पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/५४

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और इस पर भी आप भरोसा करते हैं कि आपके नौकर खैरखाह है अगर आज मैं आपकी मदद न करता तो अपने सर पर आई बला को कल आप किसी तरह नहीं रोक सकतं और देखते देखते इस मजबूत इमारत का नाम निशान मिट जाता। बाले-(कुछ घबडा कर) अगर तेरी बात सही है तो मैं येशक तेरे साथ चलूगा और अगर तू सम्चा निकला तो तुझे अपना दोस्त बल्कि भाई समयूंगा।मगर ताज्जुब इस बात का है कि जिस रनबीरसिह के यहाँ तैने परवरिश पाई उसी का दुश्मन क्यों बन बैठा। जस-आप सच समझिये कि अगर रनबीरसिह मुझे अपना दोस्त समझता या मानता तो मैं उसके लिये अपनी जान तक देने से न चूकता लेकिन वह मेरे साथ बराबर युराई करता रहा। मैं नमक का खयाल करके तरह देता गया, मौका मिलने पर भी कभी उसकी जान का ग्राहक नहीं हुआ, पर आखिर जब वह मेरी जान ही लेने पर मुस्तैद हो बैठा तो मै क्या कलें? अपनी जान सभी को प्यारी होती है। वह बडा भारी येईमान है। दूर न जाइये आपके यहाँ इतने आराम से कैद रहने पर भी उसने आपको ऐसा धोखा दिया कि आप जन्मभर याद रखियेगा। जसवन्त की चलती फिरती और मतलब से भरी बातें बालेसिह के दिल पर असर कर गई और वह बड़े गौर में पड़ गया। वह जसवन्त को पूरा बेईमान और नमकहराम समझे हुए था मगर इस वक्त उसके फन्दे में फस गया और खूब सोच विचार कर उसने निश्चय कर लिया कि अग सवन्त इन सब बातों सबूत दे देगा जो वह कह रहा है तो जरूर उसे नेक समझ कर खातिरदारी से बरावर अपने साथ रक्खेगा। वह जसवन्त के बारे में और भी बहुत कुछ सोचता और भले बुरे का विचार करता मगर उसकी इस आखिरी बात ने कि उसने (रनवीर ने) आपके यहॉ कैद रहने पर भी आपको ऐसा धोखा दिया कि जन्म भर याद रखियेगा उसे देर तक सोचने न दिया। उसने जल्दी से अपने फैले हुए खयालों को बटोरा और घबडा कर बोला- आज मै जरूर तुम्हारे साथ चल कर तुम्हारी सचाई के बारे में निश्चय करूँगा आओ मेरे पास बैठो और कहो मर लिये उन लोगों ने क्या क्या तैयारियों की है ? जस-पास बैठ कर) रनबीरसिह और कुसुमकुमारी ने आपकी तबाही का पूरा इन्तजाम कर लिया है और लड़ाई के लिये आपके खयाल से भी ज्यादे फौज ऐसी जगह इकट्ठी की है कि न आपको पता लगा है न लगेगा। जिस तरह आप निश्चित होकर बैठे है अगर यकायक वह फौज आप पर चढ आवे तो आप क्या करें। बाले-(कुछ देर सोच कर) जसवन्तसिह, मै सच कहता है कि अगर तुम इन सब बातों का सबूत दे दोगे तो तुमको अपने भाई से ज्यादा मानूगा और बेशक कहूगा कि तुमने मेरी जान बचाई फिर देखना कुसुमकुमारी और रनबीर की मैं क्या गत करता हू और उनके बने बनाये खेल को किस तरह मिट्टी करता है। सरे बाजार दोनों को कुत्तों से नुरावा करन मार डाला (मूछों पर ताव देकर) तो बालेसिह नाम नहीं ! जस-थोड़ी ही देर में आप विश्वास करेंगे कि मैं बहुत सच्चा और आपका दिली खैरवाह हू । आज जसवन्त की बड़ी खातिर की गई। बालेसिह के दिल से रज और गम भी जाता रहा बल्कि उसे एक दूसरे ही तरह का जोश पैदा हुआ । बडी मुश्किल से दो घण्टे रात बिताने बाद उसने जसवन्त के साथ चलने की तैयारी कर ली. पहिले तो बालेसिह को खयाल हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि जसवन्त धोखा दे और बेमौके ले जाकर कहीं अपना बदला ले मगर कई बातों को सांच और अपनी ताकत और चालाकी पर भरोसा कर उसे यह खयाल छोड देना पड़ा। दोनों ने काले कपडे पहिरे, मुह पर काले कपडे की नकाब डाली, कमर में खजर और एक छोटा सा पिस्तौल रख चुपचाप पहर रात जाते जाते घर से बाहर निकल घोडों पर सवार हो जगल की तरफ चल पडे। बालेसिह को साथ लिये जसवन्त उस जगल के पास पहुचा जहा महारानीकुसुमकुमारी की वह फौज तैयार और इकट्ठी की गई थी जिसका अफसर बीरसेन था और जहाँ से चिट्ठी पाकर कुसुमकुमारी से मिलने के लिये रनबीरसिह गये थे। दोनों धोडे एक पेड के साथ बाँध दिये गये और बालेसिह ने यहाँ से पैदल और अपने को बहुत छिपाते हुए जाकर उन बहुत बडे बडे फौजी खेमों को देखा जिनके चारो तरफ बड़ी मुस्तैदी के साथ पहरा पड रहा था। बाले-(धीरे से) बस आगे जाने का मौका नहीं है. मैं खूब जान गया कि यह कुसुमकुमारी के फौजी खेमे हैं क्यों देखो (हाथ से बता कर) मै उस आदमी को बखूबी पहिचानता हू जो उस बड़े खेमे के आगे चौकी पर बैठा निगहबानी कर रहा है जिसके आगे दो मशाल जल रहे हैं, और नगी तलवार लिये कई सिपाही भी इधर उधर घूम रहे है। जस-अगर कुछ शक हो तो और अच्छी तरह देख लीजिये। बाले-नहीं नहीं मैं इस फौज से खूब वाकिफ हू हकीकत में जसवन्तसिह (गले लगा कर) तुमने मेरे साथ बडी देवकीनन्दन खत्री समग्र १०६२