पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०१

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lart है क्योकि यद्यपि तिलिस्म का फैसला उन दोनों के हाथों हाना बला की लकीर सा हो रहा है तथापि मरी मदद पहुचने से उन्हें विराष कष्ट न उठाना पड़गा। इसके साथ मैं यह भी चाहता हु कि किशारी और कामिनी को नी अपने तिलिस्मी बाग ही में बुलाकर रक्खू कम-सा नही में तिलिस्मी बाग में नच तक नहीं जाऊगी जब तक कम्यख्त मायारानी से अपना बदला न ले लूंगी और अपनी बहन को यदि वह अभी तक इस दुनिया में है न दूंढ निकालूगी। किशारी और कामिनी का भी आपके यहाँ रहना उचित नहीं है इस आप अच्छी तरह गौर करके साथ ले। उनकी तरफ से आप निश्चिन्त रहे तालाब वाले मकान में जा आज काल मेरे दखल में है उन्हें किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी। महायजाड कर प्रार्थना करती है कि आप मरी प्राथना स्वीकार करे और मुझ अपनी राय पर छोड़ द । गोपाल-(कुछ साच कर ) तुम्हारी बातों का बहुत सा हिस्सा सही और वाजिब है मगर येइज्जती क साथ तुम्हारा इधर उधर मार मार फिरना मुझ पसन्द नहीं। यद्यपि तुम्हें ऐयारी का शौक है और तुम इस फन को अच्छी तरह जानती हा मगर मरी आर इसी कसाथ किसी और की इज्जत पर भी ध्यान दना उचित है। यह बात मै तुम्हारी मुप्त इच्छा को अच्छी तरह समझ कर कहता हूँ। मैं तुम्हारी अभिलाया में बाधक नहीं होता बल्कि उसे उत्तम और योग्य समझता हू कमलिनी- कुछ शमा कर ) उस दिन आए जा चाहे मुझे सजा दे जिस दिन किसी की जुबानी जा एयार या उन लागा - सनहा जिनके सामने मै हो सकती हूँ, आप यह सुन पावे कि कमलिया लाजिली की सूरत किसी नदेखली या - दाना एता काई काम किया जो बेइज्जती या बदनामी स सबंध रखता है। गोपाल-(तेजसिह स ) आपकी का राय है? तेज-में इस विषय म कुछ भी न बोलूगा हा इतना अवश्य कहूगा कि यदि आप कमलनी की प्रार्थना स्वीकार कर लग तो में अपने दो एयारों का इनकी हिफाजत के लिए छाड दूगा । गोपाल-जब आप एसा करत है ता मुझ कमलिनी की बात माननी पड़ी पैर थाड से सिपाही इनकी मदद के लिए मै भी मुकरर कर दूगा। कमलिनी-मुझ उससच्यादे आदमियों को जरुरत नहीं है जितने मेरे पास थे हों आप उन लागों को एक चीटी मरे जान के याद अवश्य लिख दे कि हम इस बात से खुश है कि तुम इतने दिनों से कमलिनी के साथ रहे और रहोगे । ही इसके साथ एक काम और भी चाहती हूँ ! गोपाल-यह क्या? कमलिनी-जय मैन अपना किस्सा आपसे बयान किया था ता यह भी कहा था कि मायारानीने तिलिस्मी मकान के जरिए से कुमार और उनके ऐयारों क साथ ही साथ मेरे कई बहादुर सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया था। गापाल-हों मुझेयादहै जिस मकान में पारी बारी हस कर वे लाग कूद गये थे । कमलिनी-ली ही सो कुमार और उनक ऐयार तो छूट गये मगर मर सिपाहियों का अभी तक पता नही है वशक के नीतिलिस्मी भाग में किसी ठिकान केद होग जिसका पता आप लगा सकते है। मुझे आज तक यह न मालूम हुआ कि उनप हंसन और कूद पडन का क्या कारण था। इस विषय में कुमार से भी कुछ पूछने का मौका न मिला । गोपाल-मे वादा करता हूँ कि उन आदमियों का यदि वे मारे नहीं गए है तो अवश्य ढूँढ निकालूगा और इसका कारण कि वे लाग हसत हसते उस मकान के अन्दर क्या कूद पडे सो तुम इसी समय देवीसिंह से भी पूछ सकती हो जो यहा मौजूद हैं और उन हसत हसत कूद पडने वाला में शरीक थ। देवीसिह-माफ कीजिए मैं उस विषय में लय तक कुछ भी न कहूगा जब तक इन्दजीतसिह मेरे सामने मौजूद न होंगे क्योंकि उन्होंने उस बात को छिपाने के लिए मुझ सख्त ताकीद की है बल्कि कत्तम दे रक्यी है। कमलिनी-यह और भी आश्चय की बात है खेर जान दीजिए फिर देखा जायगा। हाँ आपने मेरी प्रार्थना स्वीकार की? लाडिली भर साथ रहगी। गोपाल-हा रवीकार की मगर देखा जा कुछ करना होशियारी से करना और मुझ रायर खबर देती रहना । तेज-4 प्रतिज्ञानुसार अपन दा एयार तुम्हार सुपुद करता हू जिन्हें तुम चाहो अपनी मदद के लिए ले ला। कमलिनी-अच्छा तो आप कृपाफर भूतनाय और देवीसिह को द दीजिए। तेजसिह भूतनाथता तुम्हारा ही ऐयार हे उस पर अभी मेरा कोई अख्तियार नहीं है वह अवश्य तुम्हारे साथ रहेगा उसके अतिरिक्त दा ऐयार तुम और ले ला । कमलिनी-नि सन्दह आपका बड़ा अनुग्रह मुझ पर है मगर मुझे विशेष ऐयारों की आवश्यकता नहीं है। तेजसिह-और यही सही फिर देखा जायगा। (देवीसिंह से) अच्छा लो तुम कमलिनी का काम करा और इनक चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १०