पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२०

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cort उलाने की इच्छा आपकी अभी तक बनी ही है। खैर जो आपके जी में आवे कीचिए मगर मुझसे इस बारे में किसी तरह को आशा न रखिए। आप चाहे मुझे कोई भारी वस्तुसमझे बैते हो परन्तु मैं अपने को उन लोगों के मुकाबले में एक भुनगे के बराबर भी नहीं समझता। मुझे अच्छी तरह विश्वास है कि जहाँ हवा भी नहीं घुस सकती वहाँ बीरेन्द्रसिह के ऐयार पहुचते हैं। (बगल से एक चीठी निकाल कर और दारोगा की तरफ बढ़ा कर ) लीजिए पदिए और सुन कर चौंक जाइए कि प्रात काल जब मै सो कर उठा तो इस पत्र को अपने गले के साथ ताबीज की तरह बँधा हुआ देखा। ओफ जिसके ऐसे ऐसे ऐयार नावेदार है उनके साथ उलझने की नीयत रखने वाला पागल या यमराज का मेहमान नहीं तो और क्या समझा जायगा । आधाजी ने डरत डरते वह पत्र इन्द्रदेव के हाथ से ले लिया और पढ़ा यह लिखा हुआ था - इन्द्रदेव- 'तुम यह मत समझो कि एसे गुप्त स्थान में रह कर हम लोगों की नजरों से भी छिपे हुए हो। नहीं नहीं ऐसा नहीं । हम लोग तुम्हें अच्छी तरह जानते है ओर हमें यह भी मालूम है कि तुम अच्छे ऐयार युद्धिमान और वीर पुरुष हो, परन्तु बुराई करना तो दूररहाहम लोग बिना कारण या बिना बुलाए किसी के सामने भी कभी नहीं जाते इसो से हमारा तुम्हारा सानना अभी तक नहीं हुआ ! तुम यह मत समझो कि तुम बिल्कुल बेकसूर हो कम्बख्त दारोगा को रोहतासगढ़ के कैदखाने से निकाल लाने का कसूर तुम्हारी गर्दन पर है मगर तुमने यह बडी बुद्धिमानी की कि हमारे किसी आदमी को दुख नहीं दिया और इसी से तुम अभी तक बचे हुए हो। हम तुम्हें मुबारकबाद देते है कि श्री तेजसिहजी न तुम्हारा कसूर जो हरामखोर और विश्वासघाती दारोगा को कैद से छुड़ाने के विषय में था माफ किया। इसका कारण यही था कि वह तुम्हारा गुरुभाई है अतएव उसकी कुछ न कुछ मदद करना तुम्हें उचित ही था चाहे वह निमकहराम तुम्हारा गुरुमाई कहलाने योग्य नहीं है। खैर तुमने जो कुछ किया अच्छा मगर इस समय तुम्हें चेताया जाता है कि आज से मायारानी दारोगा या और किसी भी हमारे दुश्मन का यदि तुम साथ दोगे पक्ष करोगे हमारी कैद से निकाल ले जाने का उद्योग करोगे या केवल राय देकर भी सहायता करोगे तो तुम्हारे लिए अच्छा न होगा। तुम चुनारगढ के तहखाने में अपने को हथकडी बेडी से जकडे हुए पाओगे बल्फि आश्चर्य नहीं कि इससे भी बढ़ कर तुम्हारी दुर्दशा की जाय। हॉ यदि तुम दुनिया में नकी ईमानदारी और योग्यता के साथ रहामे तो ईश्वर भी तुम्हारा भला करेगा। इन लोग ईमानदार नेक और याग्य पुरुष का साथ देने के लिए हर दम कमर कसे तैयार रहते हैं। इसके सिवाय एक बात और कहना है सो भी सुन लो। दो अदद तिलिस्मी खुजर जो हम लोगों को मिलकियत है मायारानी और नागर के कब्जे में चला गया है इस समय दारोगा को साथ लेकर मायारानी तुम्हार यहॉ मदद मागन के लिए आई है सो खैर उससे तो कुछ मत कहो उसके पास जो हमारा खजर है हम ले लेंग कोई चिन्ता नहीं मगर नागर के पास जो तिलिस्मी खजर था वह तुम्हारे एक ऐयार के पात्त है जो श्यामलाल बन कर नागर को गिरफ्तार करने गया था और उसे गिरफ्तार कर लाया है। वेशक वह खजर तुम्हारे पास दाखिल किया जायगा, मगर तुम्हें मुनासिब है कि उसको हमारे हवाले करो। क्ल ठीक पहर के समय हम खोह के मुहाने पर मिलने के लिए तैयार रहेंगे जो तुम्हारे इस मकान में आने के पहिले दर्वाजे के समान है। यदि उस समय तिलिस्मी खजर लिए तुम हमसन मिलोगे तो हम समझेंगे कि तुम मायारानी और दारोगा का साथ देने के लिए तैयार हो गए फिर जो कुछ होगा देखा जायगा। भिती १३ प्रथम ऋतु। तुमको होशियार करने वाला सवत ४१२ कु० एक बालक- मैरोसिह ऐयार पत्र पढ़ कर दारोगा ने इन्द्रदेव के हाथ में दे दिया। उस समय दारोगा का चेहरा डर चिन्ता और निराशा के कारण पीला पड़ गया था और भविष्य पर ध्यान देन ही से वह अधमूअर हो गया था। भैरोसिंह के पत्र में तिलिस्मी खजर का जिक्र था इसलिए दारोगा ने इन्ददेव की उंगलियों पर निगाह दौड़ा कर उसी समय दख लिया था कि तिलिस्मी खजर के जोड की अंगूठी उसकी उँगली में मौजूद है अतएव उसे निश्चय हो गया कि भैरोसिंह स कोई बात छिपी नहीं है इन्द्रदेव सहायता करते दिखाई नहीं देते और अपना भविष्य पुरा नजर आता है। दारोगा इसी विचार में सिर झुकाए हुए कुछ देर तक खड़ा रहा और इन्द्रदेव उसके चेहरे के उतार चढाव को गौर से देखता रहा। आखिर इन्ददेव ने कहा- मैं समझता हू कि इस चीठी के प्रत्येक शब्द पर आपने गौर किया होगा और मतलब पूरा पुरा समझ गये होंगे । दारोगा-जी हाँ। इन्ददेव-खैर तो अब मुझे इतना ही कहना है कि यदि इस समय आपके बदले में कोई दूसरा आदमी मेरे सामने होता तो मैं उसे तुरन्त ही निकलवा देता परन्तु आप मेरे गुरुमाई है इसलिए तीन दिन की मोहलत देता हूँ इस बीच में देवकीनन्दन खत्री समग्र ५१२