पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५३६

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loyi भैरासिह जी है भेरासिह के पैरों पर गिर पडा आर भैरासिह ने उसे उठा कर गले से लगा लिया। इसके बाद श्यामसुन्दरसिह ने अपनी तरफ का पूरा पूरा हाल इस समय तक का कह सुनाया। भैरो--अफसोस यात ही वात में यहा तक नौयत जा पहुचो। लाग सब कहते है कि घर का एक गुलाम वैरी थाहर के बादशाह बैरी से भी जबर्दस्त हाता है जिसकी तावदारी में हजारों दिलावर पहलवान और ऐयार लोग रहा करते है। खैर जा होना या साता हो गया अब इस (भगवनिया की तरफ इशारा करक) कम्बख्त स किशारी कामिनी और तारा का सच्चा सध्चा हाल में बात ही बात में पूछ लेता हूं। यह औरत है इसलिए मै खजर को तो म्यान में कर लेता हूँ और हाथ में उस दुष्टदमन का लेता है जिसक भरा एस जगल में कार्टी से निर्भय रह कर चलता रहा चलता है और यदि इसकी खातिरदारी स यह बच गया,तो चलूगा हा एक बात तो मैंने कहा ही नहीं । श्याम-वह क्या? भैरो-वह यह कि मै यहा अकला नहीं हू यल्कि दो एयारों का साथ लिए हुए कमलिनी रानी भी इसी जगल मे मौजूद है। श्याम-आहा यह ता आपन भारी युशखबरी सुनाई यताइये कहा है में उनसे मिलना चाहता हू। कम्बख्त भगवनिया अब अपनी मौत अपनी आखों के सामने देख रही थी। भैरासिह के पहचन स उसकी आधी जान जा ही चुकी थी अब यह सबर सुन के कि कमलिनी भी यहा मौजूद है वह एकदम मुर्दा सी हो गई। उस निश्चय हा गया कि अब उसकी जान किसी तरह नहीं बच सकती। नैरोसिह ने जोर से जफील बजाइ और इसके साथ ही थोडी दूर से सूख पता की खडखडाहट के साथ ही घोडों के टापों की आवाज आन लगी और उस आवाज न क्रमश नजदीक होकर भूलनाथ तथा देवीसिंह और घाडों पर सदार कमलिनी रानी तथा लाडिली की सूरत पैदा कर दी। छठवां बयान दुश्मन जब तालाय वाल तिलिस्मी मकान पर कब्जा कर चुके और लूटपाट स निश्चिन्त हुए ता शिवदत्त माधवी और मनारमा का छुडान की फिक्र करन लग। तमाम भकान छान डाला मगर उनका पता न लगा तब थोड सिपाही जा अपन का हाशियार और बुद्धिमान लगाते थ एक जाह जमा हाकर सोच विचार करने लगे। वे लोग इस बात का ता गुमान भी नहीं कर सकत थे किहमारेमालिक लोग यहा कैद नहीं है या भगवनिया ने हम लोगों को धोखा दिया क्योंकि भगवनिया द्वारा व लोग शिवदत्त माधवी और मनोरमा के हाय को लिखी हुई चिट्ठी देख चुके थे। अब अगर तरदुद था तो यही फि केदी लोग कहा है और भगवनिया हम लोगों स चिन्म कुछ कहे चुपचाप भाग क्यों गई। केवल इतना ही नहीं किशोरी कामिनी और तारा यकायक कहा गायव हा गई जिनके इस मकान मे हाने का हम लोगों को पूरा विश्वास था यकि दौड धूप करते जिन्हें अपना आखों से दख चुके हैं। जब लमाम मकान ढूढ डाला और अपन मालिकों का तथा किशोरी कामिनी या तारा को न पाया तो उन लागों को निश्चय हा गया कि इस मकान में काई तहखाना अवश्य है जहा हमारे मालक लोग कैद है और जहा अपनी जान बचाने के लिए किशोरी लाडिली और तारा भी छिप कर बैठ गई है। इस लिखावट स हमार पाठक अवश्य इस साब में पड़ जायेंगे कि यदि इन दुश्मनो को इस मकान में तहखाना और सुरग हाने का हाल मालूम न था ता क्या व लोग किसी दूसरे गिराह के आदमी थ जिन्होंने तहखाने के अन्दर से किशारी और कामिनी को गिरफ्तार कर लिया था या जिन्होंन सुरग का दूसरा नुहाना बन्द कर दिया था जिसके सब से बचारी किशारी कामिनी और तारा को सुरग के अन्दर बसी क साथ पड़ी रह कर अपनी ग्रहदशा का फल मोगना पड़ा? बेशक ऐसा ही है। जिस समय भगवानी की कृपा से माधवी मनोरमा और शिवदत्त ने कैदखाने से छुट्टी पाई और सुरग की राह से बाहर निकले तो माधवी के कई आदमी वहा मौजूद मिले और वे लोग आज्ञानुसार माधवी के साथ वहा से चले गये उसमें से किसी से भी उन लोगों की मुलाकात नहीं हुई जिन्होंने तालार वाले मकान पर हमला किया था। ये ही लोग थे जिन्होंने तहखाने में से किशार्ग और कामिनी को भी निकाल ल जाने का इरादा किया था परन्त कृतकार्य न हुए थे और इन्ही लोगों ने भागते भागत सुरग का दूसरा मुहाना ईंट पत्थरों से बन्द कर दिया था। उन दुश्मनों में जिन्होंन इस मकान को फतह किया था तीन सिपाही ऐते थे जो उनमें सरदार गिने जाते थे और सब काम उन्हीं की राय पर होता था वही तीनों खोज ढूँद कर तहखान का पता लगाने लगे। बचा हुआ दिन और रात का बहुत बड़ा हिस्सा खोज ढूँढ में बीत गया और सुबह हुआ ही चाहती थी जब हाथ में लालटेन लिय हुए तीनों सिपाही उस कोठरी के दर्वाजे पर जा पहुचे जिसमें से कैदखाने वाले तहखाने के अन्दर जाने का देवकीनन्दन खत्री समग्र