पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२२

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खेर दखा जायगा इस समय ता इस बात पर विचार करना चाहिए कि पीरन्द्रसिह के दुश्मन कोन कार है और उन लागा का किस तरह अपना साथी बनाना चाहिए क्योंकि हम लोगों का पहला काम यही है कि अपनी मण्डली को पावें। माया-दशक ऐसा ही है अच्छा आप उन लोगा का नाम तो जरा ल जाये जो हम लोगा का साथ दे सकते है और यह भी कह जाय कि इस समय दे लोग कहा है। दारोगा--(साचता हुआ ) महाराज शिवदत्त नीमसेन और उनके साथी एक माधवी दा दिग्विजयसिंह का लडका कल्याणसिह तीन शेरअलीया जिसकी लडकी का वीरन्दसिह ने गैद कर सका हे चार और उनके पक्षपाती लाग, दिनका कुछ हिसाब नहीं। माया-पेशक इन लोगों का सम्स हा जाने सेम लोग बीरदसिह और उनके पक्षपातियों को तहस नहस कर सकते है और ये लाग खुशी से हमारा साथ देंग भी मगर अफसोस यह है कि शेरअलीखों को छापकर बाकी सभी लाग कैद में हैं। हो यह तो कहिए कि महाराज शिवदत्त को किसने गिरफ्तार किया था और अब वह यहा? दागेगा-मुन्न ठीक ठीक पता लग धुका है कि भूतनाथ ने लहा पा पार शिक्दत कासा दिया और अब शिवदा कमलिनीकताब बाल मकान में कैद है माधा और मनासा भी उसी मकान मेकर है। माया उस मकान में से उन लागा का छुड़ाना जरा मुश्किल है या भी एम समय में जबकि हमार पास फाई एयार नहीं। दारागा-(सकायक गाइ बात याद आन और कर ) हा मे यह पूछाता भूल हो गया कि तुम्हार दाना एमार पितरोमिह और हरनामसिह कहा है ? मालूम हरता है कि तुम्हारी इरा माल लागा का मालूम नहीं है। मगर नरो एसा नहीं हो सका जमानिया म इतना फसाद मच जाना और तुम्हारा निकल भागना कोई साधारण नहीं है जिराकी सर तुम्हार ऐयारों को न हाती शायद इसका 47 आर दर हो । अब मायारानी इस सोच म पडई फिदारोगाकी याताका क्या जवाब दिया जाय उसन और सब हाल तो दारोगा सकह दिया या मार उन दोनों एयारों की जान लेने का हाल अब तक ही कहा या उस सोचा कि यदि दरामा का यह मालूम हो जायगा किमर दोनो एयारो का मार डाला तो उसे बड़ा ही रज होगा क्योंकि ऐयारो का मारना बहुत जुरा होता है तिस पर खास जपने ण्यारों की जालना और सभी बिना कसूर लेकिन फिर क्या कहा जाय या उनक मारने का हाल ठीक ठीक कह कर कुछ वहाना कर देग उचित हा? नहीं बहाना करने और छिपा जाने से काम न चलन अन्त में यह बात प्रकट हो ही जागी क्याफे लाला को य० गत मालूम हो चुकी है और कमा लीला मी इस रोमय भरा साय छोड कर अलग गई है इसलिये अरचर्य नहीं कि वह नडा फाडद और सभी के सापाबाजी को भी उन बातों का पता लग जाय। मगर नहीं उस समय जो होगा दया जाय अभी ताछिपाना ही उचित है। मायारानी सिर झुकाय हुए इन बातों का साच रही थी और दारोग आश्चर्य म था कि मायारा ने मेरी यात का जवाब क्यों नहीं दिया या क्या सोच रहा है । आखिर दारोगा चुपचाप रह न सका और उसन पुन मायारानी ने कहा- दारोगा-तुम क्या सोच रही हा मरी बात का जवाब क्यों नहीं देती ? माया-मै यही माघ रही हूँ कि आपकी बात का क्या जवाब दू जव कि में रचय रहीं जानती कि मर स्यारों नए- समर में भरा सास क्यों छोड दिया और कहाँ चले गये । दारोगा-अरस्तु मालूम हुआ कि उन दानों न स्वयम तुम्हारा साथ छाड दिया । माया-वशक एसा ही कहना चाहिए। अच्छा अब विशेष समय नष्ट न करना चाहिये। अब आप जल्दी य, माथिए कि हम कहाँ जाकर ठहरें और क्या कर । दारोगा--अब जहाँ तक मैं समझता हू यही उचित जान पड़ता है कि सरअलीखों के पास चल आरमदद लें। यह ला सव काई जानते है कि शर गलीखों बला जबदस्त और लडाका ईमगर उसके पास दौलत नहीं है। माया-ठीक हे मगर जब मै दोलत से उसका घर भर दूंगीता यह बहुत ही युश होगा और एक जबदस्त पार तयार करक हमारा साथ देगा। मैं आपसे कह चुकी हू कि इस अवस्था में नी दौलत की मुझ कमी नहीं है। दारोगा-हाँ मुझ याद हे तुमन शिलगढी क बार में कहा था अच्छा ता अब विलम्ब करने की आआश्यकता ही काम है? (चौक कर) है यह क्या। हाथ का इशारा पाके) वह कोन है जो सामन की झार्ड में से निकल कर इसी तरफ आ रहा है ? शिवदत्त की तरह मालूम पडना है 11 कुछ रुक कर ) बेशक शिवदन ही ता है । हादसोल यर अकाला नहीं है उसक पौछ उसी झाडी में से और भी कई आदमी निकाल रह है। माधाराणी ने भी चौक उस तरफ देखा गैर हसती हुई उन यमी हुई। दसवा भाग समाप्त ।। -- देवकीनन्दन खत्री समग्र २१