पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५१९

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Marat - दारोगा कुछ नहीं उसन कवल धीरज दिया और कहा के चार पांच दिन ठहरों मै तुम लोगों का धन्दावस्त कर देता है, तब तक नागर भी गिरफ्तार होकर आ जातो हे लाग उस पकड़ने के लिए गये है। माया-मगर आपकी अवस्था तो कुछ और कह रही है। दारोगा-वम इस समय और कुछ न पूछो में अभी कह चुका हूं कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है मैं इस समय वात भी मुश्किल से कर सकता हूँ। मायारानी और कुछ भी न घूछ सकी उलट पर लौट कर अपने कमरे में चली गई और पलग पर लट के सोचने विचारने लगी भगर थकावट मादगी और चिन्ना ने उस विशेष देर तक चैतन्य न रहने दिया और शीन ही पर नींद की गोद में जाकर खर्राटे लन लगी। रात बीत गइ सरेरा हान पर दारागा न दरियाप्त किया ता मालूम हुआ कि इन्ददेव यहा नहीं है। एक आदमी ने कहा कि तीन चार दिन के बाद आन का वादा करके कहीं चले गर्य है और यह कह गए है कि आप और मायारानी तय नक यहाँ से जाने का इरादा न करें। अब बायाजी का मालूम हुआ कि दुनिया में उनका साथी कोई भी नहीं है और उनक युरे कर्मा पर ध्यान देकर कोई भी उनकी मदद नहीं कर सकता। उन्हें अपन कर्मों का फल अवश्य भागना ही होगा। नौवां बयान - दारागा साहय का मकान में बैठ कर झक मारते हुए थार दिन बड़ी मुश्किल से बीते और आज पाचवा दिन है। जैसे ही याबाजी अपनी चारपाई पर स उठ कर बाहर निकले वैसे ही एक आदमी ने आकर सदेश दिया कि "इन्द्रदेवजी आपको बुलाते है मायारानी का साथ लेकर नजरताग मजइये। यह सुनते ही बाबाजी लौट कर मायारानी के कमरे में गये और माधारानी | को साथ लिए हुए उसी नजरगग में पहुचे ज्हा पहिले दिन उनकी नसीहत की गई थी। बानाजी और मायारानी ने देखा कि इन्द्रदव एक कुर्सी पर बैठा हुआ है और उसके बगल में दो कुर्सियां खाली पड़ी है उसके सामने दो आदमी नागर के दोनों धाजू पकड़खड़ है। नागर का हाथ पीठ पीछे मजबूती कमाथ बंधा हुआ है। इन्द्रदेव ने दारोगा और मायारानी को बैठने का इशारा किया और वे दारा उन कुसियों पर बैठ गय जा इन्द्रदेव के बगल में खाली पड़ी हुई थी। बाबाजी की अवस्था देख कर मागारानी को निश्चय हो गया था कि इन्द्रदेव ने मदद से साफ साफ इनकार कर दिया है और इसी सेवामाजी उदास और बेचेन है मगर इस समय नागर को अपने सामने बस खड़ी देख कर मायारानी को कुछ टाटस हुई और उमन सोगा कि बाबाजी की उदासी का काइ दूसरा ही कारण होगा इन्द्रदेव हग लागों की मदद अवश्य करेगा। पाठक महाशयसमझ ही गये होंगे कि नागर की गिरफ्तारी करन वाला इन्द्रदेव ही है जिसका हाल ऊपर के एक नया में लिख चुके है और जिस श्यामलाल 7 नागर का गिरफ्तार किया था वह इन्द्रदेव ही का कोई ऐयार हागा या इन्द्रदेव ही होगा। इन्ददेव के बगल में जब मावारानी और दारागा बैठ गए तो इन्द्रदेव ने नागर से पूछा क्या वादाजी की नाक तूने ही कोटी? नागर-जी हा मैने मायारानी की आज्ञा पाकर इनकी नाक काटी है। इन्द्रदेव-(अपने आदमीस) अच्छा तुम इस कम्बख्त नागर को नाक और उसके साथ कान भी काट लो और यदि दुछ बाल ता जुवान मो काट लो । हुक्म को दर ची नोकर मानों पहिले ही से नाक कान काटन के लिए तैयार था अस्तु, इस समय जो कुछ होना था हो गया और इसके बाद नागर कैदखाने ने भेज दी गई। मायारा भी इन्ददय की आज्ञानुसार अपने कमरे में चली गई और इन्द्रदेव तथा दारामा अकेले ही रह गए। इन्ददेव-आप दखते है कि जिसने आप के साथ बिना कारण के बुराई की थी उसे बुराई का बदला ईश्वर ने कुछ विशषता के साथ दे दिया। आपका भी इसी तरह विचारना चाहिए कि क्या राजा बोरेन्दसिह और राजा गापालसिह के साथ जो बड़े नेक और बिल्कुल बकसुर बुराई करने वाला अपनी सजा का न पहुँचेगा? दारोगा-निसन्देह आपका कहना ठीक है परन्तु, दागना परन्तु से आगे कहने भी न पाया था कि इन्द्रदव फिर जोश म आ गया और कडी निगाह से बाचाजी की तरफ देख कपाला- इन्ददेव-मैं इतना क गया मगर अभी तक ‘परन्तु का डरा आपके दिल से न निकला ! बीरेन्दसिह के एयारों से . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १० ५११