पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५११

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दि छठवां बयान 1 हम ऊपर किसी बयान में लिख आए है कि तितिरमी दारोगा की बदौलत जव नागर और मायारानी में लडाई हो गई तो उसी समय मौका पाकर कम्बख्त दारोगा वहाँ से निकल भागा और उसके थोड़ी ही देर बाद मायारानी भी नागर के धमकाने से डर कर यहाँ से चली गई। यद्यापेदारागा और मायारानी में लड़ाई हो गई थी मगर मेल हान में भी कुछ देर न लगी। कायदे की बात है कि चोर बदमाश येईमान आदि जितन बुर कर्म करने वाले हैं प्रकृत्यानुसार कभी कभी आपुस में लड भी जाते हैं और लड़ाई यहाँ तक बढ़ जाती है कि एक क खून का दूसरा प्यासा हा जाता है बल्कि जान का नुकसान भी हो जाता है मगर थोडे ही असे के बाद फिर आपुस में मल मिलाप हो जाता है। इसका असल सबब यही है कि युरे ननुष्यों के हृदय में लज्जा शान मान और आन की जगह नहीं होती। उन्ह इस बात का ध्यान नहीं होता है कि फलाने ने मुझे ताना मारा था फलाने ने मेरी किसी प्रकार वइज्जती की अतएव कदापि उसके सामने न जाना चहिये या किसी तरह उसे अवश्य नीचा दिखाना चाहिए क्योंकि बुरे मनुष्यता नीच होते ही है उन्हे अपने नीच कर्मों या अपने साथियों के ताने या लडाई से शर्म ही क्यों आने लगी? और यही सवय है कि उनकी लडाइ बहुत दिनों के लिय मजबूत नहीं होती। अगर ऐसा होता तो फूट और तकरार के कारण स्वय बदमाशों का नाश हो जाता और भले आदमियों को बुरे मनुष्यों स दुख पाने का दिन नसीब न होता। परमेश्वर की इस विचित्र माया ही ने मायारानी और दारोगा में फिर समल करा दिया और राजा वीरन्द्रसिह तथा उनके खानदान की बदनसीबी के वृक्ष में पुन फल लगने लगे जिसका हाल आगे चल कर मायारानी और दारोगा की बातचीत से मालूम होगा। . जिस समय नागर की धमकी से डर कर कुछ साचती विचारती मायारानी सदर फाटक के बाहर निकली और गगा के किनारे की तरफ चली तो थोडी ही दूर जाने के बाद तिलिस्मी दारोगा से जो नाक कटा कर अपनी बदकिस्मती पर रोत, कलपता धीर धीर गगाजी की तरफ जा रहा था उसकी मुलाकात हुइ! जब अपन पीछे किसी क आने की आहट पा दारोगा न फिर कर देखा तो मायारानी पर निगाह पड़ी। यद्यपि उस समय वहाँ पर अधरा था परन्तु बहुत दिनों तक साथ रहने के कारण दोनों ने एक दूसरे को बखूबी पहिचान लिया। मायारानी तुरन्त दारोगा के पैरों पर गिर पड़ी और आँसुओं से उसके नापाक पैरों का मिगोती हुई बोली- 'दारोगा साहब नि सन्देह इस समय आपकी बडी बेइज्जती हुई और आप मुझसे रज हो गये परन्तु मै कसम खाकर कहती है कि इसमें मेरा कसूर नहीं हैं। थाडी सी बात जो ने आपसे कहा चाहती हु आप कृपा कर सुन लीजिए इसक बाद यदि आपका दिल गवाही दे कि बेशक मायारानी का दोष है तो आप वेखटके अपने हाथ से मेरा सर काट डालिए मुझे कोई उजन होगा बल्कि मै प्रतिज्ञापूर्वक कहती है कि में उस समय अपने हाथ से कलेजे में खजर मार कर मर जाऊगी जब मेरी बात सुनने के बाद आप अपने मुह से कह देंगे कि येशक कसूर तरा है क्योंकि आपको रज करके मैं इस दुनिया में रहना नहीं चाहती। आप खूप जानत है कि इस दुनिया में मेरा सहायक सिवाय आपके दूसरा नहीं अतएव जब आप ही मुझसे अलग हो जायेंगे तो दुश्मनों के हाथों सिसक सिसक कर मरने की अपेक्षा अपन हाथ से आप ही जान दे देना मैं उत्तम समझती हूँ। दारोगा-यद्यपि अभी तक मेरा दिल यही गवाही देता है कि आज तू ही ने मरी बेइज्जती की और तू ही न मेरी नाक काटी परन्तु जब तू मेरे पैरों पर गिर कर सावित किया चाहती है कि इसमें तेरा कोई कसूर नहीं है तो मुझं भी उचित है कि तरी बातें सुन लें और इसके बाद जिसका कसूर हो उसे दण्ड दूं। माया (खडी हाकर और हाथ जोड कर ) बस बस बस मै इतना ही चाहती है। दारोगा-अच्छा तो इस जगह खड होकर बातें करना उचित नहीं। किसी तरह शहर के बाहर निकल चलना चाहिए बल्कि उत्तम ता यह होगा कि गगा के पार हाजाना चाहिए फिर एकान्त में जो कुछ कहोगी मैं सुनूपा । दोनों वहाँ से रवाना होकर बात की बात में गगा के किनार जा पहुच। वहाँदारागा ने खूब अच्छी तरह अपनी नाक धोकर मरहम की पटटी बाँधी जो उसके बटुए में मौजूद थी और इसके बाद मल्लाह को कुछ देकर मायारानी को साथ लिए दारोगा साहब गगा पार हो गये। दारोगा ने वहाँ भी दम न लिया और लगभग आध कोस के सीधे जाकर एक गाँव में पहुचजो घोडों के सौदागर लोग रहा करते थे और उनके पास हर प्रकार के कमकीमत और बेशकीमत धोडे मौजूद रहा करत थे। वहाँ पहुँच कर दारोगा न मायारानी से पूछा कि तेरे पास कुछ रुपया अशर्फी है या नहीं ? इसके जवाब में मायारानी ने कहा कि 'रुपये तोनही है मगर अशर्फिया है और जवाहिरात का एक डिव्या भी जो तिलिस्मी बाग से भागती समय साथ लाई थी मौजूद है । चन्द्रकान्ता सन्ततिभाग १०