पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१८

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दारोगा-(ऊची सास लेकर ) हाय, प्रसन्नता ता मानों मेरे लिये सिरजी ही नहीं गई । इन्द्रदेव-नहीं नहीं आप एसा कदापि नहीं कह सकते बल्कि ऐसा कहिये कि ईश्वर की दी हुई प्रसन्नता का आपने लात मार कर घर से निकाल दिया। दारोगा-यशक ऐसा ही है। इन्द्रदेव-(जोर देकर) और आज नाक कटा कर भी दुनिया म मुह दिखाने के लिये आप तैयार है और पिछली बातों पर जरा भी अफसोस नहीं करते जिस कम्बख्त मायारानी ने अपना धर्म नष्ट कर दिया जो मायासनी लोकलाज को एकदानि गती द वेठी जिस दुष्टाने अपने सिरताज राजा गोपालसिह के साथ घात किया जिस पिशाचिनी ने अपने माता पिता को जान ली,जिसकी बदौलत आ पको कारागार (कैदखान) का मजा चखना पड़ा और जिसके सतसग से आप अपनी नाक कटा धैठे आज पुन उसी की सहायता करने के लिए आप तैयार हुए है और इस पाप में पुझसे सहायता लेकर मुझ भी नष्ट किया चाहत है ! वाह भाई साहब वाह आपने गुरु का अच्छा नाम रोशन कि क्यिा मुझे भी अच्छ। उपदेश कर रहे है । बड अफसोस की बात है कि आप सा एक अदना आदमी जो एक रण्डी के हाथ ए अपनी नाक नहीं बचा सका राजा चीरेन्द्रसिह ऐसे प्रतापी राजा नामोनिशान मिटाने के लिएतयारहो जाय ! मैने तो राजा वीरेन्द्रसिह का कवल इतना ही कसूर किया कि आपको उनके कैदखाने स निकाल लाया और अब इसी अपराध को क्षमा कराके उद्योग में लगा हु, मगर आप जिसकी बदौलत में अपराधी हुआ हूँ अब फिर इतना कहत कहते इन्द्रदेव रुक गया क्योंकि पल पल भर में वढत जाने वाले कोध ने उसका रठ बन्द कर दिया। उसका पेहरा लाल हो रहा था और होठ काप रहे थे। दारोगा का चेहरा जर्द पड़ गया. पिछले पापों ने उसके सामन आकर अपनी भयानक मूर्ति शिखा के डसना शुरु किया और वह दोनों हाथों से अपना मुह ढाक राने लगा। थाडी दर तक सन्नाटा रहा इसके बाद इन्ददेव ने फिर कहना शुरु किया- इन्द्रदेव-हाय मुझे रह रह कर वह जमाना याद आता है जिस जमाने में दयावान और धर्मात्मा राजा गोपालसिह की बदोलत आपकी कदर और इज्जत होती थी। जय कोई सौगात उनके पास आती थी तब वह लीजिए बड़े भाई कह कर आपके सामने रखते थे। जब कोई नया काम करना होता था तो कहिये बड़े भाई क्या आज्ञा दते है ? कह कर आपमे राय लेले थे और जब उन्ह काध चढता था और उनके सामने जान की किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी तब आप की मूरत दखते ही सिर झुका लत थे और बड़ उद्योग से अपन काध का दया कर हल दते थे। क्या दाइ कह सकता है कि आपस कर या दव कर वे एसा बसा थ? नहीं कदापि नहीं इसका सवय कचल प्रेम था। व आपको चाहत थे भार आप पर विश्वास रचते थे कि स्वामीजी ने (जिनके आप शिष्य है आपका अच्छी दीक्षा और शिक्षा दी होगी। उन्हें यह मालूम न था कि आप इतने बड़े विश्वासघाती है | हाय, उनक साथ आपका ऐसा बर्ताव छि छि धिक्कार है ऐसी जिन्दगी पर / किसके लिए? किस दुनिया में मुह दिखाने के लिए? क्या आप नहीं जानते कि ईश्वर भी कोई वस्तु है खैर जाइये इस समय में विशेष बात नहीं कर सकता। आप यह न समझिये कि मैं अपने घर में से चले जाने के लिए आपसे क्हता टू बल्कि यह कहता है कि अपन कमरे में जाकर आराम कीजिय। आपको चार दिन की मोहलत दी जाती है इस बीच में अच्छी तरह सोच लीजिए कि किस तरह से आपकी भलाई हो सकती है और आपको किस रास्ते पर चलना उचित है। मगर खबरदार इस समय जो कुछ गाते हुई है उनका जिक्र मायारानो से न कीजिएगा और इस चार दिन के अन्दर मुझसे मिलने की भी आशा न रखिएगा। आठवां बयान - दारण्या जिस समय इद्रदेव के सामन से उठा तो शिना इधर उधर देखे अपने कमरे में चला गया और चादर से मुह ढाप कर पलग पर सा रहा। घण्ट भर राज गई होगी जब मायारानी यह पूछन के लिए कि इन्ददेव ने आपको वयाँ बुलाया था बाबा के कार में आई मगर जब बावालो को चादर से मुह छिपाए हुए देखा तो उसे आश्चय हुआ। यह उनके पास गई और चादर हटा कर देखा ता वाचाजी को जागते पाया। इस समय वायाजी का चेहरामर्द हो रहा था और एमा मालूम पडता था कि उनके शरीर में यून का राम भी नहीं है या महीनों से बीमार है। बावाजी की अवस्था देख कर मायारानी सन हो गई और बाधाजी का मुह देखने लगी। दारागा-इस समय जाआ सा रहो मरी दीयत ठीक नहीं है। माया-में कपल इसा ही पूच्ने आई थी कि इन्द्रदेव ने आपको क्यों बुलाया था और क्या कहा - देवकीनन्दन श्रीसमग्र ५१०