पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१२

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दि आसमान पर सुबह की सुफेदी अच्छी तरह फैली न थी। गाय में बहुत कम आदमी जाम थे। मायारानी स पचास अशर्फी लकर और उसे एक पड के नीचे बैठा कर दारोगा साहब सराय में गये और थोड़ी ही दर में दाघाड़मय साज के खरीद लाए। मायारानी और दारोगा दोनों घोड़ों पर सवार होकर दक्टिन की तरफ इस तेजी के साथ रवाना हुए कि जिससे जाना जाता था कि इन दोनों को अपने घोड़ों के मरन की कोई परवाह नहीं है इसके बाद जब एक जगल में पहुचे तो दोनों ने अपने अपने घोडों की चाल कम की और बातचीत करते हुए जाने लगे। दारोगा-अब हम लोग ऐसी जगह आ पहुंच है जहाँ किसी तरह का डर नहीं है अब तुम्हे जो कुछ कहना ही कहीं। माया-इसके पहिले कि आपके छूटने का हाल आपसे पूल, जिस दिन स आप मुझसे अलग हुए है उस दिन से लेकर आज तक का अपना किस्सा मैं आपस कहा चाहती है जिसके सुनने से आपको पूरा पूरा हाल मालूम हो जायगा और आप स्वय कहेंगे कि मै हर तरह से बकसूर दारोगा-ठीक है जितने विस्तार के साथ तुम करना चाहा कहा मै सुनो के लिए तैयार है। मायारानी न व्योरेवार अपना हाल दारोगा से कहना शुरु किया जिसमें तजसिह का पागल चन के तिलिस्मी याग में आना चडूल का पहुचना राजा गोपालसिह का कैद से छूटना लाडिली का मायारानी से अलग होना धनपत की गिरफ्तारी अपना भागना तिलिस्म का हाल सुरग में राजा गोपालसिह कमलिनी लाडिली भूतनाथ और दीसिह का आना नकली दारोगा का पहुचना और उससे बातचीत करे धारा खाना इत्यादि जो कुछ हुआ था सच सच दारोगा से कह सुनाया इसके बाद दारोगा की चोठी पदना और फिर असली दारागा केविषय में घाखा याना भी कुछ बनावट के साथ वयान किया जिसे बडे गौर से दारोगा साहब सुनते रह और जब भायारानी अपनी यात खतम कर चुकी तो बाले- दारोगा-अब मुझे मालूम हुआ कि जो कुछ किया हरामजादी नागर नं किया और तू कसूर है या अगर तुझर्स किसी तरह का कसूर हुआ भी तो धोयो में हुआ मगर तेरी जुवानी सब हाल सुन कर मुझे इस बात का बहुत रज हुआ कि तूने राजा गापालसिह के बारे में मुझे घाया दिया । माया बेशक या भरा कसूर हे मगर यह कसूर पुराना हो गया ओर घाखे मे लक्ष्मीदेवी का नदखुल जाने पर ता अब वह क्षमा के योग्य भी हो गया। अगर आप उस कसूर को भूल कर बचने का उद्योग न करगे तो बेशक मेरी और आपकी दोनों ही की जान दुगति के साथ जायगा क्योंकि मैं फिर नीटिठाइ के साथ कहती हू फि उस विषय में मरा और आपका कसूर बराबर है। दारोगा-वेशक ऐसा ही है पर मै तरा कसूर माफ करता है क्योकि तून इस समय उसे साफ साफ कह दिया और यह भी निश्चय हो गया कि आज केवल नागर की हरामजदगी ने माया-(अपने घोड को पास ल जाफर और दारोगा का पैर छूकर ) केवल माफ ही नहीं बल्कि उद्योग करना चाहिए जिसमें राजा गोपालसिह वीरेन्दसिह उनके दोनो लड़के और एयार गिरफ्तार होजाये या दुनिया से उठा दिए जाए। दारोगा-ऐसा ही होगा और शीध ही इसके लिए मैं उत्तम उद्याग करूँगा। (कुछ सोच कर मगर मैं दखता हूं कि इस काम के लिए रुपय की बहुत जरूरत है। माया-रुपय पैसे की किसी तरह कमी नहीं हो सकती मेर पास लायों रुपये के जवाहिरात है बल्कि देवगढी का खजाना ऐसा गुप्त है कि सिवा मेरे कोई दूसरा पा ही नहीं सकता क्योंकि गोपालसिह को उसकी कुछ भी खबर नहीं है। दारोगा-(ताज्जुब से ) देवगढी का राजाना कैसा? मैं भी उस विषय में कुछ नहीं जानता। माया-वाह आप क्यों नहीं जानते । वह मकान आप होने ताचनपत का दिया था। दारोगा-ओह दवगढी क्यों कहती हो शिवगढी कहाँ ! माया-हों हा शिवगढी शिवगढी मैं भूल गई थी नाम में गलती हुई । उसमे घडी दौलत है। जो कुछ मैने धनपत को दिया सब उसी में मौजूद है धनपत वेचारा कैद ही हो गया फिर निकालता कौन ? दारोगा-वंशक वहा बडी दौलत होगी। इसके सिवाय मुझे भी तुम दौलत से खाली न समझना अस्तु कोई चिन्ता नहीं देखा जायगा। माया-मगर अभी तक यह न मालूम हुआ कि आप कहाँ जा रहे है ? घोडे बहुत थक गये है अब ये ज्यादे नहीं चल सकते। दारोगा-हमें भी अब बहुत दूर नहीं जाना है (उगली के इशारे से बता कर) वह देयों सामने जो पहाडी है उसी पर मेरा गुरुमाई इन्ददव रहता है इस समय हम लोग उसी के मेहमान होंगे। माया-ओहो अब याद आया इन्हीं का जिक्र आप अक्सर किया करते थे और कहते थे कि बड़े चालाक और प्रतापी है । आपने एक दफे यह भी कहा था कि इन्द्रदेव भी किसी तिलिस्म के दारोगा है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५०४