पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३२

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lari चितिर हो गये थे इकट्ठा कराया तथा इस बात से होशियार कर दिया कि तुम्हारे मालिक लोग यहा कैद है। धीरे धीर बन्दोबस्त करके भगवानी ने सामान दुरुस्त कर लिया और एक दिन सुरग,की राह से तीनों कैदियों को निकाल बाहर किया। आज जो इतने दुश्मन इस मकान को घेरे हुए है या जो कुछ वे लोग कर रहे है सब भगवानी ही की करामात है। इस समय भगवानी ही ने किशोरी कामिनी और तारा को सुरग में बन्द कर दिया है। वह चाहती है कि दुश्मन लोग इस मकान में घुस आवें और मनमानी चीजें लूट ले जाय मगर कीमती चीजें जवाहिर इत्यादि मै पहिले ही से बटोर कर अलग रख दू और जब दुश्मन लोग यहा घुस आयें तो उन्हें लेकर चल दू। शिवदत्त माधवी और मनोरमा के हाथ का लिखा हुआ परवाना मोजूद ही है अस्तु कमलिनी के दुश्मनों में मुझे कोई भी नहीं रोक सकता। यह भगवानी का थोडा सा हाल इस जगह हमने इसलिए लिख दिया कि चीती बहुत सी बातें समझने में हमारे पाठकों को कठिनाई न पडा किशारी कामिनी और तारा का सुरग में बन्द कर के जय भगवानी कैदखाने के बाहर निकली तो कोठरी में ताला लगा दिया और ताली अपने कब्जे में रखी इसके बाद हाथ में लालटेन लेकर मकान की छत पर चढ़ गई और लालटेन को घुमा फिरा कर दुश्मनों को इशारे ही इशारे में कुछ कहा। मालूम होता है कि पहिले ही से इशारे की बातचीत पाझी हो चुकी थी क्योंकि लालटेन का इशारा पाते ही दुश्मनों ने खुश होकर अपना काम तेजी से करना शुरू किया अर्थात. तालाब पाटने में बहुत फुर्ती दिखाने लगे । एक दफे तो भगवानी के दिल में यह यात पैदा हुई कि चारों पुतलियों को सडी करके घूमत हुए चारो चक्रों को रोक दे जिसमें दुश्मन लोग यहा शीघ्र ही आ जाय मगर तुरन्त ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसे यह बात सूझ गई कि यदि मैं घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दूगी तो कमलिनी के नौकरों को मुझ पर शक हो जायगा और फिर घना बनाया मामला बिगड जायगा। अव कम्बखन भगनिया ( भगवानी ) इस फिक्र में लगी कि दुश्मनों के घर में आन के पहिले ही यहा से अच्छी अच्छी कीमती चीजे बटोर ली जाय और जब दुश्मन इस मकान में घुस आवे तो ले लपेट के चलती बनूं क्योंकि शिवदत्त माधी और मनोरमा की चीठियो की बदौलत जो मेरे पास है मुझे कोई भी न रोकेगा। कमलिनी की लौडियों और नौकरों को इस बात का गुमान भी न था कि नमकहराम भगवानी यहा बालों को चौपट कर रही है या उसने किशोरी कामिनी और तारा को सुरग में बरकर दिया है। वे लोग यही जानते थे कि किशोरी और कामिनी को किसी खास काम के लिए तारा अपने साथ लेती गई है। रात बीत गई दूसरा दिन समाप्त हा गया बल्कि दूसरे दिन की रात भी गुजर गई और तीसरा दिन आ पहुंचा। आज दुश्मनों का मनारथ पूरा हुआ अर्थात उन्हेंने तालाब को दो तरफ से बखूबी भर दिया और उस मकान में पहुचें। लौडियों और नौकरों को इतनी हिम्मत कहा कि सैकडों दुश्मनों का मुकाबला करते। व लोग चुपचाप अलग हो गये और अपनी तथा अपने मालिक की बदकिस्मती पर विचार करते रहे जिस पर भी कई बेचारे दुश्मनों के हाथों से मारे गये। दुश्मनों ने मनमानी लूट मचाई और जो जिसने पाया अपने याप दादे का माल समझ हथिया लिया। कमकीमत चीज या ऐसी चीजें जो वे लोग अपने साथ ले जाना पसन्द नहीं करते थे तोड फोड बिगाड या जला कर सत्यानाश कर दी गई और घटे ही भर में ऐसी सफाई कर दी गई मानों उस मकान में कोई बसता ही न था या कोई चीज वहा थी ही नहीं। इस काम के बाद किशोरी कामिनी और तारा की खोज शुरू हुई क्योंकि दुष्टों ने जब उस तीनों को वहा न पाया तो उन्हें आश्चर्य हुआ और वे इस फिक्र में हुए कि भगवानी से उन तीनों का हाल पूछना चाहिये मगर भगवानी वहा कहा वह तो अपना काम करके निकल भागी और ऐसा गायव हुई कि किसी को कुछ गुमान तक न हुआ। हाय बेचारी किशोरी कामिनी और तारा का हाल किसी का भी मालूम नहीं कोई भी नहीं जानता कि वे बेचारिया कहा और किस आफत में पड़ी है या कई दिनों तक दाना पानी न मिलने के कारण जीती भी हैं या मर गई। उनकी लौडियों और नौकरों को भी इसका पता नहीं इसी से थे लोग अपनी जान लेकर जिस तरफ भाग सके भाग गये और इस तिलिस्मी मकान पर दुश्मनों को पूरा पूरा कब्जा करने दिया क्योंकि इतने आदमियों का मुकाबला करके जान देना दूसरे उद्योग का भी रास्ता रोकना था। चौथा बयान पाठक महाशय अब आप यह जानना चाहते होंगे कि हरामजादी भगवनिया के मेल से जो दुश्मन लोग इस मकान पर चढ आये वे लोग शिवदत्त माधवी और मनोरमा को छुडाने की नियत से आये थे या इन तीनों के छूट कर निकल जाने का हाल उन्हें मालूम हो चुका था और वे लोग इस समय केवल किशोरी कामिनी और तारा को गिरफ्तार करने आये थे? नहीं इस समय दुश्मन यह नहीं जानते थे कि इस मकान में कोई सुरग है और भगवानी की मदद से उसी सुरग की राह राजा शिवदत्त वगैरह बाहर हो गये। भगवानी ने जब उन लोगों को खबर पहुँचाई थी तो यही कहा था कि तुम्हारा 'देवकीनन्दन खत्री समग्र ५२४