पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०२

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३ साथ रहा। देवीसिह-बहुत अछा। तेजसिह-खैर ता अव सभा विसर्जित होनी चाहिए, दखिए आसमान का रंग बदल गया। कमलिनी और लाडिली के लिए सवारी का क्या इन्तजाम होगा? कमलिनी-थाडी दूर जाकर मै रास्ते में इसका इन्तजाम कर लूगी आप बेफिक्र रहिय । थोड़ी सी और बातचीत के बाद सब कोई उठ खड़े हुए। कमलिनी लाडिली भूतनाथ तथा देवीसिह ने दक्खिन का रास्ता पकड़ा और कुछ दूर जान क याद सूर्य भगवान की लालिमा दिखाई देन के पहिले ही एक जगल में गायव हो गये। चौथा बयान रात पहर मर से ज्यादे हो चुकी है। आज की रात मामूली से ज्यादै अधेरी मालूम होती है क्योंकि आबोताय स चगक कर पॉचो सवारी मे गिनती कराने वाले तारों की थोड़ी रोशनी को दिन भर तेजी के साचले हुए हवा के झपेटों की सहायता स ऊपर की तरफ उठ हुए गर्द गुवार ने अपना गदला शमियाना खेच कर जमीन तक आने से रोक रक्या है। दिन भर के काम काज से थके और ऑधी क झोंको तथा गर्द गुप्यार सदुखी आदमी इस समय सड़कों पर घूमना पसन्द न करके अपन अपने झोपड़ों मकानों और महलों में आराम कर रहे है इसलिए काशीपुरी के बाहरी प्रान्त की सड़कों पर कुछ विचित्र सा सन्नाटा छाया हुआ है। केवल एक आदमी शहर की इद पर बहने वाली वरना नदी पार करके त्रिलोचन महादव की तरफ तजी के साथ वढा चला जाता है और उसे टोकने या दसने वाला काई भी नहीं। यह आदमी आधी रात के महिल ही मनारम् के मकान के पास जा पहुचा जिसमें इस समय केवल नागर रहती थीं। यहाँ पहुच वह सीध पाटक की तरफ चला गया। दरा कि फाटक बन्द है मगर उसकी छाटी खिड़की अभी तक खुली हुई है और उस राह से झाकाकर देखन से मालूम होता है कि भीतर की तरफ दो आदमी टहल रहल कर पहरा दे रहे है। व आदी बेधड़क छोटी खिड़की की राह से भीतर घुस गया और दोना पहरा देने वालो से बिना साहबसलामत किये या बिना कुछ कहे अपन जेब टटोलने लगा। एक पहरे वाले ने ताज्जुब में आकर उससे पूछा तुम कौन हो और क्या चाहत हा? इस जवाब में आगन्तुक न एक चीटी उसके हाथ पर रख कर कहा 'यह चीटी बहुत जल्द उसके हाय में दो जो इस मकान में मयका सरि मौजूद हो। सिपाही-पहिले तुम अपना नाम बताआ और यह कहो कि तुम किसके भेजे हुए आय हो इस चीठी की मतलब क्या स - आगन्तुक- तुम अपनी बातों का जवाब मुझसे नहीं पा सकत और न इस चीठी क पहुचाने में विलम्ब कर सकते हो ताज्जुब नहीं कि तुम सफाई के साथ यह कहो कि मकान मालिक इस समय आराम के साथ खर्राटे ल रहा है और हम उसे जगा नहीं सकते मार याद रक्खा कि यह समय बडा ही नाजुक बीत रहा है और एक पल भी व्यर्थ जाने देने लायक नहीं है अगर तुम मुझसे कुछ पूछताछ करोगे ता में विना कुछ जवाब दिये यहाँ से चला जाऊँगा और इसका नतीजा बहुत बुरा हागा क्योकि सवरा हाने से पहिले इस मकान रहन वाले जितने है सब के सब यमलोक को सिधार जायेंगे और सब कसूर तुम्हारा ही समझा जायगा । खेर मुझे इन बातों से क्या मतलब लो में जाता है। सिपाही-सुनो सुना लोट क्यों जाते हो मै यह चीटी अभी अपो मालिक के पास पहुचाए दता है मगर यह बताओ कि एसी कोन सी आफत आन वाली है ओर उसका क्या रामय है?. आगन्तुक-मे पहिले ही कह चुका है कि तुम्हारी बातों का कुछ जवाब नहीं दिया जायेगा तुमने पुन पूछने में जितना समय नष्ट किया रामझ रक्खो कि उतन समय में दो आदगियों का बेडा पार हो गया। बस में फिर कहता है कि अभी चले जाओ में जो कुछ कहता हू तुम लोगों के भल ही के लिए कहता है। इस आये हुए आदमी की धमकी लिए हुए जल्दबाजी ने उस पहरेवाले को बल्कि और सिमारियों को भी जो उस समय यह मौजूद थ और उसकी रातें सुन रहे थे बदहवास कर दिया-फिर उससे कुछ पूछने की हिम्मत किसी की न 414 सिपाही जिसके हाथ में चीटी दी गई थी कुछ साचता विधारता बाग के अन्दर वाले मकान की तरफ रवाना हुआ और नजरों से गायब होकर आध घण्टे तक न आया। तब तक वह आदमी जो धीठी दने आया था फाटक ही में एक किता चुप माप खास रहा। सिपाहियो न कुछ पूछना चाहा मार उसन किसी की बात का जवाब न दिया और सिर नीचा किये इस ढग स जमीन की तरफ देखता रहा जैसे बड गार और फिक्र में कुछ विचार कर रहा हो। आवेण्ट बाद जब वह सिपाही लौट कर आया ता उसने आगन्तुक से कहा चलिए आपको नागरजी बुला रही है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ४९४