पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५२६

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GY dy कामिनी-मुझ एक बात का खतरा और भी है। तारा-वह क्या ? कामिनी-4 यह है कि तालाब सूरा जाने पर ताज्जुब नहीं कि यहा तक पहुंचना लिए इस मकान की सुरम् खादन और दीवार तोडन की कोशिश दुरमन लाग कर। तारा-एसा तो हा ही नहीं सकता इस मकान की दीवार विसी जगह से जिसी तरा ट नही सकती। इसी बीच में तालाव को बाहर स विशेष कालाहल की आवान आन लगी जिरा सुन तारा किसारी और कामिनी मकान के ऊपर चली गई और छिप कर दुश्मनों का हाल दराने लगी। - लोग इस मकान में पहुधना दिन जान कर सारगुल मचा रह थ और कर आदमी हाथ में तीर कमान लिए इस बार भी तैयार दियाइदर था कि कोई आदमी इस मकान केवाहर गिफल तो उस पर तार चलाय। किशोरी घमौरस दुश्मनी की तरफ देखकर तारा स ह बहिन तारा इन दुश्मना म बहुत से लोग प है जिनका यी परिसती हूस्योंकि जाम अपने पापक चरीता यलो मर पापक कर। तारा-ठीक है में भी इन लागा का पहियानी है, यरा। 4 लाग तुला पाप गाकर । र उन्हीं का छुडान के लिए यहा आय है। किशोरी-(चौक कर) तो क्या मेरे पिता इसी मकान में कैद है। तारा-हा व मक्कैद है। निसारी का जब यह मालू हुआ कि उसका पाप न करता उस दिल पर एक प्रकार की चाट तो बेटी राय जन अपर वापरलात तकलीफे उटा, कोरिकी गो कहना चाहिए कि अभी तक अपने बाप की बदौलत दुयना रही है और २ दर मारी मार कर मार रिमा निशा का दिल पार, सक और शीच ही पसीज जान पाला था। वह अपयांप का हाल सुनत पद के लिए 4 सब बाभूल गई जिनकी बदौलत आज तक दुदश की छतरी उसका सर पर स नही इटी यी। इस रायसी पल भर क लिए उtी आय सामान पर पहर वाला दृश्य नी घूम गयाजहाँ उसका सग माई सनर सउसकी लोकलिय वीरता प्रकट की थी मगर रामशिला धान साधुके पहुए जान सकुछ न कर सका था। वह यह भी जानती थी कि उसका भाई नामसन पिता का झापा जर मरी जान लन को लिए आया था और अब भी अगर पाक पर चलता भरी जान लन में विलम्ब करे मार फिर भी फामले द्वन्दया विशारोप दिल में पाप के दयन की इच्छा पर हुई और उसन डबडयाई हुई आया न तारा की तरफ दखकर गदगद दर से पा किशोरी-वडिन तुम्ह आश्चय जगा यदि में पिग का दखन की इच्छा प्रकट करु नगर लाचार टूजी नहीं मानतः । तारा-हॉ यदि कोई दूससे कसूर लडकी एम पिता से मिलन की इच्छा प्रकट करती ता अवश्य आश्चर्य को जगह यो मगर तर लिए काई आश्चर्य की बात नहीं है क्योकि में तरे स्वभाव को अच्छी तरह जानती हू परन्तु बहिन किशोरी मुझ निरस्य हमि पूजयन पिना का दख कर प्रसन नहागी यल्कि तुजे दुख होगा वह तुझे दयते ही येवस रहन पर नी हजार गालिया दंगा और कध्या ही खा जाने के लिए तयार होनाबगा। किशोरी-तुम्हारा कहना ठीक है परन्तु में माता पिता की गाली को आशीर्वाद समझती हू, यदि वे कुछ कहेंग तो कोई हर्ज नहीं आर मैं ज्याद दर तक उनके पास उहरुमीनी नहीं कक्ल एक नजर देख कर पिछल पर लाट आऊण। मुझ विश्वास है कि दुश्मा लोग जो तालाय का यार यड है इस समय मेरा कुछ बिगाड नहीं सकत और यदि तुम्हारी कृपा हागी तो में ऐस समय में भी फिक्री के साथ अपने पिता का एक नजर दख सकूगी। तारा-खेर जब एसा कहती हो ता ल्गचार में तुम्ह कैदान में ल चलने के लिए तैयार है, चल कर अपने पिता को दयलो। कामिनी-क्या में भी तुम लागो के मा चल सकती है। तारा-हा हो कोई हर्ज नहीं तू भी पल कर अपनी रानी माधवी को एक नजर देशला लोडिया को बुला कर हाज के विषय मे तया और भी किसी विषय में समझा युझ कर किशोरो और कामिनी कासाथ लिए हुए तारा वहाँ से रवाना हुई और एक काठरी में से लालटेन तथा सजर दूसरी कोठरी में मई जिसमे किसी तरह चन्दकान्ता सन्तात दूसरे भाग के आखिरी बयान में इसका हाल लिखा गया है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ५१८