पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०३

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- आगन्तुक-(ताज्जुब स ) नागरजी क्या इस समय इस मकान में वही मालिक की तौर पर है तो गप्पारानी से मिलन की आशा रखता था । सिपाही-इस समय नागर जी के सिपाय यही मालिक लाग नहीं है। क्या तुम्हारी चीठी इस लायक न थी कि नागरजी के साथ मे दी जाती 7 क्योंकि मैने दया कि चोठी पढने से साथ ही फिक्र और तरदूद ने उसकी सूरत बदल दी। आगन्तुक नहीं काई दिशय हानि नहीं है और चला में चलता हूँ। वह आगन्तुक सिपाही के पीछ पीछे उमभकान की तरफ रवाना हुआजा इस बागके बीधावीच मया और क्यारियों में बीच बनी हुई धारी नकों पर घूमता हुआ मकान के पिछली तरफ जा पहुबा । इस जगह मकान के दानों तरफ दा कोटरिया थी दाहिनी तरफ वाली कोटरी ता बन्द भी मगर बायी तरफ वाली काठरी का दर्याजा युला हुआ था और नीतर चिराग जल रहा था। दोनों आदमी उस काढरी के भीतर गया वहा ऊपर की छत पर लाक लिए सोडिया की भी उसी राह स दाना ऊपर की छत पर चले गय और एक कमरे में पहुच जहा सिवारा सफेद फर्श का और कार स्नान जगेन पर न था। सामने की दीवार में दो जाडी दीवारणीरा की जिनमें माटी भाट मोमबत्तियों जल रही थीं और उनकी रोरानी से इस कमर में अच्छी तरह उजाला हो रहा था इस कमरे में बायी तरफ एक कोठरी थी जिसक दवाजे प लाल साटन का पदा पड़ा हुआ था। वह आदमा उसी पर्दे की तरफ मुंह करके खड़ा हो गया क्योंकि इस कमर में सिवाय इन दी आदमियों के और कोई भी न था। इन दोनों आदमिया का बहुत थोडी दर तक यहा खा रहना पड़ा और इसी बीच में उस आदमी का जा चीठी लाया था मालूम हो गया कि पर्दे के अन्दरकिकिसी ने उसे अच्छी तरह दखा है। थाडी दर में पर्दे के अन्दर से दो लोडियाँ चुस्त और साफ पाशाक पहिन हाथ में नगो नलवार लिए बाहर निकलीं और इसक बाद उसी तरह की मगर शकीमत पोशाक पहिरे नामर भी पदे के बाहर आइ। उसकी कमर में वही तिलिस्मी खजर था और उगली ग उसके जाड की जगूढी मौजूद थी। नागर ने उस आर्य हुएआदगी की तरफ दय के 1- 'तुम किसके भेज हुए आए हो और तुम्हारा क्या नाम है ? मुझ ख्याल आता है कि मन तुम्हें वाही देखा है मगर याद नहीं पड़ता कि कब और कहाँ ! इस आदमी की उम्र लगभग चालीस या पैतालिस वर्ष के होगी। इसका कद लम्बा और शरीर दुबलामगर गठीला रग गारा पेहरा खूबसूरत और रोबीला था। बड़ी बड़ी मूछ दोनों किनारों से ऐठी और घूमी हुई थी। ऑखें बड़ी ओर इस समय कुछ लाल थी। पोशाक यद्यपि बेशकीमत न थी मगर साफ और अच्छे ढग की थी। चुस्त पायजामा घुटने के चार अगुल नीचे तक का चपकन और उस पर स एका टीला भोगा पहिर और सिर परभारी मुंडासा बाध हुए या सरसरी निगाह से देखने पर वह कोई छोटा या बदराब अदमी नहीं कहा जा सकता था। नागर की बात सुनकर यह आदमी कुछ मुस्कुराया और बोला 'केवल इतना ही नहीं आप अनी बहुत कुछ मुझस पूछेगी मगर मै किसी के सामने आपकी रातों का जवाब नहीं दिया चाइता क्योकि में एक नाजुक काम क लिए आया है। यदि किसी तरह का खौफ न हो तो सिपाही और लौडियो की तरफ इशारा करका) इनको हट जाने के लिए कहिये और फिर जो कुछ चाहे पूछिए साफ जवाव दूगा। उस आदमी की बात सुनकर नागर ने अपन तिलिस्नी खजर की तरफ देखा जा कमर से लटक रहा था मानों उसे उस खगर पर बहुत भरासा है और इसके बाद सिपाही तथा लौडियो को वहां से हट जाने का इशारा करक बोली "नहीं नहीं मुझे तुमसे खौफ खाने का काई सवच मालूम नहीं होता। आदमी-(सिपाह। और लोडिया के हट जान के याद) :' अब जा कुछ आपको पूछना हो पूछिय मै जवाब दूंगा। नागर-मैं फिर पूछती हू कि तुम किसके भेजे हुए आये हो और तुम्हारा नाम क्या है ? मैंने तुम्हें कहीं न कहीं अवश्य देखा आदमी-मेरा नाम श्यामलाल है और तुमने मुझे उस समय देखा हागा जब तुम्हारा नाम मोतीजान था और तुम बाजार में कोठे के ऊपर बैठ कर अपने कटाक्ष स सैकड़ों को घायल किया करती थी रडियों के लिए यह मामूली बात है कि जय विशष दौलत हो जाती है तब उन दोस्तों का भूल जाती है जिनस किसी जमान में थोड़ी रकम पाई हो चाहे वह उस समय कितना ही गाडी मुलाकाती क्यों न रह चुका हा 1 में यह ताने क ढग पर नहीं करता बल्कि इस उम्मीद पर कहता है कि पुरानी मुलाकात को याद बार मुझे माफ करागी क्योकि इस समय तुम एक ऊँचे दर्जे पर हा ! नागर-(नाक भो सिकोड़ कर जिससे मालूम हाता था कि श्यामलाल की बातों से वह कुछ चिढ़ गई है) हा र मैने तुम्हे पहियांना अच्छा बताओ कि तुम क्या चाहत हो? श्यामलाल-(मुस्कुरा कर ! बस यही चाहता है कि मुझे विदा करो और चुपचाप यहाँ से चल जाने दो। नागर-नहीं नहीं मरा यह मतलब नहीं मै उत चीठी का भेद लानना चाहती हूजा मेरे सिपाही के हाथ तुमने भली है चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १०