पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३४

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art पांचवां बयान कीमती जाहिरात के बीजों की गठरी लादे हुए मालिक को चौपट करने वाली हरामजादी नगवानी जब भागी तो उसन फिर के दखा भी नहीं कि पो क्या हो रहा है या कोन आ रहा है। रात पहर र स कुछ ज्यादे जग चुकी थी और चादनी खूब निखरी हुई थी जब हाफरी और कापती हुई भगवानी ए. घग जगल के अन्दर जिसम चारों तरफ परल सिरे का सन्नाटा छाया हुआ था पहुंच कर एक पत्थर की चटटान पर बैठ आर तब इस तरह लट गई जसे कार हताश हाकर गिर पडता है। वह अपना विसाल से ज्याद यल ओर दौड़ चुकी थी आर इसीलिए बहुत सुस्त हो गई थी,इस पत्थर की चट्टान पर पहुंचकर उसने सोचा था किदूर निकल आयेथे काई धरते पकडने वाला है नहीं अतएव थोडी देर तक बैठ कर आराम कर लेना चाहिए मगर बैठने के साथ ही पहिले जिस पर उसकी निगाह पड़ी वह श्यामसुन्दरसिह था जिसे देखत ही उसका कलेजा धक से हो गया और चेहरे पर मुर्दनी छा गई। उसकी तेजी के साथ चलती सास दो चार पल के लिए रुक गयी और वह घबडा कर उसका मुह देखने लगी। श्याम-ज्यातू समझा होगा कि बस अब ने बच कर निकल आई और जवाहिरात की गठरी नरम चारे की तरह हजम हो गई। भगवानी - ( कुछ साच कर , नहीं नटों में इसमग तुम्हें आधा बाट दा के लिए तैयार है। आखिर दुश्मन लोग इस भी लूट कर ले ही जाने नगर में बचा कर ले आई ता क्या बुरा हुआ ? सो भी बाट दन के लिए तेयार हू श्याम - ठीक है मगर + आधा काट कर नहीं लिया चाहता बल्कि सय लिया वाहता हू। भगवानी -- 7 से होगा ? जरा साचा ना सही किभे दुश्मनों के हाथ से कितनी महनत कर क इस बचा लाई हूँ आर सब तुम्ह। ने लोग ता मुझ क्या फायदा होगा? श्याम -- क्या कुछ फायदा उठा चाहती है। अगर ऐसा ही है ता मालिक के साथ निमकहरामी या दगा करने और दुश्मन को बचा कर केदखान के बाहर कर दन में जा उचित लाभ होना चाहिय वह तुझ होगा । भगवानी - 1 पोक कर ) मापने क्या कहा सो में न समझी क्या आपको मुझ पर किसी तरह का शक है? -- श्यामा-नहीं शक तो कुछ भी नहीं है या अगर है भी तो क्पल दो बाता का-एक तो कैदियों को बचाकर निकाल देने का और दूर गालिया का साथ दगा परन 41 भगवानी-मही नहीं कैदी लाग किसी आर ग स निकल गय होंग मुझ ता उनको कुछ खबर नहीं और तारा क साथ दगा करने के शिख्य मजा कुछ आप कहत हे सो यह कामरा था पचि एक दूसरी लौडी का था जिसके सवय सवारी तारा मात इतना कह कर भगवा । रुक गई। उस ढ' मालभ हाला था कि जल्दी में अफर यह काई एसी बात मुह से निकाल ली है जिस वह बहुत छिपाती थी। श्यामसुन्दरसिंह को भी उसकी आखिरी बात पर निश्चय हो गया कि हराम आदी भगवाना दुश्मना से मिल कर बधारी तारा का मात के पजे में फसा दिया अस्तु गिना असल मद का पता लगाए इस कदापि न छोड़ना चाहिए। श्याम. ही हा फहती चल रुकी क्या। भगवानी-यही पि. भन सा काई काम नहीं किया जिसस मारिया का नुकसान हो। श्याम-अच्छा यह पता कि कैदिया का निकालने वाला आर तारा को फसाने वाला कौन है? भगवानी यह काम निमकहराम लानन लोडी का है। श्याम-यदि में इस समय के लिए तरा ही नाम लालन रय दू तो क्या हर्ज है क्योंकि मेरी समझ में वेचारी लालन निर्दोष है जा कुछ किया तू ही ने किया कैदियों ने तुझी का अपना विश्वासपात्र रामझा तुझी स काम लिया और तेरी ही मदद से निकल भाग इतन दुरमनों का भी तू ही बटोर कर लाई है ओर इतन पर भी सतोप न पाकर वेचारी तारा को भी तू टीम } भगवानी-(stet जाड कर रहीं नही आप मुझे व्यर्थदापी न ठहरायें भला एसे मालिक के साथ में विश्वासघात कल्गी जो मुझ दिल स चाह ? श्याम-(कमर स एक पीठी निकाल कर और भगवानी का दिखाकर) और यह क्या है ? क्या इसम भी लालन का पाम लिया है? कोई हर्ज नहीं अपन हाथ में लेकर अच्छी तरह देख ले क्योंकि यद्यपि यह रात का समय है फिर भी पदव ने अपनी फिरणा से दिन की तरह बना रखा है। गह धोठी रहो दीनों चीठिया में सथी जो शिदद चची और मनोरम लिख कर मगवानी का दी थी। मालूम देवकीनन्दन स्त्री समग्र