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की बातें लिखनाही जचता पाहै।
उस समय इन्ददाय वानी कलि स्वर निकल आया बयान उभर के पास पहुआ जिसमें
वह रहता था। वहादा) सदा तपारस मिला और यातिर के साथ अन्दर ले जाकर दाया।
इन्ददेव-( दारागा से ) आप और मायारानी vire करने का सबब पूजा के पहित में जानना चाहता है कि
आपने क पर पटटीया बाध रक्त है?
दारोगा-तुमसे विदा होकर भाजा शुछ तकलीफ उगई यह उसी का है। अब जरा दम लने के बाद
अपना फिस्सा तुमसे कटूगा तब सवाल मालूम हो जायमा इस समय पूर प्यास और कागद त जी पर्धन हो रहा है।
दारोगा का जवाब सुन कर इन्द्रदेव युप से रहा और फिर कुछ बातचीत न हुई। दारागा और मायारानी के खाने
पीने का उत्तम प्रबन्ध कर दिया गया और उन दोनों ने कई घण्टे तक आराग कर अपनी थकावट दूर की। जब सप्या
होन में थाडी देर बाकी थी तब इन्ददेव स्वप उस कमरे में आया जिसमें दारोगा का डेरा पड़ा हुआ था। दह कमरा
इन्ददय के कमरे के बगल ही में था और उसमें जाने के लिए कपल एक मामूली दर्वाजा था। उस समय मायारानी दारोगा
के पास बैठी अपना दुखड़ा रो रही थी। इन्ददेव के आते ही वह चुप हो गई और बाबाजी ने खातिर के साथ इन्ददेव को
अपने बगल में पैठाया।
देवकीनन्दन खत्री समग्र
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पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१६
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