पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२३

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चन्द्रकान्ता सन्तति ग्यारहवा भाग पहिला बयान अब हम अपने पाटका का पुन कमलिनी के तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते है जहा बेचारी तास का बदहवास और घबराई हुई छाड़ अपये है। हम उस बयान में लिख चुक है कि छत्तक ऊपर जा पुतली थी उसे तजी के साथ नाचत हुए दख कर तारा घवरा गई और बदहवास होकर कमलिनी का याद रन लगी। इसका सपथ यह था कि यद्यपि वेचारी तारा उस तिलिस्मी मकान का पूरा पूरा हाल नहीं जानती थी मगर फिर भी बहुत से उसमालूम थे और कमलिनी से सुन चुकी थी कि जब इस कान पर काई आफत पानी हागी तय वह पुतली (जिसके नाचन का हाल लिखा जा चुका है) तजी के साथ घूमन लगगी उस समय समझाना चाहिए कि हम मकान में रहने वालों की कुशल नहीं है। यही सवाल था कि नारस बदहवास होकर इधर उधर दखने लगी और उसकी अवस्था देख कर मिसोरी और कामिनी का भी निश्चय हो गया कि वदाकरमतो ने सभी तक हम लोगों का पीछा नहीं छोडा और अब यहा भी काई नया गुल खिला चाहता है। जिस समय तारा घबरा करइधर उधर देख रही थी उसकी निगाह यकायक पूरब का तरफ जा पी जिधर दूर तक साफ भेदान था। तारा ने देखा कि लाभा अधकाम की दर पर संकडा आदमी दिखाई दे रहे है और वे लाग तेजी के साथ तारा के इसी मकान की ओर बढ़ चले आ रहे हैं। इसी के साथ ही साथ तारा की तेज निगाह ने यह भी बता दिया कि व लाग जिनकी गिनती चार सा से कम न होगी या ता फौजी सिपाही है या लड़ाई के फन ने हाशियार लुटेरों का कोई गिराह है जो दुश्मनी के साथ थाडी ही दर में इस मकान का घेर कर उपद्रव मचाना चाहता है। इसके बाद लारा की निगाह तालाब पर पली जिस पर उस पूना पूरा भरोगा था और जानती थी कि इस जल का तैर कर कोई भी इस मकान मे मुम आन का दावा नहीं कर सकता मगर अपसोस इस सनय तालाब की अवस्था भी बदली हुई थी अर्थात उसमें का जल तेजी के साथ काम हारहा था और लाहे की जालिया जाल या फन्द जा जल के अदर छिपे हुए थे अब अल कम टात जाने के कारण धीरे धीरे उसके ऊपर निकलत चले आ रह थाइन्ही जालिया आर फदों क कारण कोइ आदमी उस तालार में धुर कर अपना जान नही बचा नकता था और इनका खुलासा हाल हम पहिले लिख चुके हैं। तारा जय तालाब का जल घटत और जालों को जल के बाहर निकलतदेखातो उसकी आशा भी जाती रही मगर उसने अपने दिल का सम्हाल कर इस आन वाली आफत स किशोरी और कामिनी को होशियार कर देना उचित जाना। उसन किशारी और कामिनी की तरफ देख कर कहा- बहिन अब मुझ एक आफ्त का हाल तो मालूम हा गया जा हम लागों पर आना चाहती है। (उन फोजी आदमियों की तरफ इशारा करके जो दूर स इसी तरफ आते हुए दिखाई दे रह 4) व लोग हमारे दुश्मन जान पड़ते है जो शीघ ही यहाँ आकर हम लागों को गिरफ्तार कर लेंगे। मुझ पूरा पूरा भरोसा या कि इस तालाप मे तैर कर या धरनाई अथवा डोंगी के सहारे कोई इस मकान तक नहीं आ सकता क्योंकि जल के अन्दर लोहे को नाल इस टग से पिछे हुए है कि इसमें तैररावाली चीज लिना फसे और उलझे नहीं रह सकती मगर वह यात भी जाती रही। दखा तालाब का जल किलनी तज' के साथ घट रहा है और जब सब जल निकल जायगा तो इस वीच वाले जाल को तोड या निगाड कर यहाँ तक चले आन में कुछ भी कठिनता न रहेगी। मालूम होता है कि दुश्मा न इसका बन्दोवस्त पहिले ही से कर रखा था अथान सुरग खोद गर जल निकालने और तालाब सुखाने का बन्दोवस्त किया गया है और नि सन्दह वे अपा कारन कृतकार्य हुए। (कुछ सोच कर )बड़ी कठिनाई हुई। (आममान की तरफ देउ मा जगदम्य सिवाय तेरे हम अबलाओं की रक्षा करन वाला कोई भी नहीं और तेरी शरण आए हुए को दुख दंने वाला भी जगत में कोई इतना दुखरोग कर आज तक कपल र ही भरासे जी रही हू और पान इस बात की प्रसन्नता हु कि आज तक तेरध्यान धर के जान बचाय रहना वृथा । हुआ नो अव यह पान? यह क्या ? क्यों ? किसक साय ? क्या उरक साथ जा तुम पर राता रक्खे । नहीं नहीं इसमें भी अश्य तेरी कुछ माया है" चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५१५