पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३३

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art मालिक इस मकान में कैद है तुम जिस तरह बने उसे छुड़ा लो और इसके बाद जो उन लागों ने किया वह बहुत बुद्धिमानी से किया। तालान सुखाने के लिए मुरग खोदन में उन्हें बहुत दिन मेहनत करनी पडी इस बीच में भगवानी भी उन लोगों से मिलती रहो मगर उत्तन यह नहीं कहा कि शिवदत को छुड़ाने के नी उद्योग कर रही हू, यदि मौका मिलार्ता सुरग की राह निकाल दगी क्योंकि भगवानी को यह आशा नहीं थी कि मैं स्वय उद्योग करके कैदियों को बाहर कर सकूगी उसे कैदियों का छुड़ाने का मौका उस दिन दापहर के लगभग मिला था जिस दिन सध्या के समय बलवाइयों ने आकर तालाब को घेर लिया था और उनके बनाए हुए सुरग की राह स तालाब का जल निकला जा रहा था। रुपये की लालबन कम्बख्त भगवानी को एसा अधा बना दिया था कि उर्म भलाई का रास्ता कुछ भी न सूझा। वह इस बात को न सोच सकी कि अगर तारा कैदियों को न देखेगी तो वशक मुझ पर शक करेगी क्योंकि कैदखाने और सुरग की ताली सिवाय मर और किसी के हाथ में तारा नहीं देती थी। उसने बेधडक कैदियों को बाहर कर दिया मगर इसके दो ही घटे बाद उसके दिल में हौल पैदा हो गया और वह सोचने लगी कि यदि तारा मुझसे पूछेगी कि कैदखाने की ताली तो सिवाय तर मै और किसी के हाथ में नहीं देती फिर कैदी क्योकर निकल गये तो मै क्या जवाब दूगी? इस विषय में उसने बहुत कुछ विधार किया मगर सिवाय भाग जाने के और कोई बात न सूझी। उसने भाग जाने के लिए भी उद्योग किया मगर न हो सका क्याकि तालाब के बाहर से किसी को इस मकान मे लाने या इस मकान से किसी को बाहर करने के लिए रास्ता खोलना या धन्द करना केवल तारा के आधीन था। जब इस बात को दोपहर बीत गये और दुश्मनों ने तालाब को घेर लिया तब उसे यह सूझा कि दुश्मनों को इस यात की खबर न दना चाहिए कि शिवदत्त को मैने छुड़ा दिया ऐसा करने से दुश्मन उद्योग करके इस मकान में जरूर आयेंगे और उस समय मुझे यहा से निकल भागने का अच्छा मौका मिलेगा। इस बीच में भगवानी को इस बात का मौका मिल गया कि उसने तारा किशोरी और कामिनी का सुरंग में बन्द कर दिया और तब उसके दिल में अपने भाग जाने की पूरी पूरी आशा हुई। यही कारण हुआ कि दुश्मनों को शिवदत्त के निकल जाने का हाल मालूम न हुआ और उन्होंने उद्योग करक मकान को अपने दखल में कर लिया जिससे भगवानी को भागने का अच्छा मौका मिला। अब यह प्रश्न हा सकता है कि क्या तारा इतनी बेवकूफ थी कि कैद खाने में कैदियों को न देखकर और सुरग का दर्वाजा खुला हुआ पा कर भी उसे किसी पर कुछ शक न हुआ सा भी ऐसी अवस्था में जब कि लैदराने की ताली सिवाय भगवानी क और किसी के हाथ में देती ही न थी? इस सवाल का जवाब भी इसी जगह दे देना उचित जान पड़ता है। तारा ने जब कैदियों का कैदखाने में न देखा ता सबके पहिले उसके दिल में यही शक पैदा हुआ कि यह काम हमारे ही किसी आदमी का है। थाड ही साच विचार में उसने भगवानी को दोषी ठहस लिया क्योंकि सिवाय उसके यह कैदखाने की ताली किसी दूसरे के हाथ में दती न थी।यह सब कुछ था परन्तु भगवानी की जॉच फरने और उस सजा दन के विषय में जल्दी करना ताराने उचित न जाना और इस हो हल्त के समय इसका मौका भी न था तथापि तारा ने इस शक का श्यामसुन्दरसिह नानी अपन एक विश्वासी खैर ख्याह बहादुर से इसी दौड धूप के सनय ही जाहिर कर दिया और यह भी कह दिया कि मुझे इस मकान के बचाव कीतीय के सिवाय और कोई काम करने की फुर्सत नहीं है मगर तुम इस विषय में जो कुछ उचित जान पडे अवश्य करा। श्यामसुन्दरसिह बहुत ही हाशियार चालाक बुद्धिमान और बहादुर आदमी था। यह कमलिनी क कुल सिपाहियो का सरदार था और इसकी अच्छी चाल चलन तथा बहादुरी की कदरकमलिनी दिल से करती थी तथा यह भी कमलिनी की मलाई के लिए जान तक दे दने का हरदम तैयार रहता था। यद्यापि काम काज के सबब से श्यामसुन्दरसिह यहाँ बराबर नहीं रहता था परन्तु जिस समय दुश्मनों न इस मकान को घेरा था उस समय वह मौजूद था। जब उसने तारा की जुबाना कैदियो क निकल जान का हाल सुना तो उसने भी अपनी राय वही कायम को जो तारा ने की थी। श्यामसुन्दरसिह भगवानी की तरफ से हाशियार हो गया और उसके कार्यों को विशेष ध्यान स देखन लगा मगर इस बात का तो उसका गुभान भी न हुआ कि भगवानो ने किशारी कामिनी और तारा को भी सुरंग म नन्द कर दिया है। श्यामसुन्दरसिह इस बात को तो समझ ही गया था कि अब यह मकान दुश्मनो के हमले से किसी तरह वैध नहीं सकता तथापि उसे कुछ कुछ आशा इस बात की थी कि जिस समय तिलिस्मी नेजा हाथ में लेकर तारा इस झुण्ड में पहुचेमो ता ताज्जुब नही कि दुश्मनों का जी टूट जाय परन्तु बहुत समय निकल जान पर भी जब तारा यहा तक न पहुची ता श्यामसुन्दरसिंह को आश्चय हुआ और वह तरह तरह की बात सोचन लगा। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११ ५२५