पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०५

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दि श्यामलाल-(कुछ सोच कर और नागर की तरफ चीठी बढा कर) खैर ला तुम ही पढ लो देखा ता सही अपनी साली की खातिर से कैसे खुशबूदार अतरों से बसी हुई चीठी तैयार करके मै लाया था अच्छा कोई हर्ज नहीं किसी जमाने म तुम भी मुझे खुश कर चुकी हा। इसके पढने से आन बाली आफत का पूरा पूरा हाल मिल जायगा। मैं यह चीठी इसलिए लिख लाया था कि शायद किसी सबब से मैं स्वय मायारानी स मिल न सकूगा तो यह चीठी भेज कर उसे आने वाली आफत त होशियार कर दूगा और फिर वह स्वय मुझसे मिल लगी मगर अफसोस उससे तो मुलाकात ही न हुई। खैर इस चीठी कोपढो मगर बैठ जाओ और मुझे भी बैठने के लिए कहो क्योंकि मैं खड़ा खडा थक गया हू। नागर ने अपने हाथ में चीठी लेकर श्यामलाल को बैठने के लिए कहा और तब खुद भी उसी जगह बैठ कर लिफाफा खाला लिफाफे और चीठी का कागज खुज्यूदार चीजों से ऐस बसा हुआ था फि लिफाफा हाथ में लेने और ोलन के साथ ही नागर का जी खुश हा गया। ऐसी मीठी और भली खुशबू उसके दिमाग में शायद आज तक न पहुची हागी। धीटी पढने के पहिले ही उसने कई दफे उसे सूघा और आँखें बन्द करके वाह वाह कहने लगी। मगर उस खुशबू का काम कवल इतना ही न था कि दिल और दिमाग को खुश करे बल्कि उसमें मर्जदार और आनन्द देने वाली यहोशी पैदा करन का भी गुण था इसलिए चीठी पढन के पहिले ही नागर के दिमाग की ताकत जिसे चैतन्यता और विचार-शक्ति से सम्बन्ध है बिल्कुल जाती रही और वह बेहोश होकर दीवार साथ उठग गई उसकी हालत देख कर श्यामलाल आगे बढा और पास जाकर बिना कुछ साच विचारे उसकी उँगली से वह अंगूठी निकाल ली जो तिलिस्मी खजर के जाड की और मामूली तौर की विल्कुल सादी थी। अगूटी लेकर श्यामलाल ने मुह म रख ली और उसी रग की दूसरी अगूठी अपने जेब से निकाल कर नागर की उगली में पहिरा दी। इसके बाद अपनी कमर से एक खजर निकाला जा चपकन आर अवा के अन्दर छिपा हुआ था।यह खजर नागर की कमर में खोंसा और उसकी कमर से तिलिस्मी खजर लेकर अपनी कमर मे चपकन के अन्दर छिपा लिया । श्यामलाल ये दोनों चीजें नि सन्दह इसी काम के लिए तैयार करके ल आया था क्योंकि वह खजर और अगूठी ठीक तिलिस्मी खजर और अगूठी के रंग के ही थे बहुत गौर करने पर भी किसी तरह का शक नहीं हो सकता था। खजर और अगूठी बदल लने के बाद श्यामलाल न वह खुशबूदार चीटी भी नागर क हाथ से ले ली और उसके बदले में उसी तरह की दूसरी चीठी उसके हाथ में रख दी। इस चीठी में से भी उसी तरह की खुशबू आ रहे थी फर्क सिर्फ इतना ही था कि उसकी खूशबू बेहोशीपैदा करने वाली थी और इसकी खुशबू बेहोशी दूर करने की ताकत रखती थी अथात लखलख का काम देती थी। इस काम स छुट्टी पाकर श्यामलाल पीछे हटा और अपने ठिकाने बैठ कर नागर के चैतन्य होने की राह देखन लगा। थोड़ी ही देर में नागर चैतन्य हो गई और आँख खोल कर श्यामलाल की तरफ देख और उस चीठी को पुन सूंघ फर योली वशक खुशबू बहुत ही अच्छी और प्रिय मालूम होती है, मगर मुझे क्या हो गया था। क्या मैं बेहाश हो गई थी? श्यामला--(हॅस कर) वाह क्या खूब। कवल एक दफे ऑख बन्द करके खोल देने का ही अर्थ अगर वेहोशी है तो यस हो चुका क्योंकि मेरी समझ में तुमने चार पल से ज्यादे दर तक आँख बन्द नही की सो भी इस खुशबू से पैदा हुई मस्ती क सवव था। नागर-(मुस्कुरा कर} अगर तुम मायारानी के बहनोई न होत तो मैं कुछ कह बैठती क्योंकि ऐसे समय में जब कि जान बचाने की फिक्र पड़ रही है जैसा कि तुम स्वय कह रहे हो तो इस तरह की दिल्लगी अच्छी नहीं मालूम पड़ती। अच्छा अब मैं इस चीठी को पढ़ कर देखती हू कि तुमने क्या लिखा है। (चोठी को पढ़ कर) वाह वाह इसका मतलय तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता मालूम होता है कि बहुत सी पहेलियों लिख कर रक्खी हुई है । श्यामलाल-बस बस अब मुझे और भी निश्चय हो गया कि मायारानी तुम लोगों से केवल मुँहदेखी मुहब्बत रखती है क्योंकि अगर वह तुम लोगों की कदर करती तो अपना भेद जरुर कहती और अपना भेद कहती तो इस चीठी का मतलब भी तुम जत्तर समझ जाती-मगर उसने अदना से अदना भेद भी छिपा रक्या जिसके बताने में कोई हानि न थी! नागर-ठीक है मुझे भी यही विश्वास होता है। मगर जब मुझ पर दया करके यह कह रहे हो कि जल्दी यहा से भाग कर अपनी जान बचाओ तो कृपा कर इसका सक्व भी बता दो क्योंकि मुझे कुछ भी नहीं सूझता कि मैं भाग कर कहा जारू और इस जायदाद के बचाने का क्या उद्योग करूं? श्याम-इसका जवाब में कुछ नहीं दे सकता क्योंकि में अगर तुम्हें कोई तर्कीव बताऊँ या अपने साथ चलने के लिए कहूगा ता तुम्हें मुझ पर अविश्वास होगा क्योंकि तुम बहुत दिनों के बाद मुझे आज देख रही हो सो भी ऐसे समय में जय तुम्हारा दिल राजकीय विषयों की उलझन में हद से ज्यादे उलझा हुआ है परन्तु इतना कह दने में मेरी कोई भी हानि नहीं चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १० ४९७ 7