पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२१

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1 आप वहाँ रह कर अपन मल बुर का अच्छी तरह साथ लें और फिर जा कुछ करने का इरादा हा मुझसे कहें साथ ही इसके इन बात पर भी ध्यान रहे कि यदि आपकी नीयत अच्छी रही तो आपका कसूर क्षमा कराने के लिए में उद्योग कत्गा नहीं तो राजा करन्द्रसिह के विषय में मुझसे मदद पाने की आशा आप कदापि न रक्खे। दारोगा-क्या आप मेरातिह से मिल कर तिलिस्मी खजर उसके हवाले करेंगे ? इन्ददेव-क्या आपको इसमें शक है ? अफसोस । दारागा ने फिर कुछ न पूछा और चुपचाप यहाँ से उठ अपन कमरे में चला गया। मायारानी यह जानने के लिए कि इन्ददेव में और दारोगाम क्या बात हुई पहिले ही से दारोगा के कमरे में बैठी हुई थी। जब दारोगा लम्बी सॉस लेकर बैठ गया तो उसने पूछा- माया--काहिए क्या हुआ? जन्य नागर सता खूब बदला लिया गया । दारोगा-ठीक है भगार इसस यह न समझना चाहिए कि इन्द्रदेव हमारी मदद करगा। माया--(चौक कर ) तो क्या उसने इशारे में कुछ इन्कार किया। दारोगा-इशार में क्या पल्कि रगफ माफ जगब दे दिया। माया-तन तो वह बडा ही उम्भोक निकला अच्छा कहिय ता क्या क्या बात हुई? इददव और दारागा में जो कुछ बातें हुई थी इस समय उसन मायारानी से साफ कह दी और भैरोसिंह की चोटी का हाल भी सुना दिया। माया- ऊँणे साँस लेकर और यह सोच कर इन्द्रदेव की वार्ता में पड़ कर दारोगा को मेरा साय छोड न दफसात इन्ददव कुछ मान निकला। यह निरा डरपोक और कमहिम्मत है घर में मेटे यैठ साना पीना और सो रहना जानता है उद्योग की कदर कुछ भी नहीं जानता। ऐसा मनुष्य दुनिया में क्या खाक नाम और इज्जत पैदा कर सकता है । मगर हम लाग ऐस सुस्त और भूडी किस्त पर भरासा करके चुप 43 रहने वाल नहीं है। हम लोग उनमें से है जा गरीब और लाचार हाकर भी और चक्रपती हाने के लिए कृतकार्य न हाने पर भी उद्याग किये ही जात है और अन्त में सफल मनारथ हाफर ही पीछा छाडत है। जरा गौर ता कीजिए और साथिए तो सही कि मैं कौन थी और उद्यागने मुझे वहाँ पहुचा दिया? तो क्या एस समय में जब किसी कारण से दुश्मन हम पर बलवान हा गया उद्योग को तिलाजुलीद देठना उचित होगा ? नहीं कदापि नहीं। क्या हुआ यदि इन्ददेव डरपाक और कमहिम्मत निकला में तो हिम्मत हारने वाली नहीं हू और न आप ऐसे हैं। देखिए तो नहीं में क्या हिम्मत करतो हू और दुश्मनों का पौसा नाच नचाती हू आप भरो और अपनी हिम्मत पर भरोसा कर और इन्ददेव को आशा छोड मौका दख कर चुपचाप यहाँ से निकल चलें। अफसाम! दुनिया में अच्छी नसीहत का असर बहुत कन होता है और दुर सोहबत की बुरी शिक्षा शीघ्र अपना असर करके मनुष्य को जुराइक चेहल में फसा कर सत्यानाश कर डालती है। मगर यह बात उन लोगों क लिए नहीं है जिनके दिमाग में सोचने समझने और गौर करने की ताकत है। सन्तति के इस बयान में दोनों रग के पात्र मौजूद है अतएव पाठका का आश्चर्य न करना चाहिए। दूसरे दिन इन्द्रदेव ने अपने दाना नहम्मनों दारागा और मायारानी को अपने घर में न पाया और पता लगाने से मालूम हुआ कि दाना रात हा का किसी समय मौका पाकर वहाँ से निकल भागे। दसवां बयान दापहर की कडाफ की धूप से व्याकुल होकर कुछ आराम पाने की इच्छा स दो आदमी एक नहर के किनार जिसके दोनों तरफ घने और गुंजान जगली पड़ों न छाया कर रक्खा है चैठ कर आपस में धीरे धीरे कुछ बाते कर रहे है। इनमें से एक ता बुडढा नकटा दारोगा है और दूसरी किस्मत स मुकाबिला करने वाली कम्बख्त मायारानी जो इस अवस्था का पहुच कर भी हिम्मत हारन की इच्छा नहीं करती। ये दानों इन्द्रदेव के मकान से चुपयाप भाग निकले है और बडे बडे मनसूब गाँठ रहे हैं। इमक साथ ही वे इन्ददेव का भी बिगाडन की तीय सोच रहा है यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। युरे मनुष्य जब किसी भले अदनी से मदद मांगने जाते है और बचारा युरे कामों का नतीजा सोच कर बुराई में उनका साथ देने से इन्कार करता है ता दे दुष्ट उसक भी दुश्मन हो जाते है। माया-क्या हर्ज है? जरा मझ बन्दावस्त कर लन दीजिए फिर नै इन्द्रदेव से समझे बिना न रहूंगी। दारोगा-बेशक मुझे भी इन्द्रदेव पर बडा ही काध है नालायक ने ऐस नाजुक समय में साथ दने से इनकार किया । चन्द्रकान्ती सन्नति भाग १० ५१३