पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि किशोरी-जब ऐसा ही है और तुम प्राण दन के लिए मुस्तैद होकर जातीही हा सा हम दानों को क्यों छोड जाती हो? क्या इसलिए कि तुम्हारे बाद हम लागा की दुर्दशा और येईज्जतोहा 1 इस विषय में किशारी कामिनी और तारा में दर तक हुज्जत और बहस हाती रही अन्त में यही निश्चय हुआ कि सूरत बदलन और कवच पहिरन के याद हाथ में तिलिस्मी गा लेकर तारा सुरग की रा से जाय और दुरमनों का मुकाबला कर किटारी आर कामिनी दोनो में स या दाना सारा क सायनुरग में जाय और जब तारा सुरग के बाहर हा जाय तो हर एक दरवाजे को बन्द करती हुई लौट आवें। इसके बाद दुश्मनों के भाग जाने पर मकान में तारा का लौट आना काई मुश्किल न होगा। यह बात त पाई गई और तीनों नौजवान औरत जिन्हें आपस म यहिनो सभी चढ कर मुहल्यत हा गई यो छत के नीच उत्तर आई और एक कोठरी में चली गई। तारान एयारी के मसाल से अबका रगा और अपनी ऐसी भयानक सूरत बनाई कि दखावाला कैराही जीवत का क्यों न हो मगर एक दी अवश्य ही डर जाय। इसके बाद कवच पहिरा और तिलिस्मी नेजा हाथ में लेकर सुरग में रवाना हुई हाथ में एक लालटन लिए किसोरी और कामिनी भी साथ हुई। पहले तहखान वाली काठरी का दाँजा खोला गया फिर सुरग का दरवाजा खालकर तीनों वहिने सुरग में दाखिल हा गई ये तीनों बीस पचीस कदम स ज्यादा न गई होगी कि पीछ की तरफ से यकायक दरवाजा बन्द कर लन की आवाज आई जिस सुनते ही ती रो चौक पड़ी और यड़ी हा गइ। तारा न किशारी और कामिनी की तरफ देखकर कहा- है यह क्या बाल है ? मालूम होता है कि हमारा दुश्मन हमारे घर ही में है। यह कहती हुई किशारी और कामिनी के साथ तारा पीछ की तरफ लौटी और जच सुरग दर्वाज के पास आता दर्याजा य द पाया। सटखटाया धक्का दिया नार किया मगर दवाजा गुला। इस समय जमत अवनाओं के दिल की क्या हालत हुई हगी सा हमार बुद्धिमान पाठक स्थय सोच सकते है। कामिनी न धयर। कर तारा से तुम्हारा कह 71 ठीक है बेशक भारा दुश्मन हमार घर ही में है। किशोरी-माह कारभारा नौकर हमारा दुश्मन हा या दुरमन की झाइण्यार हमार नौकर की सूरत में यहाँ आकर टिका हार तारा-अब शक दूर हो गया और नेि'चय हो गया कि कैदियों को इस कन्धरस्त न निकाल दिया है। मै ताज्जुब मै थीं कि यह दर्याजा जो दूसरी तरफ से किसी तरह नहीं गुल राकता क्योक र खुला और कादी लाग क्योंकर निकल गेय मगर अवजा कुछ असल बात भी जाहिर हो गई। अब उस शैतान ने (चार वह काई भी 1} इसलिए यह दर्वाजा बन्द कर दिया कि हम लोग पुन लौट कर मर मे न आ पायें। अफसात याही धोया हुआ कि इतन पर भी हम लोग उसस पैफिक रहे और इस समय भी छिप कर हम लागों के साथ ही साथ कराने में जतरा मगर कुछ मालूम नहुआ (कुछ रुककर) हमारे नौकरों और लौंडियों को क्या मालूम हो सकता है कि इस समय हम लोगों के साथ किस दुष्ट ने कैसा बर्ताव किया। कामिनी-क्या इस तरफ से इस दवा को खोलन की काई तय नहीं है ? तारा-कोई नही। कामिनी-और अगर दुश्मना • सुरग में मुहान का दर्वाजा बाहर स बन्द कर दिया हा तो क्या होगा? तारा-उस दवाज के दूसरी तरफ काई एसी सीज नही है जो दवाजा बन्द करन के काम में आवे मगर फिर नी दुश्मन एशियार हा तार तरह से वह मुहाना बन्द कर सकता है। उस दर्याजे के ऊपर मिट्टी पत्थर या चूने का ढर लगा सकता है ईट पत्थर की जुलाई कर सकता है या उर सोह भर का ईट पत्थर से बन्द कर सकता है। किशोरी-हाय अब हम लोग बर्गत मारे गये । ताज्जुब नहीं कि इस बात का बन्दोवस्त पहिले से ही कर लिया गया हो। कामिनी-यस अब हम लागों को यहाजरा भी न अटक कर सुरग के बाहर निकाल चलना चाहिए शायद उधर का रास्ता अभी बन्द न हआ हो। तारा फिनाग और कामिनीता के साथ सुरंग या दृसर मुहान की तरफ रवाना हुई और थाडी ही देर में वहा जा पहुचर्ची इस सुरंग में मकान की तरफ जिस तर की साठिया बनी हुई थी उसी तरह की सीढिया सुरगकेदूसरातरफ भी थी। जय तारा न दर्वाज की कुण्डी साली और उस धपका दकर यालना चाहा तो दवाजा न युला उस समय तारा हाय करके बैठ गई और बोली- यहिन बस जो कुछ हम लोगों को शक था वही हुआ। इस समय दुश्मनों की वन पड़ी और हम लोग मोत मारे गये। यह दर्वाजा अगर भीतर की तरफ हटता होता तो खुल जाता और हमें मालून हो जाता कि आगे रास्ता किस चीज से बन्द किया गया है ईट पत्थर और चूने से या खाली मिट्टी से और हम लाग इस तिलिस्मी नेजे से उसमें रास्ता बनाकर निकल जाने का उद्योग करते क्योंकि यह नेजा हर एक चीज में घुस जाने की ताकत रखता है मगर अफसोस तो यह है कि यह लोई का मजबूत दर्वाजा देवकीनन्दन खत्री समग्र ५२२