के बाद मी जानबूझ कर एक शीशा जमीन पर गिरा दिया जिसकी आवाज से मायारानी चौंक उठी। अधेर के कारण सूरत ता दिखाई नहीं दी थी इसलिए मै नहीं कह सकता कि उसने क्या क्या किया मार इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह बहुत ही घबराई होगी और वह घबराहट उसकी उस समय और भी बढ़ गई होगी जब दाजि के पास पहुँच कर उस दिखा होगा कि वहा ताला बन्द है। में पर पटक पटकर कर कमरे में घूमने लगा। थोडी दर में टटालता हुआ मायारानी क पास पहुंच कर मैन उसकी कलाई पकडली और जब वह चिल्लाई तो एक तमाचा जड़ क अलग हा गया। तब मैन एक चार लालटेन जलाइ तामर पास थीं। उस समय मायारानी डर और मार खाने के कारण यहाशहा चुकी थी। मैने दवाज का ताला खोल दिया और उस उटा कर चारपाई पर लिटादने के बाद वहाँ से चलता चना। यह कार्रवाई इसलिए की गई थी कि मायारानी घबडा कर याहर निकल और उसकी लौडिया इस घटना का पता लगान के लिए चारों तरफ घूम जिसस आग हम ला जा कुछ करेग उसकी चयर मायारानी को लग जाय। इसके बाद में और भूतनाथ एक नियत स्थार पर उस मालिन से जाकर मिल और उसस बोले कि आज तो कमलिनी न आ सकी भगर कल आधी रात का जरुर आवगी चार दर्वाजा युला लिया। शक इस बात की खबर मायारानी की लग गई जैसा कि हम लोग चाहत थे क्याकि दूसर दिन जब हम लोग चार दर्वाज की राह वाम में पहुंचे तो हमलोगों को गिरफ्तार करन के लिए कई आदमी मुस्तैद थे। ऊपर लिख हुए बयान से पाठक इतना तो जरुर समझ गय हो कि मायारानी के बाग में पहुंचन वाले दोन नकाबपाश जिनका हाल सन्तति के नौवे भाग के चौय और मातव यामे लिया गया है यही राजा गोपालसिह और भूतनाथ थ इसलिए उन दोनों न और जा कुछ काम किया उस इस जगा दाहरा कर लिखना हम इसलिए उचित नहीं समझते कि वह हाल पाठकगण पढ़ ही चुके है और उन्हें याद हा 1 अस्तु यहा केवल इतना ही कह देना काफी है कि ये दाना गापालसिह और भूताय थे और राजा गापालसिहन ही कोठरी के अन्दर बारी बारी से पाच पोव आदमियो को बुलाकर अपनी सूरत दिखाई और कुछ थोड़ा सा हाल भी कहा था। राजा गोपालसिह ने यह सव पूरा पूरा हाल तेजारिह और भैरासिह स कहा और दर तक वे सुन सुन कर हँसते रहे। इसके बाद देवीसिह और भूतनाथन भी अपनी कार्रवाई का हाल कहा और फिर इस विषय में बातचीत होने लगी कि अब क्या करना चाहिए। 'तेज़-('गापालसिह ) अब आप खुले दिल से अपने महल में जाकर राज्य का काम कर सकत है इसलिए अब जो सुंछ प्रिक्रा करना है हुकूमत के साथ कीजिए। ईश्वर की कृपा से अब आपको किसी तरह की चिन्ता न रही इसलिए इधर उधर गोपाल--यह आप नहीं कह सकत कि अब मुझ किसी तरह की चिन्ता नहीं मगर हॉ यहुत सी बाते जिनके सबस मैं अपन महल में जाने से हिचकता था जाती रही इसलिए मेरी भी राय है कि कमलिनी और लाडिली को साथ लकर में अपन घर जाऊं और वहाँ स दानों कुमाराका मदद पहुचाने का उद्योग करु जो इस समय तिलिरम के अन्दर जा पहुचे देवकीनन्दन खत्री समग्र ४९२