पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०७

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de उदय हो रहे थे। धरना नदी पार करने के लिए नदी से बीस गज ऊचा एक मजबूत पुत बना हुआ था। इस पुल के दोनो बगल मुसाफिरों के आराम क लिए बारह दालान बने हुए थे और उसी जगह से पुल के नीचे उतरने के लिए छाटी छोटी सीढ़ियों भी बनी हुई थीं। ये दसों आदी जब उस पुल पर पहुंचे तो नागर ने श्यामलाल से पूछा, 'कहिये इसी पार ठहरन का इरादा हया उस पार चल कर? जिसके जवाब में श्यामलाल ने कहा बिना उस पार गये ठीक न होगा। अब ये लोग पुल के उस पार रवाना हुए मगर आधी दूर से ज्यादे न गये होंगे कि सामने से आते हुए दो घोड़ों की आहट मिलन लगी जिसे सुनते ही श्यामलाल ने कहा 'लीजिए हम लागों को ज्यादे ठहरना न पडा नि सन्देह ये वे ही सवार है जिन्हें हम लोग गिरफ्तार किया चाहते हैं। बस अब जल्दी करना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वे लोग तेजी क साथ निकल जायें क्योंकि वे घोडों पर सवार हैं और हम लोग पैदल। नागर ने अपनी कमर से खजर निकाल लिया जिसे वह तिलिस्नी समझे हुए थी और इसके बाद अपने आदमिया की तरफ देख क बोली 'देखो ये सवार जाने न पावें इन्हीं को गिरफ्तार करने के लिए हम लोग आये है । बाल की बात में वे दोनों सवार पास आ गये। नागर के सिपाही म्यान से तलवार निकाल कर खडे हो गए और ललकार कर बोले खवरदार, आगे मत रखना । मगर इतने में हो मालूम हुआ कि पीछे की तरफ से भी कई आदमी दौड़े आ रहे है। उस समय नागर घबडा गई और उसे निश्चय हो गया कि अब यहाँ से बच कर निकल जाना मुश्किल है क्योंकि हम लोग दोनों तरफ से घिर गये हॉ तिलिस्मी खजर की बदौलत अलबत्ते बच सकते है। नागर ने तिलिस्मी खजर का (जो वास्तव में असली न था) कब्जा दबाया मगर किसी तरह की चमक पैदा न हुई। उसने फिर कर श्यामलाल की तरफ देखा मगर उसे कही न पाया। अब उसके ताज्जुब की हद्द न रही और घबराहट के मारे वह ऐसा बौखला गई कि थोडी देर तक तनोबदन की भी सुध जाती रहीं। इस बीच में वे आदमी भी जो पीछे से आ रहे थे आ पहुचे और नागर के सिपाहियों पर टूट पड़े। वे लोग भी गिनती में उतने ही थे जितने नागर के सिपाही थे मगर नागर के सिपाही इतने दिलावर और मजबूत न थ कि उन आठों के मुकाबले में ठहर सकते। नागर डर के मारे चिल्ला कर एक किनारे हट गई और भागना चाहती थी मगर मौका न मिला। वे दोनों सवार नागर की आवाज़ सुन कर पहिचान गये कि वह औरत है। एक न घोडे से उतर कर उसे गोद में उठा लिया और उसके हाथ से खजर छीन कर उसे दूसरे सवार के आगे बैठा दिया। इसके बाद खुद भी अपने घोडे पर सवार होकर उसने ऊँची आवाज में न मालूम किससे पूण- 'यहाँ केवल एक नागर ही औरत है या और भी कोई औरत है? इसके जवाब में किसी ने कुछ दूर से पुकार कर कहा अगर कोई औरत हाथ आ गई तो ले भागो और समझो कि यही नागर है। इस जवाब को नागर ने भी सुना और पहिचान गई कि यह श्यामलाल की आवाज है। अपने सवाल का जवाब पाते ही वे सवार उत्तर की तरफ रवाना हो गये। इस समय चन्द्रदेव पूरी तरह से निकल कर अपनी सुफेद चाँदनी चारों तरफ फैला रहे थे। नागर के सिपाहियों को जब मालूम हुआ कि नागर गिरफ्तार कर ली गई तो उनकी ताकत और भी जाती रही। दो सिपाही तो जख्मी होकर जमीन पर गिर पड और वाकी छ अपनी जान लेकर भागे। उस समय श्यामलाल भी आकर उन आठों वहादुरों के पास राडा हो गया और उन लोगों की तरफ देख के योला ‘शायाश तुम लोगों ने अपना काम बडी खूबी के साथ पूरा किया मैं बहुत खुश हू अब बताओ मेरे लिए घोडा कहाँ है? श्यामलाल को देखते ही उन लोगों ने हाथ जोड कर सिर झुकाया और एक यह कह कर उत्तर की तरफ बढा कि 'ठहरिये मै घोडा लेकर अभी आता हू। थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा और जब वह आदमी घोडा लकर आ गया तो श्यामलाल घोडे पर सवार हा गया तथा उन आठों स बोला अच्छा अब तुम लोग रमापुर जाओ मै अपना काम करके तुमसे मिलूंगा। श्यामलाल भी उत्तर की तरफ रवाना हुआ और पुल के पार होकर उसने अपने घोडे को तेज किया। जब लगमग एक कोस के चला गया तो देखा कि वे दोनों सवार जो नागर को उठा लाये थे सड़क पर खडे हैं। उन लोगों को देख कर श्यामलाल ने कहा 'शावाश मेरे दोस्तों तुम लोगों की जितनी तारीफ की जाय थोड़ी है अच्छा अब यहाँ ठहरने का मौका नहीं है चल चलो। पांचवां बयान अब हम अपने पाठकों को उस तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते हैं जो कमलिनी के अधिकार में है अर्थात् वह तालाब के बीचोबीच वाला मकान जिसमें कुछ दिन तक कुअर इन्द्रजीतसिह को कमलिनी के वश में पड रहना पड़ता था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १०