पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१

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- अहा इस समय के विभी देखने ही लायक है बदन में कोई जवर न हान पर भी उनक हुस्न और नजाकत में किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा था : सिर्फ सुफेद रन की एक सादी साडी पहर हुए थीं जिसक अन्दर स चम्पे का रंग लिय हुए मारे बदन की आना निकल रही थीं सिर के बाल खुले हुए थे जिसमें से कई घरवाली लटें गुलाबो गालों पर लहरा रही थीं काली काली भौहें कमान की तरह खिची हुई थीं जिनके नीचे की बड़ी बड़ी रतनार मस्त आँखें रनबीरसिह की तरफ प्रमवान चला रही थी। पाठक हम इनके हुस्न की तारीफ इस मौके पर नहीं किया चाहत क्योकि यह कोई श्रृंगार का समय नहीं बल्कि एक दियोगिनी महारानी के एसे समय की छवि है जब कि खदेडा हुआ वियोग देखते देखते उनकी आँखों के सामने से भाग रहा है। आज मुद्दत स उन्होंने इस बात पर ध्यान भी नहीं दिया कि श्रृंगार क्या हाता है या गहना जेवर किस चिडिया को कहते हैं सुख का नाम ही नाम सुनते है या असल में वह कुछ है भी! हाँ आज उनको मालूम हागा कि उस चीज का मिलना देता आनन्द देता है जिसक लिये वर्षों राते कर रिताया हो और जीते जी बदन को मिट्टी मान लिया हो। यह नहारानी कुसुमकुमारी वहीं है जिनकी मूरत अपनी मूरत के साथ पहिल पहल पहाड पर रनवीरसिह ने देखी थी और निगाह पडते ही पागल हो गए थे या जिसे देख ही जसवन्तसिह की भी नीयत ऐसी खराब हो गई थी कि उसने दलसिह स मिल करवीरसिंहकामरवा ही डालना सन्द किया था और यह वही महारानी कुसुमकुमारी है जिसके मरने की खबर सुन कर ही वालसिह ने रनचोरसिह ओ जेसवन्त को कैदसे छुट्टी दे दी थी। उसी महारानी कुसुमकुमारी को जीती जागती और मिलने के लिय स्वयम् सामने आती हुइ रनवीरसिह दख रह है क्या यह उनके लिये कम खुशी की दात है? स्वीरसिंह और कुसुम्कुमारी की चार आँखे होते ही दोनों मिलन क लिय एक दूसरे की तरफ झपट कुसुमकुमारी दौड कर रम्योगसिह के पैरों पर गिर पड़ी और आँखों स गरम ऑसू बहाने लगी। रनवीरसिह जल्दी स उसी जगह घास पर बैठ गए और कुसुमकुमारी को दोनों या पकड के उठाया। इइ दर्जे की बडी हुई खुशी मी कुछ करन नहीं देती : सिवाय इसक कि कुसुमकुमारी की दोनों कलाई पकड उसके मुह की तरफ देखते रहें रनवीर से और कुछ न बन पड़ा। इसी हालत में बैठे बैठे आध घण्टे से ज्याद दिन चढ आया और सूर्य की किरणों ने इनका चेहरा पमीने पसीने कर दिया। चालाक और वफादार लोडियों बहुत कुछ कह सुन कर इन दानों को हारा में लाई और उस पत्त वाली झोपड़ी में अन्दर ले गई। इसके भीतर सुन्दर फर्श विछा हुआ था जिसपर वे दोनों बैठ और धीरे धीरे बातचीत करने की नौवत पहुची। रनवार-मेरे लिये ट्रम्पको बहुत कष्ट उठाना पड़ा। कुत्तुम मुझ किसी बात की तकलीफ नहीं हुई हाँ इस बात का रज जरूर है कि इसी कम्बख्त की बदौलत बालसिह ॐ वेद खाने में आपको दुख भागना पड़ा ! रनवीर-वहा मै बड़े आराम से रहा जो जा तकलीफें तुमने उठाई है उस्का सालहदों हिन्ता भी मुझे नहीं उठानी पड़ों। हाय आज तुमका अपनी आँखों से इस जगल मैदान में पत्तों को झापडी बना तपस्विनी वन दिन भर की गर्मी और गर्न गर्न लू ने शरीर सुखात दखना पडा । कुसुन-यस बस इस समय ये सब बातें अच्छी नहीं मालूम हाती जो हुआ तो हुआ अबता मेरे एसा भाग्यवान कोई है ही नहीं !(हँत कर) आप दास्त जसवन्तसिह वहादुर कहाँ है? रनवीर-हाय हाय उस नालायक हरानजादे न ता गजब ही किया था प्यालेसिह के घर से निकलत ही अगर तुम्हारी विट्ठी मुझ न मिलती तो न मालूम अभी और क्या नाग भागना पड़ता तुम्हारे मरने की खबर सुन कर मैंने निश्चय कर लिया था किसी एसी जगह जाकर अपनी जान ददनी चाहिये कि वर्षों सर पटकने पर भी किसी को मालूम न हो कि रनवीर कहाँ गया और क्या हुआ। एते दत्त में तुम्हारी चिटठी ने दा काम किर्य एक तो मुझ भरत मरते बचा लिया दूसर विश्वासघाती जसवन्त स जन्म भर के लिए छुट्टी दिलाई नहीं तो वह फिर भी मरा दोस्त ही बना रहता। सच तो यह है कि मुझ उत्तकी दोस्ती का पूरा विश्वास था यहा तक कि बालेसिह के कहने पर भी मेरा जी उसकी तरफ स नहीं हटा था। इसके बद रनदीपसहन अपने बालेसिह के हाथ में फंसन जसवन्न का वहाँ पहुँचकर बालेसिह से मेल करने की

  • पहाड पर जब रनवीरसिह कुसुमकुमारी की ओर अपनी मूरत देख कर पागल हो गए थे उसी समय पता लगा कर

चालसिहनधाख में उन्हें गिरफ्तार करवा लिया था। पहाड से उतर कर पहिली मतया गांव में आत समय जो कई सवार जसवन्तसिड़ को मिले थे यालसिह ही के नौकर थे यहऊपर जनाया जा चुका है और पाठक भी समझ ही गए होग। देवकीनन्दन खत्री समग्र १०५९