पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०६

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8 है कि राजा गापालसिह के लिखे वमूजिय काशिराज इस मकान को अपने कबजे में कर लेने के याद यहाँ के रहने वालों का कैद कर लेंग। गोपालसिह ने सुना था कि मायारानी इस मकान में टिकी हुई है इसलिए यह कारवाई और भी जार के साथ की गई मगर इतनी खैरियत है कि अभी तक यह आदमी इम शहर में नहीं पहुचा जिसे राजा गोपालसिह ने चीठी दकर काशिराज के पास भेजा है हों आशा है कि रावेरा हाते होते बह शहर में आ पहुचेगा (कुछ साच कर) क्या करे आज तुम्ह देख कर तुम्हारी मुहब्बत फिर से नई हो गई। खैर अगर तुम चाहोगी तो में तुम्हारी कुछ मदद इस समय भी कर सफूगा। नागर-अगर इस समय तुम मेरी सहायता करागे तो में जम भर तुम्हारा अहसान न भूलूगी। मैं क्सम खाकर कहती हूं कि मैं तुम्हारी हो जाऊँगी और जा कुछ तुम कहोगे करुंगी। श्यामलाल-अच्छा तो अब मै वयान करता है कि इस समय तुम्हारी क्या मदद कर सकता हू सुनो और अच्छी तरह ध्यान देकर सुनो। मै उस आदमी को अच्छी तरह पहिचानता हू जो गोण्लसिह कीचीठी लेकर काशिराज के पास आ रहा है मुझसे उसकी बहुत दिनों की जान पहिचान है। में उम्मीद करता हू कि सवेरा होते ही वह आदमी वरना के किनारे आ पहुंचेगा। यदि वह किसी तरह गिरफ्तार कर लिया जाय तो यशक कइ दिनो तक तुम्हें सोचने विचारने का मौका मिलेगा क्योंकि राजा गोपालसिह कई दिनों तक चैटे राह देखेंग कि हमारा आदमी पत्र का जवाब लेकर अव आता हागा। नागर-बात तो बहुत अच्छी है। क्या तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकत? श्यामलाल (हस कर ) वाह वाह वाह कहते शर्मता नहीं आती। हॉ इतना कर सकता है कि तुम थोड़ से सिपाही अपने साथ लेकर इस समय मेरे साथ चलो और शहर के बाहर होकर रास्ता रोक को बैठो जब वह आदमी आयेगा ता मैं इशारे से यता दूगी कि यही है फिर जो तुम्हारे जी में आवे करना मगर मे उसका सामना न करूँगा क्योंकि अभी कह चुका हू कि मेरी उसकी जान पहिचान बहुत पुरानी है। नागर-जब तुम पर कृपा कोल इतना काम कर सकते हो तो मरे जाने की क्या जरूरत है ? मैं थाडी से सिपाही तुम्हारे साथ कर देती हूँ समय पड़ने पर तुम श्याम-बस बस बस अब मत बोला मैं समझ गया कि तुम्हारी नीयत साफ नहीं है। मैं खुदगजों का साथ देना उचित नहीं समझता केवल तुम्हारे ही बारे में नहीं बल्कि मायागनी के बारे में भी जो मेरी साली होती है मेरा यही ख्याल है कि वह परले सिरे की खुदगर्ज है. दूसरे को फंसा कर अपना काम निकालना और आप अलग रहना खूब जानती है मगर मै क्या करूँ अपनी स्त्री स लाचार हू जा मुझसे भी ज्यादे मायारानी के साथ मुहब्बत रखती है और मैं उसे जान से ज्यादे चाहता हूँ। श्यामलाल की बातचीत कुछ अजय ढग की थी जिसमे हर जगह से सचाई की बू पाई जाती थी। बात करने के समय वह अपने चेहरे के उतार चढाव को ऐसा दुरुस्त करता था कि होशियार त होशियार आदमी को भी उस पर किसी तरह का शक नहीं हो सकता था। नागर को उसकी बात पर पूरा विश्वास होगया और वह इस उम्मीद पर कि राजा गोपालसिह के भेज हुए। आदमी को अवश्य गिरफ्तार कर लेगी अपने साथ कदल थोडे सिपाहियों को लेकर जाने के लिए तैयार हो गइ। इसके बाद उसने अपनी कमर से लटकते हुए तिलिस्मी खजर पर पुन गम्भीर निगाह डाली मानों अपने सिपाहियों से ज्याद उस सजर पर भरासा रखती है मगर उसे इस बात का गुमान भी न था कि वह खजर वडी खूबी के साथ बदल दिया गया है। • नागर ने अपनी समझ में श्यामलाल को बहुत कुछ कह सुन कर मदद के लिए राजी किया और आप उसके साथ जाने के लिए तैयार होगई। उसने श्यामलाल से आधी घडी की छुटटी ली और उस कोठरी के अन्दर चली गई जिसके दाजे पर पर्दा पड़ा हुआ था।आधी घडी के बाद वह बाहर आई और श्यामलाल से याली अव में हर तरह से तैयार हो गई आप चलिए। इस समय भी नागर उसी पोशाक में थी जिसमें घडी भर पहिले देखी गई थी, फर्क इतना ही था कि एक चादर उसके हाथ में थी जिसे फाटक के बाहर आते ही अपने को सिर से पैर तक ढॉक लेने की नीयत से वह अपन साथ लाई थी। श्यामलाल को साथ लिए हुए नागर नीचे उतरी और चक्कर खाती हुई सदर फाटक के पास पहुची। यहां उसने स्याह चादर में अपने को छिपा लिया और फाटक के बाहर रवाना हुई। श्यामलाल ने इस समय मामूली पहरा देने वाले सिपाहियों के अतिरिक्त आठ सिपाही हों से दुरुस्त वहां मौजूद पाये जो फाटक के बाहर होते ही नागर और श्यामलाल के पीछे पीछे रवाना हुए नागर को इसके लिए कुछ कहने की जरुरत न पड़ी जिससे श्यामलाल समझ गया कि आधी घडी में नागर ने यह इन्तजाम किया है। ये दसों आदमी गगा के किनारे उतरे और वहा से तेजी के साथ काशी के छोर पर बहने वाली बरना नदी की तरफ रवाना होकर आधे घण्टे से कुछ ज्यादा देर में वहाँ जा पहुंचे। ।। इस समय आधी रात से ज्यादे जा चुकी और चन्द्रदेव देवकीनन्दन खत्री समग्र ४९८ .