पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१७

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इन्द्र-मैं समझता हूं कि इस समय आप अपना हाल बखूची कह सकेगे जिसके सुनने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा ? दारोगा-वह कहने के लिए इस समय मैं स्वय ही तुम्हारे पास आने वाला था अच्छा हुआ कि तुम आ गये। दारोगा ने अपन, और मायारानी का हाल जोकुछ हम ऊपर लिख आये है इन्द्रदेव से पूरा पूरा बयान किया। इन्ददेव चुपचाप सुनता गया पर अन्त में जब नागर द्वारी याबाजी की नाक काटने का हाल सुना तो उसेयकायक क्रोध चढ़ आया। उसका चेहरा लाल हो गया हॉट हिलने लगे और वह बिना कुछ कहे धाराजी के पास से उठ कर चला गया। यह हाल देख कर मायारानी का ताज्जुब मालूम हुआ और उसने दारोगा से पूछा क्या आप कह सकते है कि इन्द्रदेव आपकी बातों का कोई जवाव दिये बिना ही क्यों चला गया दारोगा-मालूम होता है कि मेरा हाल सुन कर उसे हद से ज्यादे क्रोध चट आया और वह कोई कार्रवाई करन के लिय चला गया है। माया-इन्ददेव नांगर को नानता है ? दारोगा-बहुत अच्छी तरह यल्कि नागर का जितना भेद इन्द्रदेव का मालूम है उतना तुमको भी मालूम न होगा। माया-सा केस दारोगा-जिस जमाने में नागर रण्डियों की तरह बाजार में बैठती थी और मोतीजान के नाम से मशहूर थी उस जमाने में इन्द्रदेव भी कभा कभी उस्क पास भेष बदल कर माना सुनने की नीपल से जाया करता था और उसकी हर एक बाता की इसे खवर थी मगर इन्द्रदय का ठीक ठीक हाल बहुत दिनों तक सोहबत करने पर भी नागर का मालूम न हुआ वह इन्द्रदेव को कवल एक सरदार और रुण्ये वाला ही जानती थी। आध घण्टे तक इसी किस्म की बातें होती रही और इसके बाद इन्ददेव क रेयार सरािह ने कमरे के अन्दर आकर कहा इन्द्रदवजी आपको चुलत है आप अकेले जाइये और नजरबाग में मिलिये जहाँ वह अकले टहल रहे है। इस सन्देश का सुन कर दारोगा उड खड़ा हुआ ओर मायारानी का अपन कभर में जाने के लिए कह इन्द्रदव के पास चला गया। इस कान के पीछे की तरफ एक छोटा सा नजरबाग था जो अपनी खुशनुमा क्यारियों और गुलयूटों की बदौलत बहुत ही भला मालूम पड़ता था। जव दारोगा वहा पहुचा तो उसने इन्द्रदेव को उसी जगह टहलते हुए पाया। इन्द्रदेव-माइ सहाय आज आपकी जुबान से मैने वह बात सुनी है जिसके सुनने की कदापि आशा न थी। दारोगा-वेशक नागर की बदमाशी का हाल सुन कर आपको बहुत ही रज हुआ होगा। इन्ददेव-नहीं मरा इशारा नागर की तरफ नहीं है। इसमें तो कोइ सन्दह नहीं कि नागर ने आपके साथ जो कुछ किया बहुत बुरा किया और मैं उसे गिरफ्तार कर लेने के लिये एक ऐयार और कई सिपाही रवाना भी कर चुका हू मगर मैं उन यातों की तरफ इशारा कर रहा हू जो राजा गोपालसिह ससम्बन्ध रखती है। मुझे इस बात का गुमान भी न था कि राजा गोपालसिह अभी तक जीते है । मुझ स्वप्न में भी इस यात का ध्यान नहीं आ सकता था कि मायारानी वास्तव में गोपालसिह की स्त्री नहीं है और आपकी कृपा से लक्ष्मीदेवी की गददी पर जा बैटी है । ओफ ओह. दुनिया भी अजब चीज है और उसमें विहार करने वाले दुनियादार भी कैसे मनस्ये गॉठते है। इन्ददेव की यातें सुन कर दारोगा चौक पड़ा और उसे विश्वास हा गया कि हमारो आशालता में अब कोई नये ढग का फूल खिला चाहता है। उसने घबडा कर इन्ददव की तरफ देखा जिसका जमीन की तरफ झुका हुआ चहरा इस समय बहुत ही उदास हो रहा था। दारोगा-चशक मायारानी का लक्ष्मी बनान में मेरा कसूर था मगर राजा गोपालसिह के बारे में मैं बिल्कुल निर्दोष हू। मुझ इस बात का गुमान भी न था कि राजा साहब को मायारानी ने कैद कर रक्खा है मै वास्तव में उन्हें मरा हुआ समझता था। इन्द्रदेव-(इस ढग से जैस दारागा की यात उसने सुनी ही नहीं ) क्या आप कह सकते हैं कि राजा गोपालसिह ने आपके साथ काई बुराई की थी ? . दारोगा-नहीं नहीं उस बेचारे ने मेरे साथ काई बुराई नहीं की । इन्द्रदेव क्या आप कह सकते है कि गोपालसिह के बाद आप विशेष धनी हो गए है? दारोगा नहीं। इन्ददेव-क्या आप इतना भी कह सकरी है कि राजा साहब क समय की बनिस्यत आज ज्यादे प्रसन्न है? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १० ५०९