पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३१

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lort - खुलने के समय बाहर बीताफ खुलता है। यह भी कारीगर की भूल है। मूलों का मजा समय पडन पर ही मालूम होता है अब मुसा मालूम हुआ कि मकान बनान वाले का दवाजे की अवस्था पर विशष ध्यान देना चाहिय कोई दर्वाजा ऐसा न बनाना बहिये जो खुलते समय बाहर की तरफ खुलता हो जिस बाहर वाला मामूली तौर पर मिट्टी का ढेर लगा कर भी वन्द कर सकता है। हाय अब मे क्या करू? मुझे अपने मरने का ता कुछ भी रज नहीं है अगर रज है तो केवल इतना ही कि तुम दाना का कमलिनी न हिफाजत स रखने के लिए मरे पास भेजा और मेरी बदौलत तुम्हें यह दिन देखना नसीब हुआ मामूली तौर पर जैसा कि अक्सर मोका पड़ने पर लोग कह दिया करते हैं इस समय किशोरी और कामिनी यह चात तारा को कह सकती थीं कि यहिन हम लोग तो तुम्हें मना करते थे कि सुरग की राह से बाहर मत जाओ मगर तुमने न माना अगर मान जाती तो यह दुख भागना क्यों नसीब होता? मगर नहीं बधारी किशारी ओर कामिनी बडी ही नकदिल थीं वे जानती थी कि जो हाना था सो तो हो चुका अब ऐसी यातें कह कर तारा का दिल दुखाना नादानी है और इससे कोई फायदा नहीं तारा ने जो कुछ किया उसे मला हा समझ के किया मगर जय इश्वर ही की ऐसी मर्जी हो तो क्या किया जाय। इस सुरग के दोनों तरफ की दीवारे बहुत ही मजबूत थी और उस पर फौलादी माटी चादर चढी हुई थी। यद्यपि तिलिस्मी नेजा उस फौलादी माटी चादर में भी घुस सक्ता था मगर इसमें कोई फायदा न था तिलिस्मी नेजा एसे स्थान से सुरग खोद कर रास्ता बनान का काम नहीं दे सकता था तिस पर भी तारा ने उद्योग में कोई बात उठा न रक्खी मगर नतीजा कुछ भी न निकला! तीसरा बयान - इस तालाब के बीच वाले तिलिस्मी मकान में कमलिनी दस लोडियों के साथ रहती थी। नौकर और सिपाही भी उसके साथ बहुत थे मगर उनके रहने के लिए स्थान इस मकान में नहीं था वे लोग काम काज करते थे और समय पड़ने पर जान देन के लिए इकट्ठे हो जाते थे मगर कमलिनी और तारा को छोड के कोई यह भी नहीं जानता था कि वे लोग कहा रहते हैं और क्या करते है। उन सिपाहियों में से कई तो मायारानी के कैदी हो गये थे और जो दस बारह बचे हुए थे सो इधर उधर घूम फिर कर कमलिनी का काम कर रहे थे। उन्हीं बचे हुए सिपाहियों में से चार पाच सिपाही इस समय मकान में मौजूद थे जो किसी काम के सम्बन्ध में तारा के पास आये थे और दुश्मनों का हगामा देख कर बाहर जा न सके थे। कमलिनी की लौडिया जितनी थी व सब जमानिया से कमलिनी के साथ उस समय आई थी जब मायारानी से लड़कर कमलिनी अलग हो गई थी। इन लौडियों में से एक लौंडी जिसका नाम भगवानी था बड़ी ही शैतान और दिल की खाटी थी। यद्यपि वह जाहिर में अपने को बहुत ही बनाय हुए रहती थी ओर बात बात में खैरखाही जताती थी मगर वास्तव में वह ऐसी काली नागिन थी जिसके काटे का काइमन्त्र ही न था। उसे रुपय की लालच हद से ज्यादे थी मगर इतने दाष रहन पर भी वह अपनी चालाकी स अपन मालिक तथा तारा को खुश रखती थी और उन दोनों के आगे अपने अवगुण जाहिर नहीं होने देती थी। यही लोडी प्राय कैदियों को खाना पानी भी पहुचाया करती थी। कमलिनी के कैदखाने को पहिले माधवी और शिवदत्त ने आजाद किया था और उसके बाद मनोरमा इस कैदखाने में आई थी। मायारानी की सखी होने के कारण मनोरमा भगवानी को बखूबी जानती थी और इसी तरह भगवानी भी उस अच्छी तरह पहिचानती थी। खाना पानी पहुचान के लिये जब भगवानी कैदखाने में जाती तो मनोरमा उसे अपनी लच्छेदार वातों में घड़ियों उलझा कर भविष्य के लिए सब्जबाग दिखाती और तरह तरह की उम्मीदों से ललचायाकरती यहा तक कि उस तीन लाख रुपये की लालच दिखा कर उसन अपनी माधवी और शिवदत्त को मदद पर राजी कर लिया ! माधवी देवा इलाज की बदौलत वहा आकर तन्दुरुस्त हो गई थी। भगवानी इस बात पर राजी हो गई कि मोका मिलने पर कैदियों की मदद करे और जिस तरह हा कैदियों को तहखाने के बाहर निकाल दे। भगवानी ने माधवी शिवदत्त और मनोरमा से कहा कि तुम लोगों को छुड़ाने के लिए मुझे बहुत कुछ उद्योग करना पड़ेगा और तुम्हार नौकरों तथा सिपाहियों से मिलने और उनसे कुछ काम लेने को आवश्यकता पडेगी इसलिए उचित हागा कि तुम लोग मुझ एक परवाना लिख दो जिसमें तुम लोगों के आदमी मुझे तुम्हारा मददगार समझें और जो कुछ मैं कहू करें और खर्च के लिए आवश्यकतानुसार मुझे दिया भी करें। आखिर तीनों रूदियों ने मगवानी की बात मजूर कर ली। भगवानी मौका पा कर कलम दावात और कागज छिपा कर तहखाने में ले गई और तीनों कैदियों से अपने मतलब की बातें लियवा ली। कमलिनी के जान के बाद केवल तारा की मौजूदगी में भगवानी को अपना काम करने का बहुत अच्छा मौका मिला। उसने गुप्त रीति से कई नौकर रक्खे और उनक जरिय म माधवी मनोरमा और शिवदत्त के आदमियों को जो छितिर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५२३