पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५०९

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R चुके था (लन्धी सॉस लेकर इश्वर की भी विचित्र माया है। अच्छा अब जा मैं कहता हूँ उसे सुनो क्योंकि मै यहाँ ज्यादे दर तक नहीं ठहर सकता। तारा-(ताज्जुब क साथ ) तो क्या आप भी यहाँ से चले जायगमकान में न चलेंगे?' गोपाल-नहीं मुझे इतना सम्य नहीं मैं बहुत जल्द कुँअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह और कमलिनी के पास पहुंचा चाहता हूँ। तारा-क्या व लोग अभी निश्चिन्त नहीं हुए? गोपाल-हुर मगर वैस नहीं जैसे होना चाहिए। "पालसिह की बात सुन कर तारा गौर में पड़ गई और देर तक कुछ सोचती रही। इसके बाद उसने सिर उठाया और कहा अच्छा कहिये क्या आज्ञा हाती है? (किशोरी और कामिनी की तरफ इशारा करके) इनके छूटने की मुझे बहुत खुशी हुई इनक लिए मुददत तक मुझे रोहतासगढ में छिप कर रहना पड़ा था अब तो कुछ दिन तक यहाँ रहेंगो ना. गोपाल-हॉ वशक रहेंगी इन्हीं दोना का पहुचाने के लिए मैं आया हू। इन दानों को मैं तुम्हारे हवाले करता हूं और साकीद क साथ कहता हूँ कि कमलिनी के लौट आने तक इन्हें बड़ी खातिर के साथ रखना देखो किसी तरह की तकलीफ न हान पाव आहै कि कुअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह और कमलिनी का साथ लिए हुए में बहुत जल्दी यहाँ आऊंगा। तारा-में इन दानों को अपनी जान से ज्यादे मानूगी क्या मजाल कि मरी जान रहते इन्हें किसी तरह की तकलीफ गोपाल-बत यही चाहिए हाँ एक बात और कहना है । तारा-वह क्या ? गोपाल-मुरा हाल अभी तुम किसी से न कहना क्योंकि अभी मैं गुप्त रह कर कई काम किया चाहता हू इसी सबब से मैं तुम्हार मकान में न आया तुम्हे वहा बुलाकर जाकुछ कहना था कहा। तारा-बहुत अच्छा जैसा आपने कहा है वैसा ही होगा। गोपाल-अच्छा ता हम लाग जात है। किशारी और कामिनी का तारा उस तिलिस्मी मकान में लिया लाई भूतनाथ और देवीसिह पहुचाने के लिए साथ आये और फिर चल गये। ताराने किशारी और कामिनी का बडी इज्जत और खातिरदारी के साथ रक्खा) उन बेचारियों को अपनी जिन्दगी में तरह तरह की तकलीफें उठानी पड़ी इसलिए यहुत दुबली दुखी और कमजोर हो रही थीं। तरह तरह की चिन्ताओं ने उन्हें अधमूआ कर डाला था। अब मुददत के बाद यह दिन नसीय हुआ कि वे दोनों बेफिक्री के साथ अपनी हालत पर गौर करें और तारा को उसक माहब्बतान बताव पर धन्यवाद दें। किशारी पर कामिनी का और कामिनी पर किशोरी का बड़ा ही स्नेह था इस समय दोनों एक साथ हैं और यह भी सुन धुकी है कि कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह मायारानी की कैद सछूट गए और अव कुशलपूर्वक है इसलिए एक प्रकार की प्रसन्नता न उनकी जिन्दगी की मुझाई हुई लता पर आशा रूपी पानी के दो चार छीटे डाल दिए थे और अब उन्हें ईश्वर की कृपा पर बहुत कुछ भरोसा हो चला था परन्तु यह जानने के लिए दोनों ही का जी बेचैन हो रहा था कि मायारानी को हम लोगों से इतनी दुश्मनी क्यों है और वह स्वय कौन है क्योकि केद के बाद दवीसिह से यह यात पूछ न सकी थी और न इसका मौका ही मिला था। उस तिलिस्नी मकान में दा दिन और रात आराम से रहने के बाद तीसरे दिन सध्या के समय जब किशोरी और कामिनी का मकान की छत पर ले जाकर तारा दिलासा ओर तसल्ली देने के साथ ही साथ चारों तरफ की छटा दिखा रही थी किशोरी को मायारानी का हाल पूछन का मौका मिला और इस बात की भी उम्मीद हुइ कि तारा सब यात अवश्य सच सच कह दगी अस्तु किशारी ने तारा की तरफ देखा और कहा-- किशोरी-बहिन तारा निसन्देह तुमन हमारी बडी खातिर और इज्जत की तुम्हारी बदौलत हम लाग यहाँ बड चैन और आराम से है जिसकी अपनी मूडी किस्मत स कदापि आशा न थी और ईश्वर की कृपा से कुछ कुछ यह भी आशा ही गई है कि हम लोगो के दिन अब शीघ्र ही फिरेंगे। इस समय मेरे दिल में बहुत सी बातें एसी है जिनका असल भेद मालूम नहाने के कारण जी बचैन हा रहा है अगर तुम बताओ ता तारा-4 कौन सी बातें है कहिए जो कुछ मै जानती हू अवश्य बताऊँगी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९